मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में कब और कहां चूक हुई?
वीरेन नंदा
मुजफ्फरपुर में “सेवा-संकल्प विकास समिति” नामक एनजीओ के तहत चलने वाली संस्था “बालिका अल्पावास गृह” में 41 बच्चियों से मारपीट के आरोप हैं। नशे का इंजेक्शन और धमकी दे कर 7 से 13 साल की बच्चियों से बलात्कार करने-कराने का शर्मनाक खेल सामने आया है। रसूखदारों की हवस-पूर्ति के आपूर्तिकर्ता के रूप में ब्रजेश ठाकुर का नाम सामने आ रहा है। जांच सीबीआई के हाथों में है और पूरा सच सामने आना बाकी है। सवाल उठ रहे हैं कि ब्रजेश ठाकुर के पास आखिर इतनी अकूत संपत्ति कहां से आई ? मुजफ्फरपुर के लोगों की जुबान पर उनके मरहूम पिता राधा मोहन ठाकुर का नाम भी है, जिन्हें इलाके में पीत-पत्रकारिता के जनक के तौर पर देखा जाता है।
राधामोहन ठाकुर मुजफ्फरपुर के हरिसभा के निकट ‘कल्याणी स्कूल’ में शिक्षक थे। जर्जर साइकिल से चलने वाले राधामोहन कभी-कभार ही स्कूल जाते, किंतु इनकी हाजिरी बनती रहती। आरोप है कि कभी चेकिंग होती तो मैनेज कर लेते। उन्होंने एक अखबार निकालने का सोचा और ‘विमल वाणी’ का रजिस्ट्रेशन कराया। सरकारी विज्ञापन के लिए तब के उप-समाहर्ता और साहित्यकार से संपर्क साधा। कहा जाता है कि देखते-देखते राधामोहन पैसे कमाने की मशीन बन गए ! स्वयं सेवा-संकल्प के संचालक व उनके पुत्र ब्रजेश ठाकुर ने इस शहर के साहित्यकार डॉo शिवदास पाण्डेय के प्रणय-पर्व के अवसर पर छपी स्मारिका में अपने लेख में लिखा– “….नियमित प्रकाशन के लिए विज्ञापन ही आर्थिक श्रोत थे। श्री ठाकुर ने अपनी गरीबी और मुफलिसी के बीच अपने बुलंद हौसलों का परिचय देते हुए डॉo शिवदास पाण्डेय से विज्ञापन के रूप में आर्थिक मदद की मांग की। डॉo शिवदास पांडेय उनके हौसलों से इतने प्रभावित हुए कि उनको यथासंभव विभागीय ही नहीं, आत्मीय सहायता भी दी, जिसका नतीजा ‘ प्रातः कमल ‘ जैसे दैनिक के बीजारोपण से शुरू हुआ। उन्होंने डॉo शिवदास पाण्डेय को अपना संरक्षक, सलाहकार और बड़ा भाई मान लिया।
राधामोहन ठाकुर पर अखबारी कागज बेचने के आरोप लगे और इस मामले में भी CBI इन्क्वारी हो चुकी है। आरोप लगा कि वे अखबार की उतनी ही प्रति छापते, जितना भर सरकारी विभाग को देना होता था, बाकी कागज बेच लेते। स्थानीय व्यवसायियों से भी न्यूज के नाम पर उगाही के आरोप लगते रहे। राधामोहन के पुत्र ब्रजेश ठाकुर पर जो आरोप लगे हैं वो बेहद संगीन हैं। “बालिका दुष्कर्म कांड” से वो रातों-रात देश भर के लोगों की जुबान पर आ गए हैं। ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ का नाम है – “सेेवा-संकल्प एवं विकास समिति”। यह समिति बिहार सरकार द्वारा 8 अप्रैल 1987 को बीआर/2009/0003177 संख्या द्वारा रजिस्टर्ड हुई। नियमानुसार, ऐसी समिति में परिवार का एक ही सदस्य हो सकता है किन्तु इसमें उनके पुत्र राहुल आनंद सहित परिवार के अन्य रिश्तेदार भी सदस्य बनाए गए। इसी एनजीओ के तहत सरकार से अपनी पहुंच, रसूख और कल्याण विभाग के सहयोग से “बालिका अल्पावास गृह” खोल लिया। इसमें अनाथ लड़कियों के रहने, खाने और देखभाल के नाम पर सरकार से लाखों रुपये ऐंठता रहा। इस कांड के बाद निरीक्षण करने वाली महिला आयोग की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा ने टिप्पणी की- ‘इस बालिका गृह की दशा तो जेलों से भी ज्यादा बदत्तर है’।
सरकारी विभागों में पैठ बनाने के बाद सरकारी विज्ञापन से और ज्यादा धन कमाने के लिए एक अंग्रेजी अखबार ‘न्यूज़ नेक्स्ट’ शुरू कर अपनी बेटी को उसका संपादक बना दिया। सुना जाता है कि उसने ‘हालात-ए-बिहार’ नामक एक उर्दू अखबार भी शुरू किया ! यानी इन तीनों अखबारों के सरकारी विज्ञापन और अपने एनजीओ से खूब धन कमाया फिर भी उसका पेट नहीं भर रहा था। तब उसने अपने ‘बालिका अल्पावास गृह’ को मानो ‘बालिका चकला घर’ में तब्दील कर दिया। उसका यह खेल उसके घर से सटे बिल्डिंग में चल रहा था जिसमें तीनों अखबार के दफ्तर भी थे।
