दो दिन के दौरान बीबीसी के पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा की गिरफ़्तारी को लेकर पचासों पोस्ट, दर्जनों थ्यौरी और सैकड़ों कमेंट्स के बीच सोशल मीडिया में तैरती एक तस्वीर पर मेरी नज़र एकाएक ठिठक गई। तस्वीर में दिख रहे विनोद वर्मा छत्तीसगढ़ पुलिस के शिकंजे में हैं। उन्हें पुलिस जीप में बैठाने के लिए ले जाया जा रहा है। जीप में बैठा एक पुलिस वाला उन्हें भीतर खींच रहा है। बाहर विनोद वर्मा के ठीक पीछे तैनात एक शख़्स उनके मुँह को अपने पंजों से लॉक करने की कोशिश कर रहा है या यूँ कहें कि उसने हाथों के ज़ोर से उनका मुँह बंद कर रखा है। तस्वीर देखकर यही लग रहा है कि विनोद वर्मा के मुँह को अपने पंजों से दबोचने वाला शख़्स किसी भी सूरत में उन्हें ज़ुबान नहीं खोलने देना चाहता है। वर्मा के चेहरे के सामने दो-तीन चैनलों के माइक हवा में टंगे हैं। ज़ाहिर है माइक थामे रिपोर्टरों की तरफ़ से कुछ सवाल भी उछाले जा रहे होंगे। वर्मा की ‘मुँहबंदी’ उन्हीं सवालों से बचाने के लिए है।
तो क्या ये मान लें कि बेवर्दी पुलिसवाला बाज़ुओं के ज़ोर से ‘मुंहबंदी ‘ करके अपनी ड्यूटी का पालन कर रहा है ? विनोद वर्मा के पास इतना बड़ा कोई राज है कि कैमरों के माइक पर कुछ बोल देंगे तो देशहित के ख़िलाफ़ चला जाएगा ? या फिर बड़ी मुश्किल से पकड़ में आए देश के इस दुश्मन को चुप कराना ही राष्ट्रहित है ? नहीं ये सब नहीं है। हर रोज देश के किसी न किसी हिस्से में बड़े – बड़े अपराधी दबोचे जाते हैं। कितनों का मुँह ऐसे दबोचा जाता है ? हत्यारे/गुंडे/बलात्कारी/मवाली, ये सब तो जेल से जीप से जाते हुए या जीप से कोर्ट तक आते हुए बाइट देते नज़र आते हैं तो फिर विनोद वर्मा की ‘ मुंहबंदी ‘ पर इतना ज़ोर क्यों ? यक़ीनन ये ज़ोर उस अदने से पुलिस वाले की हाथों में यूँ ही नहीं आ गया होगा । एक पुलिस वाले की मजाल के पीछे जब तक कोई ताकत न हो , तब तक वो इतना ताकतवर नहीं दिखता। जाहिर है ’ ऊपर वाले ‘ के निर्देशों के मुताबिक़ ही सब हुआ होगा ।
‘विनोद वर्मा छत्तीसगढ़ के बीजेपी नेता की अश्लील सीडी रखने के जु्र्म में नाटकीय ढंग से गिरफ़्तार कए गए।गिरफ़्तारी के बाद और पहले की कहानियाँ सरेआम हो रही है। पूरी ताक़त झोंककर उन्हें सलाखों के पीछे ठेलने का इंतज़ाम किया गया है। मंत्री की अश्लील सीडी, कांग्रेस नेता से विनोद वर्मा के क़रीबी रिश्ते, बीजेपी नेता का बेडरूम दृश्य, चुनाव के पहले बवंडर का अंदेशा, विनोद वर्मा और कांग्रेस की साँठगाँठ समेत तमाम एलिमेंट इस कहानी के पहलुओं को कई आयाम देने के लिए सामने आ रहे हैं। एक पक्ष आँख मूँदकर विनोद वर्मा के साथ है। दूसरा आँख मूँद कर गिरफ्तारी जायज बताकर अश्लील सीडी वाले नेता के कारनामों को निजी रिश्तों का अंजाम साबित करने में जुटा है। दो धड़े साफ हैं या तो इधर या उधर। बीच में कुछ सवाल टंगे हैं।
