30 साल बाद… अपने कॉलेज में ‘ताका-झांकी’

एलएस कॉलेज की नई-पुरानी यादें
मुज़फ़्फ़रपुर के एलएस कॉलेज की नई-पुरानी यादें (मैं, ममता और मेरी बेटी )

अजीत अंजुम की फेसबुक वॉल से

अतीत बहुत पीछे छूट जाता है । असंख्य चेहरे होते हैं, गड्डमड्ड से । हम सब धीरे-धीरे भूलने लगते हैं, लेकिन स्कूल-कॉलेज के कुछ चेहरे ज़ेहन में दर्ज रह जाते हैं। एकाध चेहरा, कोई एक नाम अचानक ” लास्ट लीफ” की तरह स्मृतियों की शाख पर टंगा रह जाता है । अपने कॉलेज के दिनों की ‘याद गली’ से गुजरते हुए वह एक चेहरा साथ था । मुज़फ़्फ़रपुर के जिस एल एस कॉलेज में क़रीब तीस साल पहले पढ़ा करता था,  उस कॉलेज में जाना , आर्ट्स ब्लॉक के उसी बरामदे में घूमना,  ख़ाली पड़े क्लास रूम में झाँकना और पुरानी यादों के गलियारे से गुज़रना ज़िंदगी के ख़ूबसूरत फ़्लैश बैक में दाख़िल होने की तरह था। 30 साल बाद उस कॉलेज में घूमते हुए ममता रानी की गर्वीली उपस्थिति साथ थी। मेरे क्लास की सबसे अलग, आकर्षण का केंद्र, प्रखर और गर्वीली लड़की ममता रानी इन दिनों बिहार के शानदार कॉलेज, एम डी डी एम कॉलेज की प्रिसिंपल हैं ।

कॉलेज के हसीन और बेपरवाह दिन खत्म होते होते हम सब अपनी अपनी दुनिया में खो गए थे । किसी को किसी की बरसों तक खबर न थी । हम सब कहीं न कहीं स्थापित हो गए और यदाकदा मिलते हैं,  उन दिनों को याद करके ” नोस्टालजिक” होते रहते हैं. एक शादी के सिलसिले में जब मुज़फ़्फ़रपुर जाना हुआ तो हम तीस साल पीछे चले गए । उस क्लास में गए, जहां कितनी कक्षाएं की, कितना शोर किया होगा और पढा सीखा होगा ।

यहां खड़े होने में 30 साल लग गए ।
 …30 साल बाद

उस बरामदे में घूमे जहां हम मौज में घूमा करते और लड़कियों के कॉमन रुम में ताका झांकी करते हुए लड़कों को देखा करते । उस दौर में लड़के-लड़कियों का आपस में बात करने का रिवाज नहीं था । आपस में कभी बात न होती थी । बस निगाहों की निगाहों से पहचान होती थी । ममता से भी कभी बात नहीं हुई पर उसका चेहरा, उसकी उपस्थिति कई कारणों से याद रहा । तीस साल बाद मिला तो पहचान गया । उसे भी मैं याद था, यह चकित करने वाली बात लगी । मैं तो वैसे भी लड़कियों से दूर भागता था पर ममता याद रही ! वह मुज़फ़्फ़रपुर शहर के धनाढ़य और प्रतिष्ठित परिवार की लड़की थी और अपने ठसक में रहती थी। सबके आकर्षण का केंद्र होते हुए भी वह अपने में सिमटी रहती। क्लास के तुरंत बाद कॉमन रुम उसके जैसी छात्राओं के लिए पनाहगाह होता था, जहां फटकने की कोई गुंजाइश नहीं । आज उस वर्जित पनाहगाह के बाहर हम साथ गए। तब की शांत ममता आज सबकुछ चहक चहक कर बता रही थी । ये देखो… यहां हम फलां क्लास करते थे…ये वो जगह है…यहां लड़के बदमाशियां करते थे और भी बहुत कुछ ! 

