आज मनकचोटन भाई के दलान पर खूब गहमागहमी है। बटेसर, परसन कक्का , चुल्हन भाई, धरीच्छन, बिल्टू उस्ताद, भगेरन, बदरुआ, हुलसबा और धनेसरा सब दलान में जम गया है। घोंचू भाई का इंतजार हो रहा है कि ऊ आएं तब बतकही शुरू हो। तभी घोंचू भाई वहां आ जाते हैं। घोंचू भाई के आसन जमाने के बाद मनकचोटन भाई सामने रखे अराम बेंच पर बइठ गये और कहने लगे कि आज एक जरूरी मसले पर बात करनी है और अगुआ आप को ही बनना होगा घोंचू भाई’। पहेली नहीं, पहले बात तो बताइए कि मसला क्या है? तब न उस पर विचार-उचार होगा। ‘ घोंचू भाई ने वहां बैठे सभी लोगों पर सरसरी निगाह डालते हुए कहा। ‘
देखिए, हमारे देश के मंत्री खुलेआम कह रहे हैं कि एक क्विनटल गेंहूं उपजाने में मात्र 866 रूपये खर्च होता है और सरकार ने इसकी उत्पादन लागत पर 112 प्रतिशत का लाभ देकर गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस साल 1840 रूपये प्रति क्विनटल घोषित किया है। गेहूं के प्रति क्विंटल उत्पादन लागत का सरकार का यह आकलन बिल्कुल गलत है। लागत तो इससे कहीं ज्यादा होती है, दो गुना से भी ज्यादा। इसलिए गेहूं का 1840 रूपये प्रति क्विनटल सयर्थन मूल्य किसानों के साथ धोखा है। हम चाहते हैं कि सरकार को यह बात बताई जाए। यह काम आपको ही करना होगा। आप मंतरी जी को अभी एक पत्र लिखिए और उनको एक क्विंटल गेहूं के उत्पादन पर वास्तविक लागत बताइए। क्योंकि अब चुप रहने का समय नहीं है। ‘ मनकचोटन भाई ने आज की बतकही के उद्देश्य के बारे मे विस्तार से घोंचू भाई को बता दिया। ‘हां, मनकचोटन भाई, यही तो विडम्बना है कि खेती किसान करे और उसके लागत का हिसाब सरकार के नुमाइंदे करें, सारा गड़बड़ झाला की जड़ यही है। फसल उत्पादन के वास्तविक लागत के बारे में किसान के अलाबे किसको पता होगा ? हमहूं त 50 बरिस से खेतिए कर रहे हैं। हम अभी लिखते हैं मंतरी जी को चिठ्ठी और बताते हैं उनको असली लागत का हिसाब। किधर गया मनसुखबा, लाओ जल्दी कागज-कलम। ‘ घोंचू भाई की आवाज सुन मनसुखबा ने उनके सामने कागज-कलम रख दिया। घोचू भाई लिखने लगे –
सोस्ती सिरी लिखा परानपुर के किसानों और घोंचू भाई के तरफ से माननीय केन्द्रीय कृषि मंत्री जी को राम राम। आगे ईहां का समाचार बहुत खराब हय । आपको त मालुमे हय कि खेती-किसानी का लागतो पूंजी उप्पर नहीं हो रहा हय। हारी-हपाड़ी आ मौसम के बेरुखी अलग जान ले रहा हय। आगे आपको मालूम हो कि हमलोगों को अखबार के जरिए पता चला हय कि आपने एक क्विंटल गेहूं उपजाने का कुल खरचा 866 रूपया बताया है और इसी लागत पर 2018-19 सीजन के लिए गेहूं का समर्थन मूल्य 1840 रूपये तय किया है। आपका यह हिसाब पूरी तरह गलत है। ऐसा लागत है कि आप लोगन ने सबकुछ एसी कमरा में बैइठ के किसानों की कड़ी मेहनत की बोली लगा दिया हो । सही लागत का हिसाब हम आपको बताते है। आपको मालूम हो कि हमारे यहां ड़ेढ कठ्ठा जमीन में औसत एक क्विनटल गेहूं की पैदावार होती है। अब ड़ेढ कठ्ठा में गेहूं की खेती करने का खर्च आपको बता रहा हूं।
नोट- ये लागत तेल की कीमतें बढ़ने से पहले की हैं
मंत्री जी, आपने इस साल 1 क्विंटल गेहूं का समर्थन मूल्य निर्धारित किया है 1840 रूपया और कहा है कि लागत पर 112 प्रतिशत जोड़ कर समर्थन मूल्य दिया जा रहा है। अब अगर सरकार इस समर्थन मूल्य पर हमार गेहूं खरीदेगी भी (जो नहीं खरीदी जाती है) तो एक क्विंटल पर बाईस रूपइया घाटा ही हुआ न ? बच गया भूसा। सो हमलोग भूसे खा के गुजारा करें ? एगो बात त लिखना भूलिए गये थे। हमारे इधर की जमीन में माइक्रो न्युट्रेन्ट की भी कमी हय मंत्री जी। आपका किरसी वैज्ञानिक जिंक, बोरोन और सल्फर देने को कहता हय। अगर उसका और गोबर की खाद का दाम इसमें जोड़ दें त लागतबा बढबे न करेगा ? अब एहे सोंच रहे हैं हुजूर कि का खाउ, का पिउ आ का लेके परदेस जाउं ? थोड़ा लिखे हैं, बहुत समझिएगा । आ ई चिट्ठी मिल जाए तो जवाब जरूर दीजिएगा।
आपही का घोंचू भाई।