बदलना अगर स्वभाव है तो बदल डालने की मुहिम का हिस्सा बन जाओ। इसे करने में थोड़ा कष्ट तो होगा परन्तु अपनी इच्छाशक्ति के दम पर एक कदम आगे चलने की हिम्मत करेंगे तो परिवर्तन तो होना ही है। देश की पहली उपभोक्ता अदालत, लखनऊ के जज श्री राजर्षि शुक्ल कुछ ऐसे ही खयालात से ओत-प्रोत रहे हैं। उन्होंने कुछ अलग करने की दृढ़ता के साथ उपभोक्ता अदालत में न्याय की खातिर आये वृद्ध, शारीरिक अस्वस्थ, सैनिक तथा भूतपूर्व सैनिकों को घर बैठे न्याय दिलवाने की मुहिम शुरू की है।
जज श्री राजर्षि शुक्ल की पारिवारिक पृष्ठभूमि ही सार्वजनिक जीवन में अपने दायित्व के साथ कुछ नया करने की रही है। आपके पिता श्री एचएस शुक्ल, बिहार पुलिस सेवा में अधिकारी थे, माता इंद्रा शुक्ल गृहणी रहते हुए बच्चों को एक तरफ शैक्षणिक क्षेत्र में बेहतर करने की प्रेरणा देती रहीं तो वहीं सामाजिक सेवा का व्याव्हारिक आदर्श भी सिखाया। राजर्षि शुक्ल भाईयों मे सबसे छोटे हैं। दोनों बड़े भाई राजन शुक्ल और राजेश शुक्ल प्रशासनिक अधिकारी हैं और समाज में बदलाव को लेकर चिंतनशील रहते हैं। एक भाई पटना (बिहार ) में प्रिंसिपल हैं, तो दूसरे भाई उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा में कार्यरत हैं। सरकार की सेवा के साथ साथ गरीब-गुरबों की जिंदगी में बदलाव की कोशिशें इस परिवार की ओर से हमेशा की जाती हैं। बैंगलोर लॉ यूनिवर्सिटी में हाल ही में ऑल इंडिया जजेज एग्जामिनेशन के टॉपर रहे हैं राजर्षि शुक्ल। नए साल के मौके पर हम बदलाव के ऐसे ही नायकों के साथ बातचीत करने का सिलसिला श्री राजर्षि शुक्ल के साथ शुरू कर रहे हैं। टीम बदलाव के लिए लखनऊ के साथी जयंत कुमार सिन्हा ने जज श्री राजर्षि शुक्ल से बातचीत की।
बदलाव- उपभोक्ता अदालतों में आप तमाम तरह के प्रयोग कर रहे हैं। इस नये बदलाव के पीछे की प्रेरणा और मकसद के बारे में कुछ बताएं ?
राजर्षि शुक्ल– मेरा जन्मस्थान दुमका है। चूँकि पिताजी बिहार पुलिस में अधिकारी थे। पिताजी का ट्रांसफर होता रहता था। हमलोग दुमका से पटना चले आये। कंकड़बाग से 10+2 की शिक्षा प्राप्त की। फिर बी.ए ( इंग्लिश) करने के बाद दिल्ली गया। दिल्ली लॉ कालेज से एलएलबी की डिग्री ली। अब इच्छा थी अच्छी नौकरी की। यह दौर प्रत्येक इंसान के लिए संघर्ष का क्षण होता है, ऐसा मेरा मानना है। तो इस संघर्ष के दिनों में मुझे बांग्ला साहेब गुरुद्वारे के लंगर का सहारा मिला। वैसे मैं आज भी दाल, चावल और आलू भूजिया ही पसंद करता हूँ। खैर अच्छी नौकरी मुझे मिले, इसके लिए प्रयासरत रहता था। वहीं मेरे दोनों बड़े भाई राजन शुक्ल और राजेश शुक्ल बतौर आईएएस उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा तथा एक भाई प्रिंसिपल हैं, जो बिहार मे कार्यरत हैं। अन्ततः मुझे भी मुकाम मिला। फिलहाल उपभोक्ता अदालत, लखनऊ में रहते हुए सरकार की सेवा कर रहा हूँ। पत्नी प्रियंका शुक्ल और तीन बेटियां सुहाना, शैर्या और शिवानी का सहयोग निरंतर मिलता रहता है।
बदलाव- समाज में लीक से हटकर कुछ सोचना, करना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है। खासकर सरकारी मुलाजिम और अधिकारी ऐसी पहल करने से हिचकते हैं। आपको कहां से हिम्मत मिलती है?
