‘सियासी समर’ से पहले ‘युद्ध में अयोध्या’

‘सियासी समर’ से पहले ‘युद्ध में अयोध्या’

प्रणय यादव

हेमन्त शर्मा जी की नई पुस्तक पाठकों के हाथ में आने वाली है, नाम है ” युद्ध में अयोध्या “। पुस्तक आने से पहले ही इतनी चर्चा में है कि उत्सुकता उफान पर है। विषय ऐसा है जिसके बारे में जानते सब है लेकिन और जानने की इच्छा सबके भीतर है। वैसे हेमन्त जी की इस नई रचना को पुस्तक कहने के बजाए संदर्भ ग्रन्थ कहना ज्यादा सटीक होगा। संदर्भ ग्रन्थ इसलिए क्योंकि इसमें रामलला का विग्रह प्रकट होने से लेकर अब तक अयोध्या में हुई सभी घटनाओं का प्रमाणिक ब्यौरा है। जो घटनाएं दिखीं उनका आंखों देखा हाल और जो पर्दे के पीछे हुईं उनका प्रामाणिक ब्यौरा, सबूतों के साथ पहली बार दुनिया के सामने आएगा। हेमन्त जी ऐसे पत्रकार हैं जो अयोध्या में हुई एतिहासिक घटनाओं के साक्षी रहे। जब ताला खुला तब भी वहीं मौजूद थे, फिर जब कारसेवकों पर गोली चली तो सरयू के पानी को लाल होते हेमन्त जी ने देखा और बाबरी ढांचा भी हेमन्त जी की आंखों के सामने गिरा।

‘युद्ध में अयोध्या’ दो खंडों में हैं। पहले खंड को नाम दिया गया है “अयोध्या का चश्मदीद” इसमें उन प्रकाशित खबरों का और एतिहासिक चित्रों का संकलन, उस वक्त के हालात के विवरण के साथ है, जो हेमन्त जी ने अयोध्या में रहकर रिपोर्ट किया। इनमें से ज्यादातर चित्र ऐसे हैं जो इस पुस्तक के अलावा कहीं और नहीं मिलेंगे और अब दोबारा कोई वो फोटो ले भी नहीं सकता क्योंकि अब उन भवनों का जमीन पर कोई नामोंनिशान नहीं है वो इतिहास का हिस्सा हो चुके। युद्ध में अयोध्या के दूसरे खंड में एक खोजी पत्रकार की पूरी रिसर्च है। ऐसे ऐसे खुलासे जो न कहीं रिपोर्ट हुए और न हो सकते थे। इसमें व्यक्तिगत बातचीत, सरकारी फाइलों में दबी चिट्टठी पत्रियां और अयोध्या को लेकर मंत्रियों, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और बड़े बड़े नौकरशाहों के बीच हुई बातचीत और मीटिंग्स के मिनिट्स हैं। वो सारी बातें हैं जो अयोध्या की सियासत और पर्दे के पीछे घट रहे घटनाक्रमों की पूरी हकीकत बयां करेगीं। जो अयोध्या के मुद्दे को समझना चाहता है जो इसकी हकीकत जानना चाहता है उसके लिए ‘युद्ध में अयोध्या’ संपूर्णता लेकर लाएगी। इसीलिए मैंने इसे संदर्भ ग्रन्थ कहा। ‘युद्ध में अयोध्या’ भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक प्रामाणिक दस्तावेज बनेगा जो राजनीति में राम और राम की राजनीति को समझने और समझाने का सबसे बेहतर श्रोत होगा।

 

