सत्येंद्र कुमार यादव
साइकिल बड़ी काम की सवारी है। गांव, कस्बों और छोटे शहरों में गेहूं पिसवाने, धान कुटवाने से लकरे स्कूल तक पहुंचाने का काम करती है। पर्यावरण भी बचाती है और शरीर को स्वस्थ भी रखती है। गांव में जिसके यहां मोटरसाइकिल नहीं है उनका न्योता, रिश्तेदारी वही निभाती है। हाल ही में नीतीश बाबू को फिर से सत्ता तक पहुंचाने में मदद की। अब आपका घर रौशन करने की तैयारी में है। पेंडल मारो और बिजली पैदा करो। घर बैठे आप 5 घंटा साइकिल चलाएंगे तो 24 घंटे बल्ब जलाएंगे। और इससे कई फायदे भी होंगे। सेहत भी सुधरेगी, मुफ्त में बिजली मिलेगी और आपका पर्यावरण भी बचेगा। बिजली पैदा करने के लिए पानी, कोयला की जरूरत होती है, अब परमाणु बिजली घर चलन में हैं, सोलर पैनल लगाएंगे तो सूरज की जरूरत पड़ेगी। कई दिनों तक सूरज नहीं निकला, बारिश या कोहरा की स्थिति में मामला गड़बड़ हो जाता है लेकिन साइकिल से बनने वाली बिजली के साथ ऐसा नहीं है। सीजन कोई भी हो, मौसम कैसा भी हो, आंधी आए या तूफान बिजली नहीं जाएगी। घर में जितना पेंडल दबाएंगे उससे कहीं ज्यादा बिजली पाएंगे।
ये साइकिल अप्रैल 2016 के अंत में या मई में बाजार में आ सकती है। लखनऊ में पैदा हुए भारतीय-अमेरिकी अरबपति मनोज भार्गव ने इसे पेश की है। बचपन में मनोज भार्गव अमेरिका चले गए लेकिन दिल तो हिंदुस्तानी था। इसलिए उनका इरादा देश के उन गरीबों के लिए कुछ करने का था जो अंधेरे में रहते हैं। कई साल से इसी प्रोजेक्ट में लगे थे कि आखिर गरीबों तक मुफ्त बिजली कैसे पहुंचाई जाए और गरीब क्यों ना खुद बिजली पैदा करें।
अपने इस मिशन में NRI मनोज भार्गव को सफलता मिली और शुरुआत में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 25 बिजली वाली साइकिल लखनऊ, अमेठी, रायबरेली के इलाकों में लगाएंगे। पहले चरण में करीब 10 हजार बिजली बनाने वाली साइकिल का वितरण करेंगे। साइकिल बेचने की शुरुआत उत्तराखंड से किया जा सकता है। एक साइकिल की कीमत 250 डॉलर यानि 12-15 हजार रुपए है। इससे ग्रामीण परिवार अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। 2015 में भारत दौरे पर आए मनोज भार्गव ने नई दिल्ली में अपने उत्पाद को पेश करते हुए कहा, “यह साइकिल बिजली पैदा करेगी। इसका पैडल फ्लाईव्हील बन जाएगा। यह एक जेनरेटर को घुमाएगा जो इससे जुड़ी बैटरी को चार्ज करेगा।”
1 घंटे तक साइकिल चलाने पर एक ग्रामीण परिवार की बिजली की जरूरत पूरा हो सकेगा। साइकिल से बनी बिजली से लाइट जलाई जा सकेगी, मोबाइल चार्ज किया जा सकता है और एक पंखा भी चला सकते हैं। इसके लिए ना तो कोई बिजली का बिल देना होगा और ना ही डीजल, पेट्रोल खर्च करना पड़ेगा। एक बार बिजली पैदा करने वाली साइकिल घर में लग गई तो बिजली आने-जाने की चिंता नहीं रहेगी।
साइकिल से कैसे बनेगी बिजली?
जब आप साइकिल का पैडल दबाएंगे तो साइकिल का पहिया एक फ्लाइव्हील को घुमाएगा आर फ्लाइव्हील जनरेटर को।जनरेटर बैटरी को चार्ज करेगा और बैटरी आपको 5 घंटे में 24 घंटे बिजली सप्लाई करेगी।
यह मशीन आराम से कहीं भी लगाई जा सकती है। चाहें पक्के घर हो या झोपड़ी।
ये मशीन जहां लगाएंगे वहीं बिजली पैदा करेगी। घर बदलते समय इसका स्थान भी आप बदल सकते हैं। कहीं भी इसे आराम से ले जा सकते हैं।
जरा सोचिए! अगर ये मिशन सफल हो गया तो उन घरों में जो सूदूर ग्रामीण इलाकों, बिहड़ों और रेगिस्तानी, पहाड़ी क्षेत्रों में बसे हैं, के अच्छे दिन आ जाएंगे। कम से कम बिजली की समस्या तो हल हो ही जाएगी। ना तो बिजली विभाग का चक्कर लगाना पड़ेगा और ना ही किसी विधायक, सांसद के दरवाजे पर बिजली के लिए गुहार लगानी पड़ेगी। ट्रासफार्मर बदलवाने का झंझट भी खत्म हो जाएगा। वर्तामान में आप सिर्फ एक सामान्य साइकिल खरीदेंगे तो तीन से पांच हजार रुपए तक खर्च करना पड़ेगा। बिजली बनाने वाली साइकिल इसकी तुलना में ज्यादा महंगी नहीं है। हो सकता है इसे बढ़ावा देने और गरीबों के घर से अंधेरा दूर करने के लिए सरकार भी गरीबों के लिए सब्सिडी का ऐलान कर दे। अगर ऐसा हो गया तो सोने पर सुहागा वाली बात होगी। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से उम्मीद करते हैं कि जिस तरह वो अपने राज्यों में साइकिल वितरण योजना चला रहे हैं उसी प्रकार इसे भी ग्रामीण इलाकों में वितरित करवाएंगे। ताकि गरीबों के घर में कम से कम उजाला तो हो। उजाला होने पर रास्ते भी दिखने लगते हैं, अंधेरे में तो अपनी छाया तक नहीं दिखती।
सत्येंद्र कुमार यादव, एक दशक से पत्रकारिता में । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर सक्रियता । आपसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है ।