पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से
हो गयी देह दान की औपचारिकता पूरी। गत शुक्रवार, 15 जून को शपथ पत्र का काम कचहरी में एडवोकेट कन्हैया यादव भैया के सहयोग से संपन्न हुआ था तो सोमवार 18 जून को बीएचयू स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान के एनोटामी विभाग में फार्म भर कर सौंप दिया। साथ ही परिवार को मरणोपरांत कर्मकांड की समस्त जिम्मेदारियों से भी मुक्त कर दिया। मन पर से लगता है सारा बोझ उतर गया और सचमुच मैं काफी हल्का महसूस कर रहा हूँ।
हालाँकि यह निर्णय मेरा है। फिर भी यदि किसी ने मुझे उत्प्रेरित किया तो वह मेरे फूफा पंडित देव शंकर जी पुरोहित हैं। कर्सियान्ग ( दार्जीलिन्ग ) स्थित जगदीश मंदिर के, जो जगन्नाथ पुरी से जुड़ा हुआ है, फूफा जी सेवइत थे और सुबह से शाम पूजा-पाठ और अनुष्ठान ही उनका जीवन था। मगर उन्होंने वसीयत में देह दान करने के साथ ही ब्राह्मण भोज के स्थान पर गरीबों को खाना खिलाने के लिए लिखा था। चूँकि अंतिम समय में वह कैंसर ग्रस्त हो गये थे इसलिए देह दान नही हो सका। मगर हमारे भाइयों ने हजारों लोगों के लिए लंगर चलाया। जीवन क्षणभंगुर है। समय पंख लगा कर उड़ता है। इस संध्या बेला में सोचा कि न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाय। अतः शरीर का दान मानवता की सबसे बड़ी सेवा होगी।
परिवार के लिए छायादार वृक्ष रहा तो मोहल्ले की भी भरसक सेवा की। बतौर खेल पत्रकार पाठकों के दिलों तक पहुँचने की कोशिश की तो टेलीविजन पर दर्शकों को बिना लाग – लपेट सच परोसा और वाल्मीकि का मुखौटा लगाए एक “रत्नाकर” क्रिकेटर के चलते इसकी कीमत भी चुकायी। राजनेता कभी नहीं रहा। मगर राजनीति मेरे लिए सर्वथा सेवा रही बिना किसी चाहत या आकांक्षा के। जो बन पड़ा दिया, लिया कुछ नहीं।
यदि सेवा की भावना है तो आपकी पहुंच सीधे उस परमात्मा तक है जो आपके ह्रदय में विराजता है। उसी की इच्छा से इस शरीर का दान किया है। बस परमात्मा मेरी यह इच्छा पूरी करें।
पद्मपति शर्मा। यूसी न्यूज में एक्सपर्ट स्पोर्ट्स एनालिस्ट। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में बतौर खेल पत्रकार कई प्रयोग किए और खेल पत्रकारों की एक पूरी पीढ़ी को तैयार करने का श्रेय। संप्रति- वाराणसी में निवास। आपसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।