आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरिवाल ने हाल ही में विधानसभा का एक खास सेशन बुलाया जिसका एजेंडा था दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना। अपने इस अति महत्वपूर्ण एजेंडे को पूरा करने के लिए दिल्ली सरकार ने 7 जून को एक रेसोल्यूशन पास किया। अब सवाल ये है कि आखिर मुख्यमंत्री केजरिवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाने पर आमदा क्यों है? दिल्ली अगर पूर्ण राज्य बन भी जाता है तो इससे उनका या उनकी पार्टी का या फिर दिल्ली के लोगों का क्या फायदा होगा?
वैसे, ऐसा पहली बार नहीं है जब दिल्ली में पूर्ण राज्य की मांग जोर पकड़ रही है। ऐसा पहले भी हो चुका है और अगर ये कहे कि ऐसा हर बार दिल्ली चुनाव के निकट आते ही होने लगता है तो गलत नहीं होगा। ये मांग हर दिल्ली चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक पार्टियां करती रही हैं और चुनाव खत्म होते ही ये मांग ठंडे बस्ते में। लेकिन, दिल्ली के पूर्ण राज्य बनने का मतलब क्या है, आइए जरा इसे समझने की कोशिश करते हैं।
बड़ा सवाल
सवाल ये है कि जब दिल्ली में विधान सभा है, मुख्यमंत्री है, काउंसिल ऑस मिनिस्टरस है, तो फिर दिल्ली पूर्ण राज्य क्यों नहीं है और ये फुल स्टेट होल्ड की डिमांड क्यों कि जा रही है ?
दिल्ली क्या है? एनसीआर या एनसीटी?
हम आम तौर पर कहते है कि दिल्ली एक राजधानी है लेकिन टेक्निकली क्या दिल्ली एक शहर है, राज्य है या यूनियन टेरिटरी है। इसके अलावा हम एनसीआर का भी ज़िक्र करते है। आपने कई बार खबरों में पढा होगा एनसीआर ऑफ दिल्ली या एनसीटी ऑफ दिल्ली। अब इन शब्दों का मतलब क्या है ? दिल्ली न सिर्फ एक शहर, राजधानी और राज्य है बल्कि ये केंद्र शासित प्रदेश यानि यूनियन टेरिटरी भी है। लेकिन पहले ये राज्य नहीं था। हुआ दरअसल ऐसा कि जब देश आजाद हुआ था तो इसे एक केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। तब ये एक राज्य नहीं था। साल 1992 में इसे गर्वरमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी दिल्ली (एनसीटी) का दर्जा दिया गया।
फिलहाल दिल्ली की व्यवस्था
इस वक्त अरविंद केजरीवाल एनसीटी के मुख्यमंत्री है। एनसीटी में 11 जिले और पांच नगर निगम (दिल्ली में उत्तरी दिल्ली नगर निगम, दक्षिण दिल्ली नगर निगम, पूर्वी दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगर निगम और दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड) है। दिल्ली में करीब 300 गांव है लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि यहां कोई पंचायती राज व्यवस्था नहीं है। ऐसे में ये नगर निगम शहरी क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र दोनों को ही संचालित करते है। लेकिन ये नगर निगम दिल्ली यानि एनसीटी के अंतर्गत नहीं आते और सीधे केंद्र को रिपोर्ट करते हैं।
क्या है एनसीआर ?