राजर्षि शुक्ल- देश बदल रहा है, ऐसे में थोड़ा बहुत तो बदलाव हरेक में होना चाहिए। खासकर मैं अपने कार्यक्षेत्र की बात करूं तो उपभोक्ता अदालत में बिल और उससे संबंधित पेपर की आवश्यकता होती है। फिर भी कुछ केस में पैरवी के लिए आये वृद्ध और शारीरिक रुप से लाचार को देख मन में पीड़ा होती थी। जब कभी किन्हीं कारणों से अगली तारीख तक बात चली जाए तो उन वृद्ध और शारीरिक रुप से अक्षम लोगों के चेहरे पर आये तनाव को देख मुझे उनकी विवशता का अनुमान जरूर होता था। एकाध बार मैंने स्वयं उन लोगों की बातों को सुना जो वो अपने वकील से करते थे। कुछ ऐसे भी मिले जिन्हें दुकानदार या कम्पनी ने इस कदर धोखा दिया कि वो आर्थिक रुप से भी टूट गये। ऐसे में उनके पास कोर्ट फीस तक जमा करने और वकील का खर्च देने तक की हैसियत नहीं रही। इस तरह की घटनाएं मुझे बेचैन कर जाती हैं।
इंसाफ़ की डगर का एक योद्धा
- कंज्यूमर कोर्ट के जज राजर्षि शुक्लजी ने अब तक 7000 केसों का निपटारा किया
- अस्पताल और बिल्डर माफिया के ख़िलाफ़ कई अहम फ़ैसले
- रेलवे और दूसरे सरकारी महकमों को भी सख़्त फ़ैसलों के जरिए सबक दिया
- कुछ बिल्डरों ने फ़ैसले को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उच्च अदालतों ने भी जज राजर्षि शुक्ल के फ़ैसले पर लगाई मुहर।
- रेलवे में सामान चोरी पर मुआवजे का ऐतिहासिक फैसला भी आपने दिया
- उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा से कभी समझौता नहीं किया
- कोर्ट में सख़्त न्यायाधिकारी और आम जीवन में सरल चित्त इंसान।
- परिवार और समाज के लिए वक़्त निकालते हैं।
- उपभोक्ताओं की मदद के लिए शुरू किए मिशन को पहले उत्तर प्रदेश में फैलाना और फिर देशव्यापी बनाने का संकल्प।
बदलाव- सैनिकों को विशेष सुविधा मुहैया कराने के पीछे क्या उद्देश्य रहा ?
राजर्षि शुक्ल- सैनिक सरहद पर हमारी रखवाली करते हैं, अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित कर रखा है। ब-मुश्किल से छुट्टी लेकर परिवार के साथ कुछ पल गुजारने घर को आते हैं। अब अगर उन्हें यहाँ भी चैन नहीं मिले तो, ऐसी स्थिति में बेचारों को शारीरिक और मानसिक तनाव ही नसीब होगा। तो हमने उपभोक्ता अदालत में विशेष सुविधाएं देने की पहल की। इसमें वर्तमान और भूतपूर्व सैनिकों को जोड़ा। ताकि उन्हें कुछ तो सुकून मिले।
बदलाव- आम लोग अदालतों की ओर उम्मीदों भरी निगाह से देखते हैं। न्याय व्यवस्था पर ये भरोसा कायम रखने के लिए ज्यूडिशियरी को सतत चिंतनशील और क्रियाशील रहना जरूरी है। आप क्या सोचते हैं?
