अखिलेश्वर पांडेय
24 जून 2018 को कोलकाता स्थित भारतीय भाषा परिषद के सभागार में विनय तरुण स्मृति समारोह-2018 का आयोजन हुआ। भारतीय भाषा परिषद की मंत्री विमला पोद्दार ने सभी का स्वागत किया। विभिन्न शहरों से आये विनय के दोस्तों और स्थानीय मीडियाकर्मियों समेत कई लोगों ने आयोजन में शिरकत की। विनय को श्रद्धांजलि देते हुए दोस्तों की आंखें नम हुईं। मंच की दायीं ओर टेबल पर दीवार से टिका विनय सफेद फूलों की माला पहने सभी को अपनी निश्चल मुस्कान के साथ अपलक निहारता रहा। रंजीत प्रसाद सिंह, प्रवीण कुमार और पारितोष दुबे ने बारी-बारी से भरी आवाज में विनय की स्मृतियों को साझा किया। मंचासीन अतिथि वागर्थ के संपादक डॉ शंभुनाथ, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के प्रोफेसर अरुण त्रिपाठी, कोलकाता प्रेस क्लब के अध्यक्ष स्नेहाशीष सुर विनय तरुण की यादों से भावुक हो गए।
विनय तरुण स्मृति समारोह – 2018
संतुलनवादी नजरिया जरूरी : स्नेहाशीष सुर
विनय तरुण स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के तहत इस बार विषय ‘अतिवादों के दौर में पत्रकारिता व गांधीवाद’ पर अपने मंतव्य में कोलकाता प्रेस क्लब के अध्यक्ष स्नेहाशीष सुर ने कहा कि महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा की राह पर पत्रकारिता की जो राह सुझाई थी, आज उसमें विचलन आ गया है। भारतीय पत्रकारिता में अतिवादी तत्वों का प्रवेश हो गया है। कुछ समाचार चैनल और अखबार सिर्फ सरकार के खिलाफ बोलते हैं तो कुछ पक्ष में। दरअसल आज की पत्रकारिता को चेक एंड बैलेंस की जरूरत है। मीडिया को चाहिए कि वह संतुलनवादी नजरिया अपनाये।
यह अंकुश का दौर है : एम अखलाक
वरिष्ठ पत्रकार एम अखलाक ने कहा कि यह पत्रकारिता के द्वंद्व का दौर है। पूंजीपतियों की मनमानी का दौर है। अंकुश का दौर है। अतिवादिता तो पत्रकारिता के आरंभिक काल से ही ही रही है. पर इन दिनों पत्रकारिता का स्वरुप बदल गया है। आपके हाथ बंधे हुए हैं और आप कुछ नहीं कर पा रहे। इसलिए यह लड़ने का दौर भी है। मीडिया अब सरकारों से टकराना नहीं चाहती इसलिए एक खास किस्म की वैचारिक अवधारणा हावी होती जा रही है। हमें लड़ना होगा खुद को बचाये रखने के लिए।
अपवाद बनने से बचना होगा : अरुण त्रिपाठी
मुख्य वक्ता महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रोफेसर अरुण त्रिपाठी ने अपनी बात कोलकाता और महात्मा गांधी को केंद्रित करके शुरू की। उन्होंने कहा कि बेलियाहाटा में महात्मा गांधी के 72 घंटे के अनशन ने कोलकाता के हृदय को बदल दिया था। गांधी जी इसलिए आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि उनके विचार अतिवादों को तोड़ते हैं। आज बड़े ही शातिराना ढंग से इतिहास के साथ खेल किया जा रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इतिहास एक दीर्घकालिक पत्रकारिता है और पत्रकारिता एक दीर्घकालिक इतिहास है। आज समतामूलक समाज की व्यवस्था को बनाये रखने की जरूरत है। श्री त्रिपाठी ने कहा कि सभ्यताओं के द्वंद्व को मिटाना आज की पत्रकारिता के लिए सबसे आवश्यक कार्य है। पत्रकारिता को अपवाद बनने से बचना होगा।
भारत आज भी अधपका राष्ट्र है : शंभुनाथ
भारतीय भाषा परिषद कोलकाता के निदेशक और वागर्थ पत्रिका के संपादक डॉ शंभुनाथ ने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि अतीत को बिसराना आज की सबसे बड़ी भूल है। बाजार में एकता है और समाज में भिन्नता। यह तर्कहीनता का दौर है इसलिए अतिवादिता ज्यादा है। भारत आज भी एक अधपका राष्ट्र है। गांधी जी के विचारों को आवश्यक बताते हुए उन्होंने कहा कि गांधी को बार-बार लगता था कि वे विफल हो रहे हैं। वे अपनी विफलताओं से ही मजबूत होते थे। हमारे समाज में तो अतिवाद और सामंजस्य हमेशा से ही रहा है। हिक्की गजट का उदाहरण देते हुए शंभुनाथ ने कहा कि भारतीय पत्रकारिता का जन्म ही अतिवाद से हुआ। पर दुर्भाग्य है कि आज के पत्रकारों के पास प्रतिवाद के ज्यादा अवसर नहीं हैं। स्वायतता संकुचित हो गयी है। उन्होंने गांधी को याद करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के लिए राष्ट्रीयता और मानवता दो शब्द नहीं थे, पर दोनों एक ही हैं। विरोध से संवाद महात्मा गांधी का मूल मंत्र था। पर आज यह खत्म होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि टकराहट हमेशा ही बर्बरता में होती है, सभ्यताओं के बीच टकराहट हो ही नहीं सकती।
नारद कमीशन का विमोचन
इस मौके पर मुजफ्फरपुर से आये डॉ सुधांशु कुमार की पुस्तक ‘नारद कमीशन’ का विमोचन मंचासीन अतिथियों ने किया। डॉ सुधांशु ने अपनी पुस्तक का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। यह व्यंग्य संग्रह है जिसमें वर्तमान हालात पर टिप्पणी की गयी है। समीक्षा प्रकाशन मुजफ्फरपुर से प्रकाशित यह पुस्तक आज के कई जरूरी मसले की तरफ पाठकों का ध्यान आकृष्ट करती है।
आयोजन के आरंभ में ही रंजीत प्रसाद सिंह ने विगत आठ वर्षों से हो रहे इस आयोजन, बदलाव डॉट कॉम और दस्तक के बारे में संक्षिप्त वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन अखिलेश्वर पांडेय और धन्यवाद ज्ञापन पारितोष दुबे ने किया। आयोजन को सफल बनाने में पंकज साव, आदित्य कुमार झा, शमा, तनुजा, आदि का भी योगदान रहा।