ये योजना साल 1985 में उस वक्त लागू की गई थी जब शहर दरअसल काफी बड़े और फैलते जा रहे थे। दिल्ली के अलावा तब इसके आस पास के राज्यों में गुड़गांव (अब गुरुग्राम), फरीदाबाद, गाजियाबाद जैसे सैटेलाइट टाउन डेवेलप हो रहे थे और तब उस वक्त इनके लिए कोआर्डिनेट प्लानिंग की जरुरत समझी गयी। ताकि पूरे क्षेत्र के विकास के लिए प्लानिग एक साथ की जा सके। एनसीआर क्षेत्र में सरकार 24 जिलों को मानती है। हालांकि इसमें समय-समय पर कई और जिलों को भी जोड़ा गया है, जैसे हाल ही में उत्तर प्रदेश के शामली जिले को एनसीआर लिस्ट में जोड़ा गया है।
फुल और हॉफ स्टेट थ्योरी
अब बात दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था की, दरअसल आजादी के बाद दिल्ली को एक पार्ट-सी स्टेट बनाया गया था। उस वक्त जितने भी भारत के राज्य थे, उन्हें पार्ट-ए, पार्ट-बी या पार्ट-सी की कैटेगरी में रखा गया था। ये व्यवस्था 1956 तक चली। तब तक दिल्ली की अपनी विधानसभा थी और अपना मुख्यमंत्री भी होता। लेकिन 1956 में स्टेट रि ऑर्गनाइजेशन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार राज्यों का बंटवारा किया गया, बॉर्डर्स फिर से बनाये गए और इसी कम्र में दिल्ली को यूनियन टेरिटरी बना दिया गया। इसके बाद से दिल्ली एक राज्य से यूनियन टेरिटरी बन चुका था। यूनियन टेरिटरी का मतलब है कि वहां पर अब राज्य सरकार का नहीं बल्कि केंद्र का शासन होगा। राज्य अब राष्ट्रपति शासन के अधीन होगा। जैसा कि हम जानते है अमूमन भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मंत्रिमंडल के सुझाव के बिना कोई निर्णय नहीं ले सकते। यानि दिल्ली पर केंद्र सरकार का एक तरह से नियंत्रण हो गया। इसके बाद दिल्ली की विधान सभा और काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स को हटा दिया गया और विधानसभा भंग कर दी गयी।
ये सिलसिला तकरीबन 35 सालों तक चलता रहा, लेकिन 1991 में एक नया कानून आया- नेशनल कैपिटल टेरिटरी एक्ट 1991, इस कानून के तहत दिल्ली में दोबारा विधानसभा गठित की गयी और 1993 में लेजिस्लेटिव एसेंबली की स्थापना हुई, इसके बाद एक बार फिर से दिल्ली में चुनाव शुरू हुए और उसके बाद से लगातार दिल्ली में हर 5 साल में जनता की चुनी सरकार सत्ता में आती है। लेकिन ये सत्ता महज छलावा है।
दिल्ली से 70 विधायक चुनकर आते है जो सरकार चलाते है। लेकिन दिक्कत ये है कि 1991 में लाए गए इस एक्ट के मुताहिक दिल्ली की व्यवस्था ऐसी है कि यहां केंद्र और एनसीटी की सरकार दोनों ही मिलकर दिल्ली पर शासन करती है। मतलब संयुक्त प्रशासन होता है। जिसके मुताबिक कुछ शक्तियां केंद्र के पास तो कुछ शक्तियां दिल्ली सरकार को दी गयी है। जिससे गतिरोध पैदा होता है। इस अधिनियम के तहत दिल्ली को कासी स्टेट का दर्जा दिया गया, मतलब अब दिल्ली न तो यूनियन टेरिटरी रहा और न ही पूर्ण राज्य रह सका। फिलहाल दिल्ली में खुद की विधानसभा है, लेफ्टिनेंट गवर्नर है, काउंसिल ऑफ मिनिस्टर है और मुख्यमंत्री भी है।
दिल्ली की दिक्कत
राज्यों के पास स्टेट लिस्ट के विषयों पर कानून बनाने का पूरा हक होता है। खासकर पुलिस प्रशासन पर पूरा अधिकार होता है लेकिन दिल्ली के साथ ऐसा नहीं है। दिल्ली विधानसभा में कोई भी कानून पास कराना है तो उससे पहले केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है और यही समस्या का केंद्र बिन्दु है। दिल्ली पुलिस भी सरकार के दायरे से बाहर है और केंद्र के अधीन है जिससे राज्य की कानून-व्यवस्था पर कंट्रोल नहीं किया जा सकता।
आम आदमी पार्टी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग क्यों कर रही है ? इसके पीछे तीन कारण खास है
1. दिल्ली सरकार के मुताबिक दिल्ली पुलिस पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं है जब भी कोई क्राइम होता है लोग दिल्ली सरकार पर आरोप लगाते है और दिल्ली सरकार आपराधिक मामलों पर अंकुश नहीं लगा पा रही है।
