अखिलेश्वर पांडेय
कम पानी वाले पोखर की मछलियां
दुबरा गयीं हैं
ऊसर पड़े खेतों की मेढ़ें रो रही हैं
बेरोजगार लड़कों का पांव मुचक गया है
पुलिस बहाली में दौड़ते-दौड़ते
बुजुर्गों की उमर थम गयी है
अच्छे दिनों के इंतजार में
लाल रीबन की चोटी वाली लड़कियां
बेपरवाही में जवान हो रही हैं
दुकानों पर लेमनचूस की जगह
बिक रहे मैगी- कुरकुरे
बैल की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है
गाछ की जगह खंभा खड़ा है
ट्रेन की खिड़की से देख रहा हूं
बगल वाली पटरी मुझसे दूर हो रही है!
चिनिया बादाम बेचता हुआ लड़का
उस कामिक्स को ललचाई नजर से देख रहा है
जिसे पढ़ते हुए सो गयी है मेरी बेटी
मोबाइल पर मां कह रही है
‘अगिला बार ढेर दिन खातिर अईह…”