सपने में भी अलाउद्दीन और पद्मावती का साथ ‘शैतानी’ चाल

सपने में भी अलाउद्दीन और पद्मावती का साथ ‘शैतानी’ चाल

धीरेंद्र पुंडीर

शैतान अलाउद्दीन के साथ स्वप्न में भी पद्मावती, शैतान की पूजा है। पद्मावती के साथ खिलवाड़ इतिहास के साथ है या नहीं लेकिन आजादी की लड़ाई से लेकर मध्ययुग में अस्मिता के लिए लड़ रहे पूरे देश के साथ द्रोह है। पावागढ़ के उस प्राचीर से हजारों औरतों के जलने की चीख सुन सकते हो। चित्तौड़ को तो कई बार भुगतना पड़ा है। औरतों और बच्चों को रौंदना उस वहशी का स्वभाव था।

फिल्मी दुनिया किसी भी देश की नैतिक या ऐतिहासिक मानक नहीं होती। दुनिया भर में फिल्मी दुनिया फरेब, अनैतिकता और झूठ की दुनिया है। हिंदुस्तान में इस फिल्मी दुनिया के लोग जिस तरह की कहानियों में जनता के सामने आते हैं, उससे उलट वो अंदर शैतानी दिमाग के साथ पैसे के लिए नैतिकता के फटे-पुराने कपड़े किसी भी रोशनी, अंधेरे, चौराहे या खोली के अंदर उतार सकते हैं। हिंदुस्तान का सिनेमा और भी गिरी हुई हालत में नुमाया हुआ है। दुनिया से कटा हुआ सिर्फ पैसे के लिए लड़ता हुआ। उसके लिए देश बिना आत्मा और शरीर के सिर्फ जमीन का टुकड़ा है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

पद्मावती विवाद कथा-एक

इस देश की सत्तर सालों की परंपरा में अपवाद के स्वरूप ही इस तरह के नाम फिल्मों में आते हैं, जिन्होंने बिना किसी लालच या फिर वाद के कोई फिल्म रची हो। पुरानी फिल्मों की कहानियों में ऐतिहासिकता को लोक परंपराओं से लिया गया और उसमें भी तोड़-मरोड़ कर एक तथ्य देश की नसों में उतार दिया। बात पद्मावती की हो रही है। लिखना तो नहीं चाहता था क्योंकि हर एक शब्द का, आपको जवाब देना होता है। और मुझे लगता है कि ये सब भंसाली जैसे घटिया इंसान की स्क्रिप्ट के मुताबिक ही हो सकता है कि देश इस पर बात करे।

अलाउद्दीन हिंदुस्तान के इतिहास में पैदा हुए तमाम शैतानों में सबसे बढ़कर है। यूं तो मध्यकाल में हमलावरों के बर्बर अत्याचारों और औरतों के साथ बर्ताव की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानियों से पूरा इतिहास अटा पड़ा है। वामपंथियों ने एक देश को नष्ट करने के लिए इतिहास को नष्ट किया, इसके बावजूद इंसानियत का कोई वजूद नहीं दिखता। इसके लिए फर्जी महान लोगों को इतिहास में उतार दिया। खैर ये तो सब उनके पाठ का हिस्सा है और इसके दुष्परिणाम देश को भोगने ही होते हैं, सो इस देश को भी भोगने होंगे।

अपने चाचा को जो उसका ससुर भी था कत्ल कर बादशाही हासिल करने वाला अलाउद्दीन भंसाली की फिल्म का ऐसा नायक है, जिसने इतिहास के मुताबिक ऐसे ऐसे अत्याचार किए हैं और वहशियत की तमाम हदों को पार कर आने वाले आंक्रांताओं को औरतों पर अत्याचार करने के नए मानक दिए। सुल्तान जलालुद्दीन के दोनों पुत्रों, उसके दामाद उलगू तथा अहमद चप, नायब अमीर हाजिब की आंखों में सलाई (अंधा करना) फेर दी गई। उनकी स्त्रियां छीन ली गईं। नुसरत खां ने जो कुछ भी था उनकी धन संपत्ति, दास दासियों को तथा जो भी कुछ उनके पास था छीन लिया। जलालुद्दीन के बेटे को हांसी के किले में कैद कर दिया गया। अरकली खां के सभी पुत्रों की हत्या कर दी गई। मलकिए जहां उनकी स्त्रियों और अहमद चप को दिल्ली लाया गया और कैद कर लिया गया। ( औरतें छीन ली गईं, ये वहशियत अपने ससुर और चाचा की औरतों पर दिखाई गई), ये बादशाहत हासिल करने का पहला सबूत था। इसके बाद उन तमाम जलाली अमीरों को जिन्होंने अलाउद्दीन के चाचा से विश्वासघात कर अलाउद्दीन को मदद की थी और अलाउद्दीन ने उन्हें मनो सोना, पद, सूबेदारी दी थी शहर और लश्कर में गिरफ्तार करा लिया। कुछ को किलों में कैद किया, कुछ की आंखों में सलाई फेर दी, और कुछ की हत्या कर दी गई। उनकी संपत्ति जब्त कर ली उनके पुत्रों के पास कुछ भी नहीं छोड़ा गया।

