बदलाव टीम के साथियों के साथ 15 अप्रैल को रूबरू होंगे वरिष्ठ पत्रकार कुमार नरेंद्र सिंह। मार्च महीने से बदलाव ने वरिष्ठ पत्रकारों से मुलाकात और अनौपचारिक बातचीत का सिलसिला शुरू किया है। इसकी शुरुआत वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के साथ बातचीत से हुई थी। इस कड़ी के दूसरे आयोजन में अब मौका कुमार नरेंद्र सिंह के अनुभवों और सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में हो रहे बदलावों पर उनके ऑब्जर्बेशन साझा करने का है।
मुसाफिर हूं यारों -2
बिहार के आरा जिले के निवासी कुमार नरेंद्र सिंह ने पटना विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, दिल्ली से उच्च शिक्षा हासिल की। आप पिछले 3 दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। जातिवाद और भारत की जाति व्यवस्था पर बेहतरीन रिसर्च। बिहार के जातीय संघर्ष पर आपकी किताब ने खूब सुर्खियां बटोरीं और लंबे अरसे तक चर्चा में रही। रणवीर सेना जैसे जातीय संगठन के उदय से लेकर उनके तमाम क्रिया-कलापों पर आपने मुकम्मल रौशनी डाली। मध्यप्रदेश के तीन मुख्यमंत्रियों के सलाहकार के तौर पर आपने सत्ता के गलियारों में चलने वाले खेल को बड़ी करीब से देखा। आपके आलेखों में वो जाने अनजाने सामने आते रहते हैं।
आपका दावा है कि पत्रकारिता सत्ता की सहचारिणी नहीं हो सकती। इस लिहाज से आज की पत्रकारिता आपको बेहद निराश कर रही है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे जुमले भी आपको परेशान करते हैं। आपका मानना है कि राष्ट्रवाद की छतरी पाजियों की पनाहगाह है , और कुछ नहीं । इस नारे के साथ ही आपके सारे पाप धुल जाते हैं। ये फासिस्ट ताकतों का सबसे कामयाब हथियार है जिसके जरिए ये ताकतें एक एक कर सभी संस्थानों का गला घोंट देती है और फिर मसीहा के तौर पर खुद को पेश करती हैं। आप अपनी रचनात्मक ऊर्जा की वजह से नई संभावनाएं तलाशने में यकीन करते हैं इसलिए कहीं टिके नहीं रहते।
सहारा समय, फोकस टीवी, नई दुनिया, अमर उजाला और कई मीडिया संस्थानों में वरिष्ठ संपादकीय भूमिकाओं के निर्वहन के बाद इन दिनों एक स्वयंसेवी संगठन के साथ जुड़े हैं। इसी संगठन की एक पत्रिका के संपादन की जिम्मेदारी भी आपके कंधों पर ही है।