नवनीत सिकेरा की फेसबुक पोस्ट के साथ पुलिसवालों की ज़िंदगी और उनकी जिम्मेदारी को लेकर एक बहस छिड़ी। अमृता कुशवाहा नाम की महिला ने नवनीत सिकेरा की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए लिखा- पुलिस को देश की सेवा के लिए रखा गया है, वेतन भी मिलता है फिर भी इसके लिए अलग से पैसे मांगते हैं। यही नहीं दौड़ा-दौड़ा कर तंग करते हैं। ये सच है, जिस पर बीतती है वही समझता है। ये कोई तर्क नहीं कि बाकी भ्रष्ट हैं तो हम भी भ्रष्ट हो जाएं। पुलिस को अपनी डिग्निटी बनाए रखनी चाहिए। जो सही हैं उनसे सीख लेनी चाहिए। कई लोग बोल रहे हैं कि पुलिस की सैलरी कम है और ना जाने क्या-क्या प्रॉब्लम है। पुलिस को अपने अधिकार के लिए सरकार से लड़ना चाहिए। अपनी मांग उनके सामने रखनी चाहिए। रिश्वत समस्या का हल नहीं। अमृता कुशवाहा की टिप्पणी पर मुरादाबाद में तैनात पुलिस कॉन्स्टेबल राज कुमार कौशिक की पत्नी गीतांजलि शर्मा का जवाब।
अमृता जी, मैं आपकी बात को व्यक्तिगत तौर पर नहीं ले रही हूँ। लेकिन आप नाम का खुलासा मत कीजिये। इतना तो बता ही सकती हैं कि आपने कितने सिपाहियों को देखा है, जिनके बंगले हैं? ये भ्रष्टाचार एक कोढ़ है। इसे दूर होना ही चाहिए, चाहें वो पुलिस हो या कोई और विभाग। पता है, कहाँ से भ्रष्ट सिस्टम शुरू होता है? जब आपका बच्चा किसी सरकारी विभाग में नौकरी पाता है, और आप कहते हैं कि बहुत बढ़िया पोस्टिंग हो गयी है, ऊपर की आमदनी भी बहुत है। भ्रष्टाचार तब शुरू होता है जब आप नौकरी पाने के लिए रिश्वत देने को तैयार हो जाते हो। भ्रष्टाचार तब शुरू होता है, जब आप अपना कोई भी काम जल्दी कराने के लिए 10-20 रुपए से 1000-2000 या उससे भी ज्यादा देने को तैयार हो जाते हैं।
आप लोग क्या सोचते हैं? पुलिस वाले को कितनी सैलरी मिलती है? 17 साल बाद 21000 रुपए हाथ में आते हैं। मेरा भी मन करता है कि गाड़ी में घूमूं। मेरा बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़े। लेकिन मेरे हालात ऐसे नहीं हैं। मेरे बच्चों की क्या ग़लती है? अगर सरकार 24 घण्टे ड्यूटी करा कर मेरे पति को सैलरी में ‘बाबाजी का ठुल्लू’ देती है। उसमें भी हालत ये कि इनमें से 5-6 हज़ार रूपये तो उनके ड्यूटी स्थल पर पहुचने में ही हर महीने खर्च हो जाते हैं। एक वर्दी कम से कम 2000 रुपए की बैठती है, उसके ऊपर से जूते, बेल्ट और भी बहुत से सामान, तो साल में कम से कम 10 हज़ार रुपए उनकी वर्दी में लग जाते हैं।
आप ठीक हैं, भ्रष्टाचार होता है तो घूम फिर के आम आदमी पर भारी पड़ता है। उसके लिए मैं खुद सॉरी फील करती हूँ और आपके लिए आसान है इल्जाम लगा देना। लेकिन वस्तु स्थिति को भी समझना होगा। अगर आप एक या दो या हद से हद 4-5 बंगले वाले सिपाही को देखकर पूरे देश के सिपाहियों पर आरोप मढ रही हैं तो ये ठीक नहीं। मैं तो पुलिसवालों के बीच रहती हूँ। मैंने तो सैकड़ों सिपाहियों और उनके परिवार को बदहाली में जीते और अपनी रोज़मर्रा की जरुरतों के लिए लड़ते देखा है। मैं क्यों उन्हें पूरे पुलिस वालो का प्रतिनिधि नही बताऊँ? आप बताइये।
आपको पता है? एक मजदूर की दिहाड़ी होती है 400-500 रुपए प्रतिदिन और काम करने के घण्टे होते है 8। मेरे पति की सामान्य ड्यूटी होती है 12 घण्टे और उसके बाद भी किसी भी समय आपातकाल ड्यूटी लगाई जाए तो नियम के तहत उन्हें जाना ही होगा। वो ड्यूटी से इनकार नही कर सकते। यही नहीं कभी-कभी दिन रात लगातार ड्यूटी करनी पड़ती है। एक दिन की ‘मजदूरी’ करीब 750 रुपए? मजदूर स्वतन्त्र हैं किसी की मजदूरी करने ना करने के लिए, पुलिस वाला नहीं। घर में हम बीमार हों जाएँ, उनके माँ-बाप बीमार हों या कुछ और समस्या, फिर भी