राजर्षि शुक्ल- मैं कंज्यूमर कोर्ट की बात करूं तो लाचार और बेबस लोगों की मदद के लिए अलग से काम करने के दो अहम पहलू थे। पहला आर्थिक रुप से लाचार के लिए कोर्ट फीस की व्यस्था करना और दूसरा वकील को तैयार करना। तो मैंने स्वयं ही कोर्ट फीस देने का निर्णय किया। जिसका भुगतान मैं खुद करता हूं। अब कुछ सकारात्मक सोच के वकील को अपने विचार के बारे में बताया। और उनसे कहा कि आप इस काम में सहयोग करें, बगैर किसी लोभ या लाभ के। इस काम को करके धन तो नहीं कमा पाएंगे, लेकिन दुआएं जरूर मिलेंगी।
खैर! इस पहल पर वर्तमान में छ: वकील पूरी ईमानदारी से काम कर रहे हैं। जो आर्थिक रूप से लाचार हैं, उनके लिए मैं फीस देता हूँ। तो ऐसे 2017 की दीपावली के बाद से यह काम करना शुरू किया। अभी तक तीस केस आये हैं, जिसमें दो पर फैसला भी हो गया।
बदलाव- ये शुरुआत लखनऊ तक ही क्यों सीमित रहे? प्रदेश के सभी उपभोक्ता अदालत मे ऐसी टीम बने तो कितना सुखद हो?
राजर्षि शुक्ल- मैं सदैव सरकार के साथ हूँ । वैसे भी उपभोक्ता अदालत का मतलब और मकसद ही आम लोगों को उनका वाजिब हक दिलाना है। देश के युवा वकीलों मे अद्भुत काबिलियत है। बस एक प्रयास करने की जरुरत है। थोड़े से प्रयास से कुछ अच्छा और जनहितकारी हो सकता है, तो इसमें क्या दिक्कत।
बदलाव- उपभोक्ता अपने हित को कैसे समझें और इंसाफ़ के लिए क्या करें?
राजर्षि शुक्ल– हमारी व्यवस्था में दो तरह के उपभोक्ता हैं- एक महानगरीय जीवन वाले तो दूसरे छोटे शहरो या गाँवों के। अक्सर हम टैक्स बचाने या किसी और कारण से अपनी खरीदारी पर दुकानदार से बिल नही माँगते। अब किसी ऐसी स्थिति में जब हमें हानि होती है या यूँ कहे कि हम ठगे जाते हैं तो हमारी लड़ाई मुश्किल हो जाती है। थोड़ी सी लापरवाही या लालच के चक्कर में हम वर्षों की मेहनत से कमाए धन से हाथ धो बैठते हैं। उपभोक्ता की जिम्मेदारी बनती है कि भुगतान की रसीद ले। अगर उसके पास बिल है, तब उस समय हमें न्यायालय ही न्याय के साथ हक दिला सकता है। बशर्तें हमने भुगतान करते समय उस भुगतान की रसीद बनवाई हो। वैसे सरकारी नियमानुसार उपभोक्ता अदालत में 90 दिन में फैसला हो जाना चाहिए। परन्तु किसी न किसी कारणवश यहाँ केस वर्षों से लम्बित पड़े हुए हैं। वैसे सर्वोच्च न्यायालय ने पुराने मुकदमे को निपटारे पर जोड़ दिया है। देर सवेर न्याय तो जरूर मिलेगा। लेकिन इसके लिए प्रत्येक को सजग रहना होगा। उपभोक्ता हित के लिए जागो ग्राहक जागो महज स्लोगन नहीं है, हमारा मिशन है।
जयंत कुमार सिन्हा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व छात्र। छपरा, बिहार के मूल निवासी। इन दिनों लखनऊ में नौकरी। भारतीय रेल के पुल एवं संरचना प्रयोगशाला में कार्यरत।
Good story for consumer.
Aise mahaan vyakti yugo yogo me paida hote hai