ममता को इतना बोलते देख आश्चर्य भी हो रहा था कि वह चुप्पा लड़की, आज कितनी बेबाक है। हाजिरजवाब है। कुछ दिन पहले वो दिल्ली आई तो घर आई और धमका गई कि मुज़फ़्फ़रपुर आए तो मेरे घर आए बिना लौटोगे नहीं, तो हम उसके घर भी गए और कॉलेज भी ।

सेल्फ़ी विद मुज़फ़्फ़रपुर एलएस कॉलेज

जाना तो MDDM Collage भी चाहता था, जहाँ की वो प्रिंसिपल है, लेकिन समय नहीं मिल पाया । उसकी बातें सुनकर और उसका आत्मविश्वास देखकर अच्छा लगा। समय बहुत बदल देता है। आपके भीतर की प्रतिभा वक्त आने पर उजागर होती है। गर्व होता है कि मेरी सहपाठी ममता आज एक प्रतिष्ठित कॉलेज की प्रिंसिपल है और लगातार बेहतर काम कर रही है।

फेसबुक वॉल पर मिले कमेंट्स

अजीत अंजुम के साथ सेल्फी लेतीं ममता
सेल्फी लेतीं ममता रानी

ममता- आपने तो इस मौके को यादगार बना दिया । इतना कुछ सहेज रखा था आपने अपनी यादों में, ये मुझे कहां पता था । कॉलेज पहुंचकर उस समय की तमाम यादे ताजा हो गई । तब की जो बातें बुरी लगती थी आज वो यादें भली और गुदगुदानेवाली लगीं । आपने इतने खूबसूरत अंदाज में लिखा कि मुझे खुद पर गुमान हो गया है। आज फिर से कॉलेज स्टूडेंट बन जाने का दिल कर रहा है। तब जो मस्ती नहीं कर पाए आज वो सब बरबस अपनी ओर खींच रहा है। You have made my day. कितना भी धन्यवाद दूं कम ही होगा। गुनगुनाना चाहती हूं- कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ।

कुनाल वर्मा- आपने तस्वीरों के साथ मुझे भी बहुत कुछ याद दिला दिया । मैंने भी अपनी जिंदगी के कुछ बेहतरीन साल इस कॉलेज और इसी ब्लॉक में गुजारे हैं । आपने बरामदे का तो जिक्र किया लेकिन बरामदे के सामने के उस खूबसूरत गार्डन को कैसे भूल सकते हैं । सच में यह इस कॉलेज और शहर ने बहुत कुछ दिया है ।

कमल किशोर कमल- यादें वो भी अतीत की उस समय में ले जाना चाहती हैं जिन पलों में हम गुजर चुके होते हैं । जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हम अतीत को ज्यादा याद करते हैं या अतीत में लौटना चाहते हैं । जिस सहपाठी के साथ आप उस वक्त खड़े भी नहीं हो पाए थे उसके साथ खड़ा होकर आज अच्छा लग रहा है । यही हमारे बीते हुए पल की खुशी देता है ।

अशोक शर्मा- अचरज ! क्या कभी कोई स्कूल-कॉलेज का गरीब सहपाठी अभी तक नहीं मिला जो आपके अजीज रहा हो, छोटे-मोटे काम, कारोबार कर रहा हो और इतने ही प्यार से उनका भी फोटो और व्यवसाय आपके फेसबुक पर पा सकें ।

अजीत अंजुम- जी, तब भी ऐसे ही लिखूंगा और लिखता रहूंगा । 


10570352_972098456134317_864997504139333871_nअजीत अंजुम। बिहार के बेगुसराय जिले के निवासी । पत्रकारिता जगत में अपने अल्हड़, फक्कड़ मिजाजी के साथ बड़े मीडिया हाउसेज के महारथी । बीएजी फिल्म के साथ लंबा नाता । स्टार न्यूज़ के लिए सनसनी और पोलखोल जैसे कार्यक्रमों के सूत्रधार । आज तक में छोटी सी पारी के बाद न्यूज़ 24 लॉन्च करने का श्रेय । इन दिनों इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर ।

One thought on “30 साल बाद… अपने कॉलेज में ‘ताका-झांकी’

  1. After read the whole page I have really back to my school/college time….

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