ब्रह्मानंद ठाकुर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने पिछले दिनों खरीफ सीजन की फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की। इस मौके पर उन्होंने कहा-2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान देश के किसानों को उनकी उपज का डेढ गुणा मूल्य देने का जो वादा किया था, उसे आज पूरा कर दिया। उनकी इस घोषणा पर आम किसानों की बात यदि छोड़ दी जाए तो मेनस्ट्रीम की मीडिया और मोदी समर्थकों ने सरकार की खूब तारीफ करनी शुरू कर दी -देखिए मोदी जी का किसान प्रेम! उन्होंने किसानो के हित की जो बात कही ,उसे पूरा कर दिखाया।
जहां तक मुझे याद है, मोदीजी चुनावी सभाओं में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और उन सिफारिशों के आलोक में किसानों द्वारा उत्पादित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने की बात किया करते थे। चुनाव में जनता ने उनके एनडीए गठबंधन को बहुमत दिया। अब बारी उनके वादे को अमली रूप देने की थी। चार सालों तक देश के किसानो को फुसलाया बहलाया जाता रहा। अब जब 2019 का चुनाव निकट आ रहा है तो सरकार ने देश के किसानों को उनके कृषि उत्पादों ( खरीफ ) का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कथित रूप से लागत का 50 प्रतिशत जोड़ कर समर्थन मूल्य निर्धारित कर दिया है। यह बात दीगर है कि सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य पर देश के मात्र 6 फीसदी किसान ही अपनी उपज बेच पाते हैं। कम से कम शांता कुमार कमिटी की रिपोर्ट तो यही कहती है।
देश में हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 18 नवम्बर 2004 को तत्कालीन केन्द्र सरकार ने एक आयोग गठित किया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 2006 में केन्द्र सरकार को सौंप दी। रिपोर्ट में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया था कि किसानों को उसके फसल उत्पादन लागत पर 50 प्रतिशत जोड़ कर फसलों का समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाए।
फसल उत्पादन लागत निर्धारित करने के लिए कृषि मंत्रालय के अधीन कृषि लागत मूल्य आयोग (सीएपीसी ) नाम से एक संस्था कार्यरत है। यह तीन तरह से उत्पादन लागत तय करती है।1. कास्ट ए -1इसमें खाद, बीज, कीटनाशक, सिंचाई, मशीन चार्ज, कृषि मजदूरी, जमीन पर लगने वाला टैक्स या किराया ,पारिवारिक श्रम आदि शामिल होता है।2. कास्ट ए-2इस में कास्ट ए-1 वाले सभी खर्च शामिल होते हैं। इसमें लीज या पट्टे पर ली जाने वाली कृषि भूमि का किराया जोड़ा जाता है। अधिकांश लघु, सीमांत और भूमिहीन किसान बड़े जोतदारों से पट्टे पर जमीन लेकर खेती करते हैं। इसमें पारिवारिक श्रम (एफएल) भी शामिल होता है। यह लागत मूल्य ए -1 से ज्यादा होता है।3. कास्ट सी-2इस तरीके से लागत मूल्य निर्धारित करने की खास बात यह है कि इसमें ए-2 , एफ एल (पारिवारिक श्रम ) के अलावे निजी स्वामित्व वाली जमीन का किराया और कृषि कार्यों के लिए बैंकों से लिए गये कर्ज का ब्याज जोड़ा जाता है। जाहिर है, यह लागत मूल्य ए -1 और ए-2 से ज्यादा होता है।
यहां ए-2,+ एफ एल और सी-2 फार्मूले की उत्पादन लागत प्रति क्विंंटल इस प्रकार है —ए -2 + एफ एल सी–2 एम एस पीधान — 1166.00 1549.00 1750.00मक्का– 1131.00 1512.00 1700.00ज्वार– 1619.00 2174.00 2430.00बाजरा- 990.00 1333.00 1950.00रागी 1931.00 2440.00 2897.00अरहर– 3432.00 4770.00 5675.00मूंग– 4650.00 6184.00 6975.00उड़द- 3438.00 4756.00 5600.00
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने एक प्रेस नोट जारी कर केन्द्र सरकार द्वारा खरीफ फसल के निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपना असंतोष व्यक्त किया है। समन्वय समिति ने आगामी 13 जुलाई को वर्किंग ग्रुप की बैठक बुलाई है। 14 जुलाई को गांधी पीस फाउंडेशन में सभी 194 संगठनों की जेनरल बॉडी की मीटिंग बुलाई गई है, जिसमें सरकार द्वारा एमएसपी के इस धोखे के खिलाफ अगली रणनीति तय की जाएगी।