देवांशु झा
बेटे ने बूढ़ी मां से कहा
मां चलो, सूर्य नमस्कार करते हैं
लगभग अपंग मां सहज तैयार हुई
बहू ने खुश होकर दरवाजा खोला
बेटे ने मां को सीढ़ियों से ऊपर खींचा
मां बीच-बीच में लंगड़ाती हुई गिरी
बेटे ने बड़े प्रेम से मां को संभाला
प्रेम की ये तस्वीरें दुनिया ने देखी
उसके बाद का प्रेम अनदेखा रह गया
और जो अनदेखा था वह यह है कि
बेटे से मां का दुख देखा न गया
मुक्त आकाश के नीचे मां माटी से मिली
तो क्या हआ बेटे ने मां को धक्का दिया
पहले भी तो बेटे ने मां को बल्ले से मारा है
पिता ने बेटी का बदन भी सहलाया है
अब इन सब बातों का अर्थ नहीं है
सभी वध्य है, सभी गम्य हैं और सभी भोग्य
अभेद्य है तो बस बलिष्ठ होती क्षणिक सत्ता
जिसके निविड़ आकाश तले जी रहा है आदमी, ताकि
अपना चुना हुआ आनंद अखंडित रहे
स्वार्थ रहे सुरक्षित, हाथ रहे अकंपित
कांपता रहे समय स्थिर रहें बेटे
और ऐसे ही माताओं के साथ मरते रहें मनुष्य
देवांशु झा। देवघर, झारखंड के निवासी। इन दिनों दिल्ली में प्रवास। पिछल दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। कलम के धनी देवांशु झा ने इलेक्ट्रानिक मीडिया में भाषा का अपना ही मुहावरा गढ़ने और उसे प्रयोग में लाने की सतत कोशिश की है। आपका काव्य संग्रह ‘समय वाचाल है’ हाल ही में पाठकों के हाथ में आया है। आप उनसे 9818442690 पर संपर्क कर सकते हैं।
Ved Prakash -ऐसे लोगों को नरक में भी जगह नहीं मिल सकती