पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार
ये मेरी दीदी हैं- वीणा शर्मा। कल बेंगलुरु में वोट किया और अपील की कि मतदान करें। बात बस इतनी भर नहीं है। दीदी पिछले 4-5 साल से किडनी फेल्योर होने की वजह से कई तरह की चुनौतियां का सामना कर रही हैं। डायलिसिस पर हैं। चेहरे की मुस्कान से आप उनकी हर दिन की पीड़ा का अंदाजा नहीं लगा सकते।
मैं सोचता हूं कि जो वोटर इतने उत्साह से लोकतंत्र को मजबूत करने में जुटा है , उसकी पीड़ा को समझने की संवेदना हमारे नेताओं और हमारे तंत्र में बची है क्या? अगर बची है तो फिर
1. ऑर्गन डोनेशन को बढ़ावा देने को लेकर कोई मुकम्मल नीति क्यों नहीं बनती?
2. अंगदान-महादान जैसे नारों से ही सरकार काम क्यों चला रही है?
3. अंगदान करने वाले शख्स या परिवार की स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर नीति क्यों नहीं बनती?
4. ऑर्गन डोनेशन करने वाले परिवारों /व्यक्तियों के लिए भविष्य में प्राथमिकता सूची तय क्यों नहीं की जाती?
5. आपका मकान तो आपकी संपत्ति है, जो आपकी आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित हो जाएगा लेकिन अगर आप मरणोपरांत अंगदान करते हैं तो सरकार ये गारंटी नहीं देगी कि ये देश पर आपका कर्ज होगा और आपके परिवार को कभी ऐसी जरूरत पड़ी तो आपको प्राथमिकता दी जाएगी।
ऐसे न जाने कितने विकल्प हैं, जिन्हें आजमाया जा सकता है। लेकिन सरकारें बस सदाशयता और उच्च नैतिक आदर्शों की खयाली कल्पना में जी रही हैं।
सवाल मेरी दीदी का ही नहीं उन तमाम बहनों और भाईयों का है, जो सरकार की एक नीति से नई ज़िंदगी पा सकते हैं। मेरी दीदी तो काफी हिम्मती है, योद्धा है.. वो तो हर चुनौती का सामना कर ही रही है… और अपनी शर्तों और मिजाज से ज़िंदगी जीने का माद्दा रखती है। सोचना सरकारों और नेताओं को है कि छलावे भरे नारों से काम चलाना है या वाकई सूरत बदलने की कोशिश भी करनी है।
मेरा वोटर महान, बदलेगा हिंदुस्तान। जय हिंद
पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।