तमिलनाडु के किसानों का आंदोलन और मध्य प्रदेश के मंदसौर में अपनी मांगों को लेकर आंदोलनकारी किसानों पर पुलिसिया जुल्म के बाद तमाम किसान संगठन एक मंच पर आए और नाम रखा अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति। किसानों के हक की लड़ाई के लिए 6 जुलाई से शुरू हुई देशव्यापी किसान मुक्ति यात्रा पिछले दिनों (5 नवम्बर ) को बिहार के मुजफ्परपुर पहुंची। इस यात्रा में ऑल इण्डिया किसान खेत मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक सत्यवान से टीम बदलाव ने किसानों की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा की । ब्रह्मानंद ठाकुर से बातचीत में सत्यवान ने हर पहलू पर बेबाकी से अपनी बात रखी । बदलाव के पाठकों के लिए पेश है सत्यवान से साक्षात्कार के अंश ।
बदलाव- कभी किसान होने पर लोग गर्व करते हैं, लेकिन आज किसानों की इतनी दुर्दशा क्यों, किसानी आज दोयम दर्जे का व्यवसाय कैसे बन गई ?
सत्यवान- (थोड़े मौन के बाद लंबी सांस लेते हुए) देखिए किसानों की जो समस्या है, वो पूंजीवाद की वजह से पैदा हुई है । आज समाज में रोजगार, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, महंगाई समेत तमाम समस्याएं न केवल बरकरार है, बल्कि लगातार विकराल होती जा रही है जिसकी जड़ में कहीं ना कहीं पूंजीवाद जरूर है । लिहाजा किसानों की समस्या को उससे अलग रखकर देखना बेमानी होगी ।
बदलाव- किसानों की समस्या के लिए पूंजीवाद कैसे जिम्मेदार है ?
सत्यवान- इस समझने के लिए थोड़ा पीछे मुड़कर देखना होगा । इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति, फ्रांस की क्रांति और रूस की महान नवंबर क्रांति की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में ही भारत की आजादी आंदोलन के चरित्र को समझना होगा। नवम्बर क्रांति के बाद नवगठित सोवियत संघ में कृषि और उद्योग के क्षेत्र में जो विकास हुआ वह अदभुत था। हालांकि ये हमारी दुर्भाग्य है कि नवंबर क्रांति के 3 दशक बाद मिली आजादी के बाद भी हमने कोई सबक नहीं लिया । और नतीजा आज हमारे सामने है । अंग्रेजों से आजाद होने के बाद देश की सत्ता धीरे-धीरे पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली बनती गई । हमारी सरकारों के लिए पूंजीपतियों का हित सर्वोपरि हो गया और किसान-मजदूरों का हित गौण बन गया। आजादी के बाद से आजतक केन्द्र और राज्यों में जिस दल की भी सरकारें बनीं, सभी ने किसानों और मजदूरों के हितों को अनदेखा किया और आज भी वही हो रहा है ।
बदलाव- क्या आप ये कहना चाहते हैं जान बूझकर किसानों को कमजोर बनाया गया ?
सत्यवान- बिल्कुल, सच्चाई तो यही है । हमारा किसान अपनी जमीन का मालिक तो है लेकिन उसकी उपज का वह मालिक नहीं है। हमारी मुनाफाखोर व्यवस्था किसानों को बर्बाद कर रही है। आर्थिक शोषण लगातार बढ़ रहा है। खेतिहर मजदूर और किसान दोनों का भविष्य आपस में अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। देखा जाए तो आजादी के बाद से ही किसान मजदूरों की एकता को कमजोर किया जाता रहा। आज जरूरत है किसान-मजदूरों की एकता बनाए रखने की।
बदलाव- आखिरी किसान खुदकुशी जैसा कदम उठाने पर मजबूर क्यों है ?
सत्यवान- आज खेती की जो हालत है वो किसी से छिपी नहीं है। खाद, बीज, डीजल,कीटनाशक जैसे खेती के उपयोग में आने वाली चीजों की कीमतों में बेतहाशा बृद्धि हो रही है जिससे उत्पादन लागत बढ़ती जा रही है । जबकि फसलों की जो कीमत बाजार में नजर आती है उसका मुनाफा किसानों की बजाय बिचौलिए उठा रहे हैं । सरकारें समर्थन मूल्य से कम कीमत पर विदेशों से सामान आयात कर रही है । ऐसे में किसानों को मुनाफा मिलने की बजाय नुकसान उठाना पड़ता है और वो कर्ज में डूबता जाता है और नतीजा खुदकुशी तक जा पहुंचता है ।
बदलाव- हमारी सरकारें कर्ज माफी का दावा तो करती है ? क्या ससे किसानों को फायदा नहीं होता ?
