बदलाव प्रतिनिधि
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में साम्प्रदायिक हिंसा के बाद काफी तनाव है। ये सारा विवाद फेसबुक पर एक कथित पोस्ट को लेकर हुआ है। बशीरहाट सब-डिवीजन के बादुरिया इलाके में दो गुटों के बीच जमकर हिंसा की ख़बर है। पोस्ट करने के आरोपी लड़के को गिरफ़्तार कर लिया गया है, बावजूद इसके दंगाई हंगामे पर उतारू हैं। हद तो ये कि उपद्रवी लोग लड़के को खुले-आम सज़ा देने की बात कर रहे हैं। इस तरह की उन्मादी जमात का जमकर विरोध होना चाहिए, वो चाहे किसी भी संप्रदाय से ताल्लुक क्यों नहीं रखती हो। हालांकि इसे भी राजनीतिक दल अपने सियासी नफा-नुकसान जोड़कर देख रहे हैं। सूबे के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच तनातनी है लेकिन इन सबके बीच सोशल मीडिया पर बुद्धिजीवियों ने खुलकर अपनी राय रखी है।
जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल लिखते हैं– “इस नाज़ुक वक्त में सांप्रदायिकता के किसी भी रूप के साथ नरमी बरतना, किसी भी भीड़ की हिंसा पर लीपापोती करना, आहत भावनाओं के किसी भी संस्करण को जायज़ ठहराना देश और समाज के लिए आत्मघाती है। पश्चिम बंगाल सरकार को मुस्लिम सांप्रदायिकता और आहत भावना के नाम पर चल रही आक्रामकता को सख़्ती से कुचलना चाहिए। हिंसा से प्रभावित लोगों को भरोसा दिलाना चाहिए।”
वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी सांप्रदायिक हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए लिखते हैं– ” साम्प्रदायिकता साम्प्रदायिकता है, चाहे किसी भी ज़मात और मज़हब की क्यों न हो। जहाँ बहुसंख्यक समाज की साम्प्रदायिकता की आलोचना की जानी चाहिए, वहीं वैसा ही सख्त नजरिया अल्पसंख्यक समाज की साम्प्रदायिकता के प्रति भी होना चाहिए। दोनों समाजों में कट्टर लोग होते हैं या भडैती हो सकते हैं। हैरत है, क्या आपका धर्म या मज़हब बालू का घरौंदा है जोकि एक लहर के साथ बह जायेगा? लानत है ऐसे धर्म और उसके माननेवालों पर!
देखना यह चाहिए कि इस प्रायोजित साम्प्रदायिकता की ज़मीन क्यों, कौन और कैसे तैयार कर रहा है? इसका साझा विरोध होना चाहिए। इसके सूत्रधार और भडैती तो अपनी आदत से बाज़ आने से रहे।”
पत्रकार और इन दिनों अध्यापन के पेशे से जुड़े अमिय मोहन लिखते हैं- “एक नाबालिग़ ने अगर मुहम्मद साहब के नाम पर ग़लत लिख दिया तो क्या दंगे हो जाएंगे? इससे क्या इस्लाम या क़ुरान ख़तरे में पड़ जाएगा? उस बच्चे को माफ़ करने में क्या दिक़्क़त थी? पश्चिम बंगाल में इतना बड़ा बवाल खड़ा करने की क्या वजह थी? इतना बड़ा बवाल हो गया। हिंदू तो राम के नाम पर खूब बहस करते हैं। कहते हैं कि सीता से अग्निपरीक्षा लेना उनका गुनाह था। कई तो मानते ही नहीं कि राम थे। स्टेशन पर किताब बिकती है ‘हिंदू समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास’। किसी ने फूँक दी क्या वो दुकानें ? इतना कट्टरवाद इस्लाम के प्रति लोगों में भय और शक जगाएगा। लोग मानने लगेंगे कि इस्लाम में सहिष्णुता नहीं है। ये एक मज़हब के लिए बहुत बुरा होगा। उस बच्चे को माफ़ कीजिए और आगे बढ़िए।”