राकेश कायस्थ
यह समय भारतीय समाज के स्मृति लोप का है। याद्दाश्त गजनी की तरह आती-जाती रहती है। जो लोग यह कहते हैं कि पहले वाले प्रधानमंत्री भी मीडिया से बात नहीं करते थे, उन्हें थोड़ा होमवर्क करना चाहिए। राजीव गांधी का रवैया मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर बेहद खराब था, लेकिन उनके बाद जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, सबने मीडिया से बात की है और उनके अप्रिय सवालों के जवाब दिये हैं। अटल बिहारी वाजपेयी संसद से निकलते वक्त मीडियाकर्मियों के सवालों पर रुक जाया करते थे और जवाब देकर ही आगे बढ़ते थे।
तीन साल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस ना करने वाले प्रधानमंत्री के ज़ी न्यूज़ के इंटरव्यू में कुछ गलत नहीं है। कोई शिकायत नहीं होती अगर इंटरव्यू लेने वाला पत्रकार की तरह सवाल करता। ‘मौन’ मोहन सिंह के नाम से बदनाम किये गये पिछले प्रधानमंत्री लगातार मीडिया से बात करते थे। प्रेस कांफ्रेंस करने के मामले में उनका रिकॉर्ड अपने पूर्ववर्तियों से कहीं बेहतर रहा है। आप यू ट्यूब पर जाकर मनमोहन सिंह के प्रेस कांफ्रेंस देख सकते हैं। हर स्तर के पत्रकार के सवालों का जवाब उन्होंने दिया है।
मैं यहां 2011 के एक कांफ्रेंस का जिक्र कर रहा हूं। प्रधानमंत्री ने देश भर के संपादकों से बात की थी। इनमें से ज्यादातर लोगो की ब्रांडिंग आज कांग्रेसी ‘चमचे’ की है। उस समय सरकार यूपीए की थी, ज़ाहिर है, वे ज्यादा बड़े ‘चमचे’ रहे होंगे। कभी ज़रा इन `चमचों’ के सवाल परखिये और चौधरी साहब का इंटरव्यू देखिये। अगर आपको लगता है कि चमचों ने चौधरी साहब के मुकाबले हल्के सवाल पूछे थे तो फिर सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाइये कि सुधीर चौधरी को संविधान संशोधन करके देश के सभी मीडिया समूहों का एडिटर इन चीफ बना दिया जाये।
प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत अरुण पुरी ने टू जी घोटाले पर अपने सवाल के साथ की।
दूसरे पत्रकार प्रांजल शर्मा ने पूछा कि अगर मीडिया में निगेटिव ख़बरें हैं तो इसकी वजह यह क्यों ना मानी जाये कि सरकार पॉजिटिव ढंग से काम नहीं कर रही है? आर्थिक सुधारों की रफ्तार धीमी है
तीसरा सवाल राजदीप सरदेसाई ने पूछा— आप अगर संसद को व्यवस्थित ढंग से चलाना चाहते हैं तो फिर टू जी स्कैम की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति क्यों नहीं गठित करते? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि आप संयुक्त संसदीय समिति के सामने पेश होने से बचना चाहते हैं? क्या आपको लगता है कि आप अपनी ही सरकार में भ्रष्ट लोगो से घिरे हुए हैं?
ईटीवी के एस अशरफ ने पूछा— तेलंगाना मामले में कांग्रेस ढुलमुल रवैया अपनाती रही है। केंद्र सरकार की क्या प्रतिक्रिया है?
शुभाशीष मोइत्रा कोलकाता टीवी ने पूछा— करप्शन का सवाल जिस तरह आ रहा है, क्या आपको ऐसा लगता है कि आपका गठबंधन टूट सकता है?
प्रणब राय एनडीटीवी— अगले चुनाव में आपको डबल इनकंबेंसी झेलनी पड़ेगी। विपक्ष के हमले होंगे और पार्टी के भीतर से भी आप पर हमलें होंगे। क्या आपको लगता है कि आप 2014 के चुनाव में प्रधानमंत्री पद का चेहरा रह पाएंगे?
शाज़ी ज़मां स्टार न्यूज़— आप के जीवन का लंबा समय राजनीति से दूर गुजरा। क्या आपको कभी ऐसा लगा कि मौजूदा राजनीति आपके मिज़ाज के अनुरूप नहीं है?
सतीश के सिंह ने पूछा— प्रधानमंत्री जी आपने यह प्रेस कांफ्रेंस क्यों बुलाई है? दूसरा सवाल यह है कि जब मीडिया शोर मचाता है, तभी भ्रष्टाचार के सवाल पर सरकार की नींद क्यों खुलती है?
और तो और दूरदर्शन की नीलम शर्मा ने भी पूछ लिया— इस देश के लोग भ्रष्टाचारियों को सजा मिलते देखना चाहते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसा करके सरकार को संदेश देने की ज़रूरत है।
सबसे कड़क सवाल अर्णब गोस्वामी ने पूछा— आप कह रहे हैं कि आपने जीवन में बहुत समझौते किये। लेकिन भ्रष्टाचार के साथ समझौता नहीं हो सकता? आपकी नाक के नीचे भ्रष्टाचार हो रहा है.. फिर अर्णब ने लंबा भाषण दिया। प्रधानमंत्री ने जवाब दिया। उसके बाद अर्णब ने अपना भाषण दोबारा शुरू किया।
प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार हरीश खरे ने कहा कि सामान्य शिष्टाचार बनाये रखिये। लेकिन मनमोहन सिंह ने अर्णब का दूसरा सवाल भी ध्यान से सुना और पूरा जवाब दिया। अर्णब गोस्वामी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी का भी इंटरव्यू किया है। ज़रा वो भी सुन लीनिएगा। दो सरकारों के बीच मीडिया के चरित्र में कितना बदलाव आया है यह बात आपको समझ में आ जाएगी, अगर आप समझने में सक्षम हों, या समझना चाहें।
राकेश कायस्थ। झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ। टीवी टुडे, बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों स्टार स्पोर्ट्स से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।