ये विषय ऐसा है और हेमन्त जी को इतना पढ़ा है कि इस पर लगातार लिख सकता हूं। विषय कैसा भी हो लेकिन लेखक की कलम उसे रोचक बना सकती है। फिर लेखक खांटी बनारसी हो हो तो फिर कहना ही क्या। हेमन्त जी खुद जितने सरस और प्रसन्नचित हैं उनका लेखन भी उतना ही सहज है। कभी कभी उनके ज्ञानक्षेत्र के विस्तार पर आश्चर्य करता हूं। वैसे तो बनारस की गलियों से रोज रोज का नाता बहुत पहले छूट गया लेकिन रगों में बनारस ही दौड़ता है, मजाल है बनारसियों का एक भी लक्षण छूटा हो। बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय से हिन्दी के डॉक्टर बने इसलिए औपचारिक नाम डॉ हेमन्त शर्मा है लेकिन बनारसी नाम के आगे डॉक्टर लगा ले तो बनारसी कैसा? सो हेमन्त जी ने भी डॉक्टरी को त्याग कर बनारस को अपनाया। हालांकि कालिदास, कबीर, तुलसी,हरिशकंर परसाईं, हजारी प्रसाद द्विवेदी और जयशंकर से लेकर होली के बनारसी साहित्य तक कोई ऐसा नहीं है जो हेमन्त जी के स्मृतिपटल से गायब हो । हर तरह की रचना जुबान पर रहती है। खानों के प्रकार, तरह तरह की मिठाइयां और पकवानों को शौकीन हैं। मेजबानी, घुम्मकड़ी और फक्कडी पंसद बेहद प्यारे इंसान हैं। इसीलिए उनके लिखे शब्द सीधे दिल तक पहुंचते हैं। बड़े बड़े गंभीर विषयों को सीधे और सरल अंदाज में समझाने का उनका तरीका लाजबाव है। हेमन्त जी के लेखन की खासियत है कि पाठक खुद को पात्र समझता है।जो पढ़ता है उसे लगता है कि उसके जीवन की घटना है वो पढ़ नहीं, देख रहा है। युद्ध में अयोध्या पढ़ेंगे तो ऐसा ही अनुभव होगा।

जब से होश संभाला राम को विवादों में घिरे ही पाया। राम को देखा किसी ने नहीं लेकिन मेरी तरह हजारों साल से हमारे पुरखे भी यही मानते आए कि राम थे नहीं, राम हैं। राम कपोल कल्पना नहीं, कहानी के पात्र नहीं, वो थे, इसी धरती पर, इसी जम्बू दीप पर विचरे थे। राम अयोध्या में पैदा हुए जनकपुर में विवाह हुआ महल से निकल कर जंगल की तरफ बढ़े तमसा नदी के किनारे रुके फिर श्रृंगवेरपुर होते हुए चित्रकूट तक पहुंचे। पंचवटी में रहे। दंडकारण्य होते हुए किष्किंधा तक पहुंचे वहीं सुग्रीव से मिले। वानर सेना के साथ रामेश्वरम पर डेरा डाला। रामसेतु बना और लंका पर चढ़ाई हुई। रावण का वध हुआ और फिर अयोध्या वापसी। बाल्मीकि ने रामायण तो संस्कृत में लिखी लेकिन तुलसी दास ने अवधी में रामचरित को घऱ घर तक पहुंचाया। कई बार लगता है अगर तुलसी दास न होते तो आज के जमाने में राम राजनीति के हीरो न होते। अयोध्या विवादों में न होती। किसी को क्या फर्क पड़ता अयोोध्या में मंदिर बने या मस्जिद रहे। लेकिन तुलसी दास ने राम कथा को दिलों में उतार दिया और फिर जनमानस में अपने आराध्य के जन्मस्थान के प्रति भक्ति का समंदर हिलोरें मारने लगा। पांच सौ साल से आस्था का ये संघर्ष चल रहा है। लेकिन आजाद भारत में आस्था की आड़ में सियासत शुरू हुई। राम के नाम पर वोट बैंक की राजनीति।