पुलिस वाले घर समय से कभी नहीं पहुँचते। कोई त्यौहार हम अपने परिवार के साथ नहीं मना पाते क्योंकि, उस समय छुट्टियां बन्द हो जाती हैं। मैं और बच्चे यहां, पति ड्यूटी पर और परिवार वाले घर। आप समझ सकती हैं इस तनाव को। इस समय भी मेरी सास 1 महीने से बिस्तर पर हैं। मैं तो चली गयी पर मेरे पति बहुत मुश्किल से एक दिन के लिए जा पाये। इस समय वो जॉली ग्रांट देहरादून में हैं और हम उनसे मिलने नहीं जा पा रहे। आप बात करती हैं पुलिस के भ्रष्टाचार की। अरे कभी सहानुभूति भी दिखाइए हमारे इन हालात पर।
एक मजदूर अगर अपने बच्चे को प्राइमरी स्कूल में पढ़ाये, झोपडी में रहे, पुराने या फटे कपड़े पहने, उसके घर में ठीक से खाने को ना हो, उसके घर में दूध ना मिले तो आप कहोगे बेचारा मजदूर है। हमें तो ये छूट भी नहीं। सरकारी नौकरी करते हैं, घर वाले भी यही समझते हैं लड़का पुलिस में है, मौज कर रहा है। हमसे हमेशा मौके पे धन लेने की आशा भी रखी जाती है। मध्यम वर्ग के अनुसार अपना रहन-सहन रखने का दबाव। बच्चों को पढ़ाने का दबाव। आगे डिग्री भी दिलानी है बच्चों को, घर भी बनवाना है, रहन-सहन भी अपडेट रखना है, चार लोगों में बैठने को अच्छे कपड़े चाहिये। घर खर्च भी चलाना है, परिवार की देखभाल करनी है। पैसे वाले लोगों के बच्चों के पास साइकिल है, क्रिकेट बैट है, गुड़िया है, खिलौने हैं हमारे बच्चे भी जिद करते हैं। लोग रेस्त्रां में जाकर खाना खा आते हैं, हमें भी मन करता है कभी-कभी। आप बड़े-बड़े मॉल में जाते हो तो हम भी कभी शॉपिंग करना चाहते हैं। बर्थडे, सालगिरह मन करता है हम भी मनाये। खुश होने का अधिकार है हमारा, आखिर हम भी इंसान हैं। पर नहीं, हमारे पति को तो ड्यूटी जाना है और अगर जुगाड़ से छुट्टी मिल गयी तो इतना पैसा कहाँ है जेब में?
आप समझ सकते हैं किसी नई फ़िल्म को देखने के लिए मचलता बच्चा जिद करता है। हमें पता है कि अगर फ़िल्म देखी तो हमारे महीने का बजट खराब हो जायेगा, तो बहाने बनाते हैं। दिल टूट जाता है अंदर से जब हमारा बच्चा रो रहा होता है और हम उसे डांट रहे होते हैं। वो जिद करता है पापा नैनीताल जाना है, हम मना कर देते हैं, बजट नहीं है। वो सो कर सुबह उठता है तो उसके पापा नहीं मिलते हैं, वो सोचता चलो शाम को तो मिल लूंगा। पर वो तो ड्यूटी में फंसे हुए हैं शाम को भी ऐसे ही सो जाता है। कई बार कई दिन ऐसे ही बीत जाते हैं। आप इस घुटन को समझना नहीं चाहते। आप नहीं चाहते कि हमें भी आप एक बार थैंक्यू बोलें। क्योंकि, हम इतना बलिदान करते हैं तो आप सुरक्षित महसूस करते हैं। भ्रष्ट ही सही पर पुलिस ही दिखती है, जब कोई और नहीं दिखता।
जब इतना बलिदान करते हैं, बच्चे तरसते हैं और समय भी नहीं तो पुलिस वाला भी सोचता है कि चलो पैसा ही कमा लूँ। हम भी आपकी तरह साधारण घरों से निकले हैं, मंगल ग्रह के वासी नहीं। हम नैतिकता-अनैतिकता के फर्क को समझते हैं। पर हमारा सिस्टम मजबूर कर देता है हमें भ्रष्ट होने को। समझीं आप अमृता जी? तो आगे से किसी पुलिस वाले से मिलें तो जो मैंने लिखा है उसे याद कीजिएगा। धन्यवाद का भाव आ जायेगा।
गीतांजलि शर्मा, यूपी पुलिस में कॉन्स्टेबल राजकुमार कौशिक की पत्नी।
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Shukria Gitanjali ji.
bahut shi kaha gitanjali ji ne …air ye inme se nhi jo ghoos lete hn ….m rajkumar koushik ji ko bahut achchi tarah as jaanti hon …wo bahut hi imandaar aur sadharad insaan hn ….jo ek bahut achcha aur sachcha dil aur aatmsamman rakhte hn ….thanku rajkumar ji …thanku gitanjali
bahut achha dd
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