टीम बदलाव
बुजुर्गों के अकेलेपन की त्रासदी कितनी गंभीर होती जा रही है? एक उम्र के बाद क्यों समाज अपने ही बुजुर्गों की उपेक्षा करने लगता है? क्यों परिवार के लिए बुजुर्ग की संपत्ति ही मुख्य मुद्दा बन जाती है, इन तमाम सवालों से रूबरू हुए बुजुर्ग, कवि, अफसर, शिक्षाविद, युवा और बच्चे। दिल्ली सीएम ऑफिस में डिप्टी सेक्रेटरी प्रशांत कुमार ने कहा कि बुजुर्गों का अकेलापन दूर करना हम सब की जिम्मेदारी है। इसके साथ ही उन्होंने संपत्ति को लेकर रची जा रही साजिशों की ओर भी सबका ध्यान खींचा। उन्होंने कहा कि प्रशासन की कोशिश रहती है कि बुजुर्गों से जुड़े मुद्दों को पूरी संवेदनशीलता और तत्परता के साथ निपटाया जाए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विद्या बाल भवन पब्लिक स्कूल के चेयरमैन डॉक्टर सतवीर शर्मा ने कहा कि बुजुर्गों के लिए सबसे ज्यादा जरूरत है तो वो है सम्मान की। परिवार में उनका पूरा खयाल रखा जाए और उनकी बातों को तवज्जो दी जाए, इससे ज्यादा वो कुछ और नहीं चाहते। उन्होंने एक शिक्षाविद के नाते कुछ टिप्स भी दिए, जिससे बुजुर्गों को खुश रखा जा सकता है।
कार्यक्रम में मौजूद पूर्व सेल्स टैक्स कमिश्नर मंगला प्रसाद यादव ने कहा कि धीरे-धीरे समाज का मानस बदल रहा है। कभी परिवार उसके मुखिया की पहचान से जाना जाता था, आज की युवा पीढ़ी इसे वक्त से पहले ही अपने नाम से जोड़ लेती है। पिता के साथ बेटा नहीं रहता, अब बेटे के साथ पिता रहता है, और ये बारीक फर्क है जिसे समझने की जरूरत है। वरिष्ठ समाज शास्त्री और रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ नीलम सक्सेना ने बुजुर्गों को मनोभावों को समझने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जो बात बुजुर्ग जबान पर नहीं लाते, उन्हें भी महसूस करने की जरूरत है।
तीन सत्रों के इस कार्यक्रम का संचालन अभिलाषा पाठक और पीयुष बबेले ने किया। प्रथम सत्र में अर्थ सेवियर फाउंडेशन की टीम ने बुजुर्गों से जुड़े अलग-अलग मुद्दे उठाए। नूतन ने बताया कि कैसे बुजुर्गों को लोग बीच राह छोड़कर चले जाते हैं। ऐसे तमाम बुजुर्गों की सेवा करने का जिम्मा रवि कालरा और उनकी टीम ने उठा रखा है। अर्थ सेवियर फाउंडेशन गुड़गांव में अवस्थित है और फिलहाल 450 बुजुर्गों की देखरेख कर रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर ने बुजुर्गों के साथ स्नेहन की कमी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि हमने बच्चों को साक्षर तो बनाया लेकिन समाज को समझने वाली शिक्षा देने से चूक गए। दिल को खुश रखने के उपाय करने में हम लापरवाही बरतते रहे। पिताजी के पास जितनी खुशी थी, उसकी आधी भी बेटे के पास नहीं है। दयाशंकर डियर जिंदगी के नाम से एक अभियान भी चला रहे हैं, जो लोगों में बढ़ती हताशा और डिप्रेशन को लेकर एक संवाद कायम करने की बड़ी कोशिश है। पत्रकार पीयूष बबेले ने इस परिचर्चा को आगे बढ़ाया और हर मौके पर एक ईमानदार पहल करने पर जोर दिया। उन्होंने बड़ी बातों की बजाय छोटी कोशिशों को सराहने की आदत डालने की नसीहत भी दी।
कार्यक्रम में वीरेंद्र गुप्त और नीरज कुमार ने काव्य पाठ किया। प्रतापजी , शत्रुघ्न सैनी और तमाम मौजूद लोगों ने अपनी बातें रखीं। संदीप शर्मा ने संस्था का परिचय दिया तो पशुपति शर्मा ने आभार जताया। कार्यक्रम करीब 3 घंटे तक चला लेकिन लोगों का मन नहीं भरा। बच्चों ने कार्यक्रम में शरीक हुए बुजुर्गों को सम्मान और प्रेम के साथ पुस्तकें भेंट की।
मातृदेवो भव,पितृदेवो भव मानने वाले इस देश में आज माता-पिता और बुजुर्ग तस्वीरों में पूजने की वस्तु हो चुके हैं। आज जब इस भौतिकवाद की अंधी दौड़ में जहां हम अपने लिए एकदम से सबकुछ पा लेना चाहते हैं वहीं बुजुर्गों की नितांत जरूरी चीजें भी बोझ लगने लगती हैं। अपना हम कुछ बांटना नहीं चाहते और जो नहीं है उसके लिए उन्हें जिम्मेदार ठहरा कर जी भर कर कोसते हैं। उत्तरधुनिकता के इस दौर में हम कहाँ भाग रहें हैं पता ही नहीं है और हमारे बुजुर्गों के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ वाली स्थिति है।
बुजुर्गों के प्रति उत्तरोत्तर बढ़ती असंवेदनशीलता के इस दौर में ‘बदलाव’के सभी साथियों को हार्दिक बधाई जिन्होंने विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस के निमित्त विभिन्न कार्यक्रम आयोजित कर इसके प्रति लोगों को जागरूक बनाने का महत्वपूर्ण दायित्व निभाया। आमंत्रित अतिथिगण,प्रतिभागीगण,साथी पशुपति और प्रशांत जी को शुभकामनायें और आभार ।