प्रियदर्शन
साहित्य समारोह अक्सर अपनी भव्यता और भटकावों में मुझे अरुचिकर लगते रहे हैं। इन समारोहों में साहित्य और विचार पीछे छूट जाते हैं और ग्लैमर और चकाचौंध का शोर मिलता है। मगर देहरादून साहित्य समारोह में दो दिन गुजार कर लगभग आप्लावित लौटा। यह सादगी भरा गंभीर आयोजन था जिसके अलग-अलग सत्रों में गंभीर और जीवंत चर्चा के कई अवसर आए।
वैविध्य के प्रश्न पर हम्माद फ़ारूक़ी, शेखर पाठक और गणेश देवी, गांधी की प्रासंगिकता पर बिजू नेगी, नचिकेता देसाई और राधा भट्ट, साहित्य में गांव के सवाल पर पंकज बिष्ट और बटरोही, सिनेमा पर अविनाश, विभावरी और भूपेन सिंह, कश्मीर पर निदा नवाज- बोलने और सुनने का यह सिलसिला तीन दिन चलता रहा। यह सब बस स्मृति से लिख रहा हूं, इसलिए कई महत्वपूर्ण नाम और वक्तव्य छूट गए। पल्लव, प्रियंवद, राहुल कोटियाल, रोहित जोशी, हुसैन हैदरी, सईद अयूब, भास्कर उप्रेती जैसे युवा मित्रों के साथ बातचीत जैसे जारी रखने की इच्छा हो रही थी। सुना कि तीसरे दिन भी कई सत्र अच्छे रहे जिनमें बेबी हालदार, सुमन केशरी शामिल रहीं। बाल साहित्य पर भोपाल से आए सुशील जी ने बहुत संवेदनशील ढंग से बात रखी।
बेशक, एकाध खटकने वाली बातें भी रहीं। उद्घाटन सत्र में एक वक्ता ने उचित आग्रह किया कि मूलत: हिंदी लेखकों के इस आयोजन को दून लिटफेस्ट की जगह दून साहित्य समारोह नाम क्यों नहीं दिया गया। इसी सत्र में किसी स्कूल चेन के मालिक देश, साहित्य और शिक्षा के नाम पर लगभग मूर्खतापूर्ण वक्तव्य देते नजर आए। वैसे इसी सत्र में लीलाधर जगूड़ी ने अक्षर, शब्द और सृजन की परंपरा पर बोलते हुए इसकी भरपाई की। सादगी इस आयोजन की सुंदरता थी। किसी सितारा-उपस्थिति से यह आयोजन अनाक्रांत रहा- यह बड़ी राहत थी। सबसे बड़ी बात, देहरादून का सहृदय समाज जैसे बहुत ध्यान, धीरज और आत्मीयता से सब सुनता-साझा करता रहा। मुक्ताकाशी मंच पर आती-जाती धूप छांव के बीच लोग चर्चा का आनंद उठाते नजर आए।
निजी तौर पर मेरे लिए दो वजहों से यह आयोजन बहुत आत्मीय रहा। अपनी लंबी और डरावनी बीमारी से उबरी गीता गैरोला की पूरे आयोजन में सक्रियता दर्शनीय रही। और प्रतिभा कटियार- उन जैसी संवेदनशील मित्र इस समय में दुर्लभ हैं। एक गरिमापूर्ण कोमलता के साथ जैसे वे सबका ख़याल रख रही थीं। आभार, मुझे इन सबका हिस्सा बनाने के लिए।
प्रियदर्शन। ‘सत्याग्रह’ के नियमित स्तंभकार और वरिष्ठ पत्रकार हैं। रांची के निवासी प्रियदर्शन का ठिकाना इन दिनों उत्तरप्रदेश का गाजियाबाद है। आप प्रियदर्शन को अपनी साहित्यिक अभिरुचि से इलेक्ट्रानिक मीडिया को कुछ संवेदनशील और मायनीखेज बनाने वाले चंद संजीदा लोगों की श्रेणी में रख सकते हैं।