 कांग्रेस के जमाने में मूर्ति प्रकट हुई, कांग्रेस की सरकार ने ताला खुलवाया, और कांग्रेस की सरकार ने ही राम को अदालत में कहानी का पात्र का बताया। ये सब वक्त और वोट की जरूरत से हुआ। लेकिन करीब एक साल पहले मैंने फ्रांसीसी मूल के इतिहासकार मिशेल डेनिनो को पढ़ा। मिशेल ने शिद्दत के साथ सबूतों की खोज की और ये पाया का भारतीय समाज में राम का अस्तित्व साढ़े तीन हजार साल पहले तक मिलता है। इसके सबूत हैं। अयोध्या में भव्य मंदिरों के सबूत है। रामयाण में जिन स्थानों का घटनाओं का जिक्र है उनके सबूत भी मिशेल मे खोजे। मिशेल ने साबित करने की कोशिश की कि राम कोई काल्पनिक चरित्र नहीं है। राम आज के नहीं है। राम भारत में साढ़े तीन हजार साल से पूजे जा रहे हैं। चूंकि मिशेल की रिसर्च अंग्रेजी में है बहुत से लोगों तक उनकी पहुंच नहीं है इसलिए कम ही लोग इसके बारे में जान पाए।

जैसा पहले लिखा कि हमारी पीढ़ी ने राम को शुरू से विवाद में देखा जो पढ़ा लिखा, देखा सुना वो सिर्फ अखवारों के जरिए या कुछ किताबों के जरिए। कुछ घटनाओं के साक्षी भी रहे पर उसके पीछे की पूरी कहानी को तथ्यों के साथ समझने देखने के न साधन मिले, न माध्यम। हेमन्त शर्मा जी देश के ऐसे अकेले पत्रकार और कलमकार है जो उन घटनाओं के साक्षी रहे जिनके कारण देश की सियासत का स्वरूप बदल गया और राम सियासत के केन्द्र हो गए। अब राम पर राजनीति की असलियत को समझने का माध्यम मिला है। हेमन्त जी की नई रचना ‘युद्ध में अयोध्या’ लोगों के ज्ञानचक्षु खोलेगी। अयोध्या की हकीकत सामने आएगी। राम के नाम पर हुई सियासत में राम ठगे गए या फिर हुआ वही जो राम रचि राखा। सबकुछ साफ साफ और सबूतों के साथ सामने होगा।

हेमन्त जी ने इस पुस्तक को सिर्फ लिखा नहीं है उसके एक एक पेज को डिजायन किया है, हर पन्ने का डिजायन अलग है। कबर पेज को आप छूकर अयोध्या को महसूस कर पाएंगे। एक हजार पन्नों का डिजायन बनाना, फिर कवर तैयार करना ये बड़ी बात है। जो लोग पांच पांच सौ पेज की दो किताबों के बारे में सोचकर चिंतित हों उन्हें मैं यकीन दिला सकता हूं ये पुस्तक बजन में भारी भरकम नहीं होगी एक बार किताब को हाथ में उठाएंगे तो पूरी पढ़े वगैर छोड़ नहीं पाएंगे। हमेन्त जी के अथक परिश्रम से और राम जी की कृपा से ये असाधारण काम पूरा हो चुका है। अब इंतजार है पुस्तक जल्दी से जल्दी हम सबके हाथों में पहुंचने का। हेमंत जी को इस अदभुत रचना के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं और साधुवाद।


pranay yadavप्रणय यादव। 20 साल से पत्रकारिता से जुड़े हैं। झांसी के मूल निवासी, दिल्ली में ठिकाना। कानपुर में शुरुआती पढ़ाई। उच्च शिक्षा के लिए संगम नगरी इलाहाबाद पहुंचे। कई टीवी चैनलों में पत्रकारिता की। दिग्गजों के बीच रहते हुए अपनी मौलिकता कायम रखने की कशमकश बरकरार है।

One thought on “‘सियासी समर’ से पहले ‘युद्ध में अयोध्या’

  1. कहते हैं विध्वंस में भी श्रृजन के अंकुर छिपे होते… हेमन्त शर्मा की ये दो श्रेष्ठ रचना इसका ज्वलंत उदाहरण हैं.

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