2. दूसरा कारण है दिल्ली डेवलपमेंट ऑथिरिटी (डीडीए), जो दिल्ली की सारी ज़मीन का कंट्रोल रखती है और अगर दिल्ली में कोई सरकारी काम के लिए जमीन चाहिए तो उसके लिए डीडीए से पारित किया जाना जरुरी है जबकि डीडीए भी दिल्ली सरकार के अधीन न होकर केंद्र सरकार को रिपोर्ट करती है। जिसकी वजह से दिल्ली सरकार कोई विकास की योजना पर अमलीजामा नहीं पहना पा रही और इसके चलते दिल्ली सरकार-केंद्र के बीच मचे घमासान में नुकसाल दिल्ली के लोगों का हो रहा है।
3. तीसरी वजह है एमसीडी, ये भी केंद्र सरकार के ही कंट्रोल में है और राज्य सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं है। इसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ता है और दिल्ली के नागरिकों को अपने कामों के लिए इन तीनों विभागों से डील करना पड़ता है और परेशानी उठानी पड़ती है। लेकिन जब कोई परेशानी होती है, और बात जवाबदेही की आती है तो ठीकरा राज्य सरकार पर फूटता है।
ये है असली मसले की जड़
आम आदमी पार्टी की मानें तो उनके मुताबिक उनके टॉप प्रायरिटी लेवल के काम नहीं हो पा रहे। मसलन- जनलोक पाल बिल पास नहीं हो पा रहा है, सीसीटीवी शहर में नहीं लगा पा रहे, क्योंकि बजट नहीं मिल रहा, अवैध कॉलोनियां या जो स्लम एरिया हैं सरकार उन्हें नियमित नहीं कर पा रही। इसके अलावा मेट्रो किराए में बढ़ोतरी होती है तब भी सरकार कुछ नहीं कर पाती। इसीलिए मौजूदा सरकार की मांग है कि इन सभी चुनौतियों से निपटना का एक ही रास्ता है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य बना दिया जाए। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसी ही मांग पूर्व में बीजेपी भी उठा चुकी है और 1990 के दशक में, 2006 से 2012 तक बीजेपी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पुरजोर तरीके से उठाती रही थी। यही आम आदमी पार्टी का भी सवाल है कि जो पार्टी खुद इस मांग की पक्षधर थी, अब वो इस पर खामोश क्यों है ?
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों जरुरी ?
1- एनसीआर की जनसंख्या लगभग 2 करोड़ है। मतलब कि दिल्ली जनसंख्या के हिसाब से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर है।
2- इसी की वजह से दिल्ली की अर्थव्यवस्था भी काफी बड़ी है।
3- क्राइम भी एक बड़ा मुद्दा है।
4- दिल्ली में कई एजेंसिया काम करती है जिनमें तालमेल की कमी होती है।
5- आय का एक बड़ा हिस्सा केंद्र के पास जाता है जो कि पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर दिल्ली सरकार को मिल जाएगा।
क्यों न दिया जाए, पूर्ण राज्य का दर्जा ?
1- मसला सिर्फ दिल्ली का नहीं है, दिल्ली देश की राजधानी है और भारत की राजधानी को राज्य सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा सा सकता।
2- प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति निवास और संसद के अलावा यहां कई देशों के दूतावास भी हैं जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है।
3- अगर पूर्ण राज्य का दर्जा मिला तो दिल्ली की जमीन राज्य सरकार के कंट्रोल में आ जाएगी और भविष्य में दिल्ली में किसी भी काम के लिए अगर केंद्र को जमीन की जरुरत पड़ती है तो वो राज्य सरकार पर निर्भर हो जाएगी।
4- अभी की स्थिति में केंद्र सरकार कई विकास कार्यों को परवान देने में लगी है जैसे- एयरपोर्ट, फ्लाई ओवर आदि। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया तो ये सभी काम राज्य का विषय बन जाएंगे और इससे टैक्स का भार दिल्ली वासियों पर पड़ेगा।
ऐसे में क्या किया जाए ?
सुझाव नंबर 1-
केंद्र चाहे तो जहां तक दिल्ली पुलिस की बात है तो लुटियंस दिल्ली के इलाके को छोड़ सभी जगहों पर पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन कर दी जाए।
सुझाव नंबर 2-
लैंड यूज प्लानिंग लोकल गर्वमेंट के अधीन आने चाहिए, क्योंकि ऐसा संविधान के 74वें संशोधन में भी साफ कर दिया गया है, ऐसे में नगर निगम ही फैसला करेगा।
सुझाव नंबर 3-
राज्य सरकार ही जवाबदेह जरुरी, इससे दोनों सरकारों के बीच चल रहे ब्लेम गेम का खात्मा होगा। जनता की चुनी सरकार बहानेबाजी नहीं कर पाएगी।
विक्रांत बंसल, टीवी पत्रकार