पहले ही साल गुजरात और नहरवाला के तमाम प्रदेशों का विनाश कर दिया गया। गुजरात का कर्ण राय नहरवाले से भागकर देवगीर में रामदेव के पास गया। रायकर्ण की स्त्रियों, पुत्रियों, खजाने तथा हाथियों पर इस्लामी सेना ने अपना अधिकार जमा लिया। गुजरात प्रदेश का सब धन लूट लिया गया। वह मूर्ति, जिसे सुल्तान महमूद की विजय तथा मनात के खंडन के उपरांत सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध कर दिया गया था, और जिसे हिंदू अपना भगवान मानते थे वहां से देहली भेज दी गई। देहली में वह लोगों के पैरों के नीचे रौंदने के लिए डाल दी गई। सुल्तान अलाउद्दीन ने उस निरंकुशता के कारण जो कि उसके मस्तिष्क में उत्पन्न हो गई थी, आदेश दिया कि विशेष तथा साधारण विद्रोहियों की स्त्रियों और बालको को बंदी बनाकर बंदीगृह में डाल दिया जाए। इससे पहले दिल्ली में पुरूषों के अपराध के कारण उनकी स्त्रियों और बालकों को कोई दंड नहीं दिया जाता और उन्हें बंदी नहीं बनाया जाता था।

बंदी बनाए जाने से भी बड़ा अत्याचार उस दिल्ली ने उस वक्त देखा। नुसरत खां (सेनापति ) ने अपने भाई के रक्त का बदला लेने के लिए उन लोगों की स्त्रियों को अपमानित और लज्जित किया जिन्होंने उनके भाई की हत्या की थी। उन्हें व्याभिचारियों को दे दिया गया कि उन अभागी स्त्रियों से बलात्कार कराएं तथा उनके बच्चों के बारे में ये आदेश दिया कि उन्हें उनकी माताओं के सामने मार दिया जाए। ऐसा अत्याचार किसी भी धर्म अथवा महजब में न हुआ होगा। वह इस विषय में जो भी कुछ करता उसे देखकर देहली वाले निवासी स्तब्ध हो जाते थे और प्रत्येक का हृदय कांप उठता था। ( तारीख़ फ़िरोज़ शाही–ज़ियाउद्दीन बरनी -पेज नंबर 46,47,48)


dhirendra pundhirधीरेंद्र पुंडीर। दिल से कवि, पेशे से पत्रकार। टीवी की पत्रकारिता के बीच अख़बारी पत्रकारिता का संयम और धीरज ही धीरेंद्र पुंडीर की अपनी विशिष्ट पहचान है। 

2 thoughts on “सपने में भी अलाउद्दीन और पद्मावती का साथ ‘शैतानी’ चाल

  1. हां , धीरेन्द्र पुणडीर जी। विदेशी आतताइयों ने बहुत अत्याचार किए। तब भारत एक राष्ट्र नहीं बना था। अंग्रेजों के आने और फिर जाने तक । मेरी आपसे एक विनम्र जिज्ञासा है , आखिर उन विदेशी आक्रमणकारियों की इतनी हिम्मत कैसे हुई। मै सोंचता हूं ‘ मानसिंह ‘ जैसे चरित्र वाले तब भी जरूर रहे होंगे। सब का अपना अपना स्वार्थ था। और यही वह कमजोरी भी रही होगी जिसने अलाउददीन जैसों का हौसला बढाया। मेरा सोंचने का तरीका कुछ अलग है। हम यदि अपने घर की हिफाजत में उदासीनता बरतें और दूसरा दिनदहाडे हमे लूट ले जाए तो क्या दोषी हम भी नहीं है ? मुझेप्राचीन इतिहास का उतना ज्ञान तो नहीं है लेकिन जितना कुछ जान पाया हूऔ, उसके आधार पर यही मानता हूं कि सह धर्म , जाति , सम्प्रदाय और लिंग मे बंटे रहकर तब भी कमजोर ही थे।

    1. सर में इस बात का जवाब काफी दिन से खोज रहा हूँ कि यदि सबकुछ था तो हम हरे क्यों खास तौर से आप देखेंगे कि यदि मंदिर का पहिया बन सकता है कोणार्क का इतना खूबसूरत और कलापूर्ण यदि सोमनाथ का मंदिर की ज्यामिति बन सकती है जो आज के पैमाने पर भी खरी तो हरे क्यों। और जवाब भी वहीं कही है जाति आधारित समाज मजदुरी में तो शायद साथ ले रहा था लेकिन युद्ध कला और उसकोकरने के दायित्वों को खांचे मेंबाँट रखा था। बात मैंनेघृणा से नहीं लिखी है बस एक झूठ को दिखाने की कोशिश की है जो एक खास वर्ग यह दिखाने लगे कि अलाउद्दीन इस देश के लिए भगवान की देन था। मैं हैरान हूं कि इतिहासकार उन्ही किताबों का आधा सच छिपाकर देश को आधी तस्वीर पढ़ा रहे है । मैं ये मानता हूं कि कभी भी गलत तरिके से तैयार पीढ़ी सही की तरफ नहीं जाFई है। झूठ में रची गई सहिष्णुता देश खत्म करती बनाती नहीं। सर अगर सच से पढ़ेंगे तो झूठ ताक़त नही बन पाएगा और रास्ता सुगम होगा
      आप शायद दांडी यात्रा पर गये होंगे तो आपको उस यत्रने बताया होगा कि गांधी जी ने इस सवाल को ज़्यादा साफगोई से समझ और स्वीकार किया था।
      सादर

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