ब्रह्मानंद ठाकुर
घोंचू भाई आय सुबहे से घर से गायब थे। मैंने कई बार उनके ओसारे मे बिछी चउकी पर ताक -झांक किया लेकिन सब बेकार। ऊ दूरा पर हों तब न दिखाई दें ! धनेसरा से पूछा तो उसने कहा कि सबेरे मुखिया जी आएल थे। दोनो आदमी मे कुछ गिटपिट हो रहा था। मुखिया जी के जाइते ऊ भी गायब हो गये। खएबो नहीं किए। मुखिया जी के जौरे जे चाह पीए थे सेहे पीले हंय। देखिए न , सांझ हो गया आ अबतक नहीं लउटे । होंगे कोनो चकरघन्नी में। बाल – बच्चा ,खेती – पथारी और माल – जाल से मतलबे नहीं हय। हम त हइए न हंय ऊ सब करे वाला। धनेसरा घोंचू भाई का सरबेटा हय। ऊ लडिकारिए से घोंचू भाई के इहा रह कर पढता हय और उनका सेवा- टहल भी करता है। खेती – पथारी और माल- मवेशी को देखने के लिए घोंचू भाई का लडिकवन सब खूब एक्सपर्ट हो गया है सो ऊ इस तरफ से पूरा निचिंत हो गये हैं। धनेसरा जब ई बात बताया त हमहूं अपन खेत दिश चल गये कि जरा देख लें कि सावन के फुहार से धान के खेत की दरार बंद हुई कि नहीं ?
घोंचू उवाच- पार्ट 5
यही कारण है कि आज सबेरे मुखिया जी हमको मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना के पंचायत स्तर के सोशल आडिट की अध्यक्षता करने का न्योता देने आए थे सो हम उसी मे चल गये थे। ‘ ई सोशल आडिट क्या होता है , घोंचू भाई ‘ मैंने अपनी जिज्ञासा जाहिर करते हुए पूछा। अब बारी घोंचू भाई के मुखर होने की थी सो वे शुरू हो गये – ‘ देखो ,सरकार देश की जनता के लिए बहुत योजनाएं कार्यान्वित करा रही है। उसी मे मनरेगा और प्रधानमंतरी आवास योजना भी है। सरकार गांव के मजदूरों को साल में 100 दिन काम देती है ,उसको मनरेगा कहते हैं और बेघर लोगों को पक्का का मकान शौचालय सहित बनाने के लिए इन्दिरा आवास योजना से पैसा देती है। मनरेगा मे अपने बिहार में न्यूनतम मजदूरी 177 रूपये है। इतनी मजदूरी पाने के लिए पुरुष मजदूर को 80 घनफीट और महिला को 68 घनफीट माटी काटना पड़ता है नापी मे अगर मिट्टी कम काटी हुई पाई गयी तो मजदूरी मे भी कटौती हो जाती है । ‘ घोंचू भाई ,मनरेगा की मिट्टी कटाई जेसीबी से और ढुलाई ट्रैक्टर से होती है, तो फिर मजदूर की क्या जरूरत ‘ मैने पूछा। ‘ देखो ,यही तो पेंच है जिसे सोशल आडिट में लीपापोती कर सुलझाया जाता है। ‘ घोंचू भाई ने अपनी आवाज धीमी करते हुए कहा।
फिर आगे वे इसका पेंच समझाने लगे ‘ पहले अपने खास-खास लोगों को जाबकार्ड दिया जाता है जो मनरेगा का मजदूर कहलाता है। फिर उसका बैंक खाता खुलता है। काम जेसीबी और ट्रैक्टर से होता है और मास्टर रोल उस जाबकार्डधारी के नाम बनाया जाता है और मजदूरी उसी जाब कार्डधारी के खाते में आती है जिसे वह निकाल कर मनरेगा से काम कराने वाले विचौलिए को सौंप देता है। इस इमानदारी के लिए उस जाब कार्डधारी को बिचौलिए कुछ रकम दे देते हैं। बस बिचौलिया भी खुश और फर्जी मनरेगा मजदूर भी खुश। मारा तो जा रहा है वह मजदूर जिसके लिए सरकार ने यह योजना शुरू की है। ‘अच्छा ,घोंचू भाई ,इसके विरोध मे मजदूर काहे नहीं एकजुट होता है ? काम तो आखिर उसको चाहिए ही’ मैने उनसे अगला सवाल किया। काम ,काम , काम की रट आप लगाए हुए हैं। अरे दिनभर जे काम करेगा उसको तो शाम में या दूसरे दिन मजदूरी तो मिलनी चाहिए न ? पता है आपको ? मई महीने मे जिस मजदूर ने मनरेगा मे काम किया , उसे आजतक मजदूरी नहीं मिली है। अपना जगेसरा आज बता रहा था कि 2006 मे उसने 17 दिन मनरेगा के तहत काम किया था। 5 “दिन की मजदूरी मिली और बारह दिन की उसकी मजदूरी बारह सालो से बकाया है।