इसी साल फरवरी में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोसल साइंस (TISS) ने इस बालिका गृह की ऑडिट रिपोर्ट ‘समाज कल्याण विभाग’ को सौंपी। लेकिन ब्रजेश ठाकुर का रसूख तो देखिए ! उस रिपोर्ट को विभाग के निदेशक तक पहुंचने में ही तीन माह लग गए ! यानी वह 26 मई 2018 को निदेशक के पास पहुँची। जबकि उस रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि वहां बालिकाओं का यौन उत्पीड़न हो रहा है। समाज कल्याण विभाग के निदेशक अपने रिटायर होने वाले दिन यानी 31 मई को TISS के ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर ‘बालिका गृह’ खाली करा कर उसमें रह रही 44 लड़कियों को मधुबनी, पटना और मोकामा भेज अपने सहायक निदेशक को FIR करने को कहा और रिटायर हो गए। 1 जून को समाज कल्याण विभाग के सहायक निदेशक दिलीप वर्मा ने महिला थाने में FIR दर्ज कराई और फरार हो गए। उन्हें पुलिस खोजती रही।
शहर में नई-नई आयी सीनियर एसपी हरप्रीत कौर ने 2 जून को ब्रजेश से पूछताछ कर वहाँ के कागजात जब्त किए और दूसरे दिन ब्रजेश सहित आठ लोग किरण कुमारी, चंदा कुमारी, मंजू देवी, इंदू कुमारी, हेमा मसीह, मीनू देवी, नेहा और रौशन कुमार को हथकड़ी डाल ले गई। ब्रजेश दुहाई देता रहा कि मैं पत्रकार हूँ, बालिका गृह मेरा नहीं है। तब एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पत्रकार ने पूछा – “जब आप का नहीं है तो आप के अखबार और बालिका अल्पावास गृह का मोबाइल नम्बर और फोन नंबर एक कैसे और क्यों है ?” इस बात पर ब्रजेश बगलें झांकने लगा। 4 जून को लड़कियों का मेडिकल टेस्ट हुआ जिसमें यौन उत्पीड़न की पुष्टि हुई।
राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य सुषमा साहू ने भी जांच कर कहा कि लड़कियों के साथ दुष्कर्म हुआ है। 5 जून को बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष विकास कुमार को पुलिस ने धर दबोचा। ‘बालिका अल्पावास गृह’ की 44 लड़कियों में से 34 के साथ रेप हुआ जिसकी पुष्टि मेडिकल रिपोर्ट से हुई। इनमें तीन लड़कियां प्रेगनेंट बताई गईं। 7 से 13 साल की बच्चियां भी इसकी शिकार बनीं। कोर्ट में बयान देने वाली इन लड़कियों की दास्तान सुनकर सबकी रूह कांप उठी -“भूख से तड़प कर खाना मांगने पर पीटा जाता। जोर-जबरदस्ती का विरोध करने पर पीटा जाता ! खाने में नींद की गोली देकर यौन संबंध बनाया जाता, सुबह उठने पर वे खुद को निर्वस्त्र पाती और शरीर दर्द से ऐंठता रहता। खाना बनाने, बर्तन मंजवाने का काम करवाया जाता।
लड़कियों ने जो आपबीती बताई उसके मुताबिक किसी भी बात का विरोध करने पर ब्रजेश हंटर से पीटता। चंदा रॉड से मारती और खाना मांगने पर पीठ पर गर्म पानी उझल देती। सीडब्ल्यूसी रवि रौशन कुमार और काउंसलर विकास भी गलत काम करता। आंटी भी लड़कियों से गलत काम करती। ब्रजेश, नेहा, किरण, चंदा आदि ( बच्चियों के ) निचले हिस्से पर ही प्रहार करती। आरोप ये भी कि मार से एक लड़की का गर्भपात हो गया था। एक लड़की को फाँसी लगाकर मार दिया गया। पुलिस को दिए गए बयान में लड़कियों ने ऐसे-ऐसे आरोप लगाए, जिससे इंसानियत शर्मसार है।
इस गृह से 2013 से अबतक 6 लड़कियां गायब पाईं गईं। बालिका गृह के रजिस्टर में उन्हें भगोड़ा लिख कर चुप्पी साध ली गई। पुलिस को खबर तक नहीं। यह बात वहां का रजिस्टर खंगालने पर पता चला, जिसकी भी छानबीन की जा रही है। सेवा संकल्प के अलमारियों को मजिस्ट्रेट के सम्मुख खोला गया तो उसमें कुछ सामान्य बीमारियों में दी जाने वाली दवा के अलावा नशे और मिर्गी में दिए जाने वाले इंजेक्शन भी मिले। मिर्गी के इंजेक्शन यदि सामान्य व्यक्ति को दिया जाए तो वह अचेत हो जाता है।
बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग का इस तरह ब्रजेश ठाकुर पर मेहरबान होना, हैरान करने वाला है। लेकिन इस कांड के उजागर होने पर मुजफ्फरपुर के अखबारों की दो दिनों तक चुप्पी ब्रजेश की ऊपर तक पहुँच को भी दर्शाती है। मुजफ्फरपुर की सीनिअर एसपी हरप्रीत कौर की दिलेरी के आगे सब अखबारों को अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी। वह भी तब, जब एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के रिपोर्टर ने शुरुआत से ही लीड लेना शुरू कर दी थी। शातिर ब्रजेश अपने कुकर्म को ढंकने के लिए नकली छवि बना अधिकारियों और अख़बारों से वाहवाही भी बटोरता रहा है। 2007 में एक दलित लड़की विमला की शादी एक पिछड़ी जाति के लड़के के साथ हुई। इस शादी के समारोह में उस वक़्त के डीएम सहित कई आला अधिकारियों को ब्रजेश ने आमंत्रित किया। दूसरे दिन इसकी खबर अखबारों में छपती है कि ब्रजेश ठाकुर की संस्था ‘सेवा-संकल्प’ ने रेडलाइट एरिया की अंधेरी गली से उस लड़की को निकाल उसका उद्धार किया और उसे नयी जिंदगी दी ! यह खबर देख नव-जोड़े ने ब्रजेश ठाकुर और उनकी संस्था पर मिठनपुरा थाने में FIR की। लेकिन ब्रजेश का बाल भी बांका न हुआ।
यह और भी आश्चर्यजनक बात है कि “सेवा-संकल्प एवं विकास समिति” जैसे एनजीओ को केवल बिहार सरकार से ही फंडिंग नहीं हो रही थी बल्कि विदेशी संस्था भी ऐड दे रही थी। ऐसा सुना जाता है कि ‘ फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट ‘ (FCRA) के तहत भी ब्रजेश ठाकुर ने अपनी संस्था का रजिस्ट्रेशन करा रखा था, जहां से भारी मात्रा में विदेशी धन उसे मिलता रहा।
बिहार सरकार ने इस काण्ड की जांच अब सीबीआई के हवाले कर दी है। इस सेवा-संकल्प का चयन, निरीक्षण और रिन्यूअल सब शक के घेरे में है। इसके निरीक्षण का काम जिला निरीक्षण समिति करती है। यह निरीक्षण प्रत्येक तीन माह पर करना आवश्यक है, जिसकी भी घोर अवहेलना की गई है। जबकि इस निरीक्षण समिति के अध्यक्ष होते हैं जिला अधिकारी, बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक सचिव, बोर्ड या समिति के सदस्य, मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी, शिक्षा विभाग के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, विशेष किशोर पुलिस इकाई का सदस्य, अध्यक्ष द्वारा नामित सदस्य और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ। तब यह सवाल उठता है कि सरकार के इतने विशेषज्ञों की समिति के होते हुए भी यह घृणित कांड कैसे अनदेखा रह गया।
बालिका गृह में स्त्रियों के साथ हुई अमानवीय घटना नपुंसक पौरुषता की निशानी है। स्त्रियों को यातना से मुक्ति दिलाने वाले, नारी मुक्ति के प्रथम विमर्शकार गौतम बुद्ध की यह धरती आज कलंकित है। और विह्वल है यहाँ की स्त्रियाँ, लड़कियाँ और उनके परिजन ! शर्मसार है पूरा बिहार,- स्त्रियों के संरक्षण के नाम पर चलाए जाने वाले ‘बालिका गृह’ के संचालक ब्रजेश ठाकुर के घिनौने यौन भक्षण कांड पर !
वीरेन नन्दा। बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति समिति के संयोजक। खड़ी बोली काव्य -भाषा के आंदोलनकर्ता बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री पर बनी फिल्म ‘ खड़ी बोली का चाणक्य ‘ फिल्म के पटकथा लेखक एवं निर्देशक। ‘कब करोगी प्रारम्भ ‘ काव्यसंग्रह प्रकाशित। सम्प्रति स्वतंत्र लेखन। मुजफ्फरपुर ( बिहार ) के निवासी। आपसे मोबाइल नम्बर 7764968701 पर सम्पर्क किया जा सकता है।