ब्रह्मानंद ठाकुर
हम उत्सव धर्मिता लोग हैं। कोई भी उत्सव हो, हम उसे पूरे धूमधाम से मनाते हैं। स्वतंत्रता दिवस भी पूरे धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। 15 अगस्त 1947 के दिन हमें आजादी मिली थी। इसकी बड़ी कीमत हमें चुकानी पड़ी थी। 1942 के अंग्रेजों, भारत छोड़ो आंदोलन की ही यदि हम बात करें तो सरकारी आंकडों के अनुसार, इस आंदोलन में 940 लोग शहीद हुए , 1630 घायल हुए और 60 हजार 229 लोगों ने अपनी गिरफ्तारी दी। यह तस्वीर है 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का दमन करने के लिए अंग्रेजी हुकूमत के दमनचक्र की। बावजूद इसके, स्वतंत्रता आंदोलन परवान चढ़ता गया और बाध्य होकर अंग्रेजी हुकूमत ने भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित कर दी। हमें आजादी मिली, लेकिन यह आजादी राजनीतिक आजादी थी। इस आजादी के 74 बर्षों बाद भी आम आवाम के सामने यह सवाल अनुत्तरित है कि क्या यह वही आजादी है, जिसका सपना भारत की शोषित पीड़ित जनता ने देखा था ?
आजादी का यह प्रश्न जनमुक्ति के प्रश्न से जुड़ा हुआ है। हम मानते हैं कि हमारा देश राजनीतिक तौर पर स्वाधीन जरूर हुआ लेकिन वर्तमान आजादी के जरिए राज्य का जो ढांचा और अर्थव्यवस्था आम जनता के सीने पर लादी गई उससे जनता के हर तरह के शोषण उत्पीड़न से मुक्ति हासिल नहीं हुई बल्कि इसके उलट लोगों क आशा आकांक्षाओं को पूरा कर पाने की राह में एक बड़ी बाधा सिद्ध हो रहा है। और यदि इस बाधा को दूर नहीं किया गया तो आम लोगों को शोषण से मुक्ति दिलाना असम्भव है। इसलिए 15 अगस्त का दिन सिर्फ उत्सव मनाने का नहीं , जनमुक्ति के लिए संकल्प लेने का दिन होना चाहिए।
यहां यह उल्लेख करना जरुरी है कि देश की आवाम ने इस उद्देश्य के लिए संघर्ष किया था कि बगैर अंग्रेजी हुकूमत को यहां से हटाए एक ऐसी समाज व्यवस्था कायम नहीं की जा सकेगी जासमें अन्याय, अत्याचार, पूंजीवादी शोषण उत्पीडन , जमींदारों व्यावसायियों के जुल्मो सितम, अफसरशाही के दमन उत्पीड़न का हमेशा हमेशा के लिए खात्मा हो सके। एक एसे समाज का पुनर्निर्माण हो जिसमें जनमुक्ति के साथ -साथ व्यक्ति के विकास के लिए समान अवसर उपलब्ध हो, बिना भेदभाव के सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराई जाए, सबके स्वास्थ्य और चिकित्सा की सुविधा मिले, एक ऐसी आर्थिक नीति बने जो सबका मुकम्मिल कल्याण कर सके। और आम लोगों के लिए चौतरफा प्रगतिका द्वार खोल दे।यही सपना देखा था स्वतंत्रता आंदोलन के अमर शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों ने। लेकिन आजादी आंदोलन में शामिल जमींदारो और पूंजीपतियों का एक ऐसा वर्ग भी था जिसने ठीक इसके विपरीत उद्देश्य को लेकर आजादी आंदोलन में भाग लिया।
अंग्रेजी शासन की वजह इन्हें शोषण और लूट तथा अपनी पूंजी के बेरोक टोक विस्तार का अवसर नहीं मिल रहा था।इसलिए उन्हें अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए राजसत्ता हथियाने की जरूरत थी। इसलिए वे चाहते थे —- देश आजाद हो और राजसत्ता पर उनका कब्जा हो जाए। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अपने इसी उद्देश्म को पूरा करने के लिए उन्होंने हर तरह से सहयोग किया। यह थी आजादी आंदोलन की समझौतावादी धारा। इसी रस्ते से हमे आजादी मिली। इसके तहत जो राज्य – ढांचा, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था देश मे कायम हुई, वह आम आदमी के हितों को पूरी तरह नकारती, पूंजीपतियों का हित साधने वाली हुई। अशिक्षा ,बेरोजगारी , अंधविश्वास , अवैज्ञानिकता स्वास्थ्य एवं चिकित्सा की समस्या, नैतिक और सांस्कृतिक पतन,अश्लीलता, जातीय और साम्प्दायिक विद्वेष की भावना लगातार बढ़ रही है। एसे में 15 अगस्त का दिन सिर्फ एक उत्सव के रुप में नहीं, जनमुक्ति के लिए संकल्प लेने का रूप में मनाने का दिन हो।