सत्यवान- कर्ज माफी के नाम पर किसानों के साथ क्रूर मजाक हो रहा है। 12-15 रुपये मूल्य वाले ऋणमुक्ति प्रमाण पत्र सरकारें जश्न मनाती है और कर्जमाफी का ढिंढोरा पीटती हैं, ये किसानों के साथ मजाक नहीं तो फिर क्या है ?
बदलाव- आज गांवों पर सरकारों का खासा जोर है, ऐसे में आपकी नजर में समूचे देश में ग्रामीण भारत का परिवेश क्या है?
सत्यवान- कृषि क्षेत्र में संख्या और क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत विश्व के पहले पांच देशों में शुमार है। लेकिन जब 95 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या में किसानों की स्थिति की बात करें तो स्थिति बड़ी भयावह दिखाई देती है। खेती का घटता रकवा, भूगर्भ जलस्तर का लगातार नीचे गिरना, बीमार सिंचाई संसाधन, मिट्टी की गुणवत्ता में कमी, कमजोर मानसून, बाढ़-सूखा जैसी प्राकृतिक आपदा भ्रष्ट सरकारी तंत्र उपज को कम कीमत में बेंचने की लाचारी, कर्ज का बढ़ता बोझ यह सब किसानों के जीवन को तबाह कर रहा है। हालात यहां तक आ गए हैं कि गरीबी और बेबसी का मारा किसान आज अपनी जमीन तक भी बचा नहीं पा रहा है। वे इस संकट से उबरने के लिए अपनी जमीन बेंच रहे हैं। इस प्रक्रिया के तहत मध्यम किसान सीमांत किसान में, सीमांत किसान बटाईदार किसान में और बटाईदार किसान खेतिहर मजदूर बनते जा रहे हैं। दूसरी ओर सारी जमीन भूमाफियाओं के हाथों या अमीरों के पास सिमटती जा रही है।
बदलाव- आखिर सरकार फसलों का समर्थन मूल्य तय तो करती है, फिर आपको दिक्कत कहां आती है ?
सत्यवान- देखिए, समर्थन मूल्य तो महज एक छलावा है, सरकारें जो समर्थन मूल्य तय करती हैं उससे उत्पादन लागत तक नहीं निकल पाती । ये सब कागजी बातें होती हैं, एसी में बैठकर कीमतें तय कर दी जाती है, जबकि जमीन पर किसानों को वो भी ईमानदारी से नहीं मिल पाती । उपज और आय में भारी अंतर है । यही नहीं किसानों की फसल के लिए भंडारण की भी उचित व्यवस्था नहीं है । लिहाजा किसान औने-पौने भाव में फसल बेचने को मजबूर है ।
बदलाव- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को कितना फायदा हो रहा है ?
सत्यवान- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना महज एक छलावा है । फसल बीमा किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि पूंजीपतियों और उनकी एजेन्सियों को फायदा पहुंचाने वाली है । साल 2016 के फसल बीमा आंकडों को देखें तो खुद-ब-खुद समज आ जाएगा । पिछले साल रिलायंस, बिडला जैसी कंपनियों को फसल बीमा करने के लिए अधिकृत किया गया। अकेले मध्य प्रदेश में फसल बीमा प्रिमियम के नाम पर किसानों से 10 हजार करोड़ की वसूली हुई । जबकि किसानों को फसल के मुआवजे के रूप में बंटा महज 1200 करोड रूपये। जबकि देशभर में 2016 में फसल बीमा प्रीमीयम के रूप में 36 हजार करोड़ से अधिक की वसूली किसानों से की गई जबकि किसानों को इसका 15 फीसदी भी भुगतान नहीं हो सका ।
बदलाव- आपकी इस यात्रा का मकसद क्या है ?
सत्यवान- देश के किसानों को पूंजीवादी व्यवस्था की नीति को समझने की जरूरत है। पूंजीवादी व्यस्था को जड़ से खत्म किए बिना किसान सुखी नहीं हो सकता। इसी उद्देश्य को लेकर किसान मुक्ति यात्रा का आयोजन किया गया है जिससे मूल समस्या के प्रति देश के किसानों-मजदूरों को जागरूक किया जा सके और देश में पूंजीवाद के खिलाफ एक सशक्त जन आंन्दोलन खड़ा किया जा सके ।
ब्रह्मानंद ठाकुर। BADALAV.COM के अप्रैल 2017 के अतिथि संपादक। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। गांव में बदलाव को लेकर गहरी दिलचस्पी रखते हैं और युवा पीढ़ी के साथ निरंतर संवाद की जरूरत को महसूस करते हैं, उसकी संभावनाएं तलाशते हैं।