ब्रह्मानंद ठाकुर
11 सितम्बर 1893। इसी दिन स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो शहर में विश्व हिंदू धर्म महा सम्मेलन में व्याख्यान दिया था। आज उसका 125 वां वर्ष है। वैसे स्वामी जी वहां धर्म सम्मेलन में भाग लेने नहीं, दुख – दैन्य और अभाव से पीड़ित भारतवसियों के लिए आर्थिक सहायता के उद्देश्य से गये थे। फिर भी उन्हें इस महासम्मेलन में भाग लेने का जब अवसर मिला तो उन्होंने अपने सम्बोधन में जो कुछ भी कहा वह यादगार बन गया। आज मैं अपने आलेख में स्वामी जी के शिकागो भाषण की चर्चा नहीं कर उनके हिन्दुत्व और गौरक्षा सम्बंधी विचारों की चर्चा करने जा रहा हूं।
स्वामी जी शिकागो से लौट आए थे और 1897 में एक दिन वे कोलकाता में प्रियनाथ मुखर्जी के आवास पर बैठे हुए थे। इसी समय कुछ गौरक्षक स्वामी जी से मिलने आए और उनका चरणस्पर्श करते हुए उनसे कहा कि वे गोरक्षा सेवासमिति की ओर से आए हैं। यह समिति पूरे देश मे गौरक्षा अभियान चला रही है। वे चाहते हैं कि वे ( स्वामी जी ) भी उनके इस अभियान में सहयोग करें। स्वामी जी के यह पूछने पर कि उनका उद्देश्य क्या है , उनमें से एक ने कहा कि उनका उद्देश्य कसाइयों से गाय की रक्षा करना है। तब स्वामी जी ने उनसे आय का स्रोत और अब तक उस मद में जमा धन के बारे में अपनी जिज्ञासा व्यक्त की।
गौरक्षा दल के एक सदस्य ने उन्हें बताया कि इस मद में दान देने वालों की कमी नहीं है। मारवाड़ी व्यापारी लोग उन्हें काफी मदद कर रहे हैं। इस पर स्वामी जी ने उनसे पूछा कि पूरे मध्य भारत में भयानक अकाल पड़ा है। भारत सरकार इस अकाल में अब तक 9 लाख लोगों के मरने की पुष्टि कर चुकी है। आपलोग भयानक अकाल पीड़ितों के लिए क्या कर रहे हैं ? उनके इस सवाल पर उन गौरक्षकों ने कहा कि वे लोग यह सब काम नहीं करते। उनका संगठन ही बना है गौ रक्षा के लिए। तब विवेकानन्द ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इस भयानक अकाल मे जब आपके ही भाई-बहन लाखों की संख्या में भूख से मर रहे हैं,आपके पास अच्छी – खासी धनराशि होने के बावजूद आपलोग नहीं समझते कि पीड़ित लोगों की कुछ सहायता की जाए, उन्हें दो मुठ्ठी अन्न दिया जाए ?