मैं अभी दिल्ली से बाहर हूँ। गिरफ़्तारी की वजहों के आगे-पीछे की कई कहानियां चल रही हैं। कुछ मैंने सुनी है। कुछ दिल्ली लौटने के बाद पता करूँगा। लिहाज़ा मैं उन पर कोई राय नहीं दे रहा। हाँ , जो लोग बार- बार ये तर्क दे रहे हैं कि नेताजी के बेडरूम में कुछ भी अगर उनकी और उनके दायरे में आई किसी महिला के बीच हुआ तो इसे मुद्दा कैसे बनाया जा सकता है ? दो लोगों के बीच के निजी रिश्तों की फिल्म कैसे किसी पत्रकार/पार्टी या प्रचार तंत्र के लिए मुद्दा बन सकती है ? ऐसा कहने वाले अभिषेक मनु सिंघवी और नारायण दत्त तिवारी के सीडी कांड के वक्त ठीक उल्टा तर्क दे रहे थे। तब उनके लिए ये दोनों ऐसे घिनौने चेहरे थे, जिन्हें बेनकाब करने में पूरी मीडिया को जुट जाना चाहिए था। कई ऐसे सोशल मीडिया के वीर ऐसे ही तर्क के तीर लेकर बीजेपी के सीडी वाले बाबू के बचाव में उतरे हैं। निजी, निजता, प्राइवेसी इन सबकी दुहाई देकर नेताजी के लिए कवच-कुंडल तैयार किया जा रहा है।
किसी ज़माने में बीजेपी के क़द्दावर नेता और संघ पृष्ठभूमि के संजय जोशी ऐसी ही एक सीडी के किरदार बने थे। निजी मामला तब भी था । लेकिन उन्हें उनके ही भाई-बंधुओं ने उसी सीडी की सैकड़ों कॉपियाँ बनवाकर उन्हें राजनीति के ऐसे रसातल में भेजा कि आज तक किसी तलहटी में पड़े छटपटा रहे हैं । एक प्राइवेट सीडी किसी को किस हद तक बुलडोज कर सकता है ये तो कोई संजय जोशी से पूछे । सीडी के शिकार वो तब हुए थे , जब उनका सितारा बुलंदी पर था। ऐसे अस्त हुए कि दोबारा उदय होने लायक न बचे । मैं आज भी मानता हूँ कि किसी के निजी रिश्तों से किसी को मतलब तब तक नहीं होना चाहिए, जब तक कि कोई एक पक्ष पीड़ित बनकर सामने न आ जाए। जब तक सीडी के पीछे शोषण की कोई कहानी न हो, तब तक मीडिया के लिए ये मुद्दा होना नहीं चाहिए। लेकिन मीडिया और सियासी पार्टियों ने कब इस आधार पर किसी को बख़्शा है ? चाहे सालों पहले दिल्ली के बिहार भवन में बनी बिहारी नेताओं की अश्लील सीडी हो या चैनलों सेलेकर बीजेपी नेताओं तक में बंटी संजय जोशी की सीडी या फिर हर अख़बार के दफ़्तर में पहुँचाई गई अभिषेक मनु और नारायण दत्त तिवारी की सीडी। हर बार तर्कों के पैमाने सुविधानुसार गढ़े गए हैं। इस बार भी गढ़े जा रहे हैं। नैतिकता के पैमाने की बात ही बेमानी है। चाहे इधर के पैमाने हों, चाहे उधर के। दूसरे के टूटे पैमानों पर सब अपनी सत्यनारायण कथा सुनाने में लगे हैं।
अजीत अंजुम। इंडिया टीवी के पूर्व मैनेजिंग एडिटर ।बिहार के बेगुसराय जिले के निवासी । पत्रकारिता जगत में अपने अल्हड़, फक्कड़ मिजाजी के साथ बड़े मीडिया हाउसेज के महारथी । बीएजी फिल्म के साथ लंबा नाता । स्टार न्यूज़ के लिए सनसनी और पोलखोल जैसे कार्यक्रमों के सूत्रधार । आज तक में छोटी सी पारी के बाद न्यूज़ 24 लॉन्च करने का श्रेय ।