हिंदुस्तान के सबसे बड़े सूबे की शिक्षा व्यवस्था पर आया है एक बड़ा फ़ैसला। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में यूपी के सरकारी स्कूलों में बड़े बदलाव के लिए पहल की है। कोर्ट ने सरकारी मुलाजिमों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का निर्देश दिया है। इसके लिए सूबे की सरकार को अदालत ने एक तय समयसीमा में कुछ कायदे-कानून बनाने की नसीहत भी दी है। हो सकता है हाईकोर्ट का ये फ़ैसला एक तबके को ज़्यादा रास न आए, लेकिन एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो इस फ़ैसले से सरकारी स्कूलों की शिक्षा में बड़े बदलाव की शुरुआत देख रहा है।शिक्षा का समाजवाद-एक
सवाल उठता है कि आख़िर बरसों से बदहाल प्राथमिक शिक्षा की हालत रातों-रात कैसे सुधरेगी? मौजूदा हालात में क्यों कोई अपने बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाकर उनका भविष्य दांव पर लगाएगा? कैसे बदलेगी इन स्कूलों की सूरत? इन सवालों का जवाब शायद इन स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचरों से बेहतर कौन दे सकता है। इन्हीं सवालों के जवाब टटोलने टीम बदलाव की तरफ से एपी यादव ने हरदोई जिले के एक प्राथमिक स्कूल के प्रधानाचार्य से बात की। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कई अहम बातें बताईं, जो हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं।
बदलाव- हाईकोर्ट के फ़ैसले को आप किस रूप में देखते हैं, क्या इससे कोई बदलाव आएगा?
प्रिंसिपल– उच्च न्यायालय का फैसला बहुत सराहनीय है। हाईकोर्ट की ये टिप्पणी कि ‘जब सरकारी मुलाजिम अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएंगे तो हालत खुद-ब-खुद सुधर जाएगी’, बिलकुल सही है। प्राथमिक विद्यालयों की बदहाली के लिए हमारा सरकारी तंत्र ही ज़िम्मेदार है।
बदलाव- सुनने में आता है प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक योग्य नहीं होते, और ठीक से नहीं पढ़ाते?
प्रिंसिपल- ऐसा नहीं है, पिछले कुछ सालों से प्रदेश में वेल एडुकेटेड टीचरों की भर्ती हुई है। पोस्ट ग्रेजुएट, बीएड, और टीईडी, सीईटी पास टीचर्स सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, जबकि तमाम प्राइवेट स्कूलों में इससे भी कम योग्यता के टीचर्स हैं।
बदलाव- आखिर ऐसे क्या ज़रूरी बदलाव किए जाएं जिससे शिक्षा का स्तर सुधर सके।
प्रिंसिपल- सबसे पहले तो आंगनवाड़ी केंदों को सुधारने की जरूरत है, क्योंकि शुरुआती करीब दो साल बच्चे इन्हीं केंद्रों में पढ़ाई करते हैं। आप यकीन नहीं मानेंगे इन केंद्रों में सिवाय खानापूर्ति के कुछ नहीं होता। बच्चा जब 5 साल के बाद पहली कक्षा में दाखिला लेने सरकारी स्कूल में आता है तो न तो वो ठीक से बोल पाता है और ना ही उसे बेसिक जानकारी होती है। ऐसे में उन बच्चों के साथ एबीसीडी से शुरुआत करनी पड़ती है, जो वाकई एक बड़ी चुनौती है।
बदलाव- सारी जिम्मेदारी आंगनवाड़ी केंद्रों पर थोपना ठीक नहीं, आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर गिरा है। इसकी वजह क्या है?
प्रिंसिपल- सबसे बड़ी दिक्कत है स्कूलों में टीचरों की कमी और शिक्षा से ज़्यादा दूसरे कामों का बोझ। आप यकीन नहीं मानेंगे कि हम शिक्षकों को बिल्डिंग बनवाने से लेकर जनगणना, मिड डे मिल जैसे तमाम कामों को देखना पड़ता है। ये सब वर्किंग ऑवर में ही होता है। आप उम्मीद करें कि हम बच्चों को भी अच्छे से पढ़ाएं और बिल्डिंग भी बनवाएं, ये कैसे संभव है? बिल्डिंग बनवाओ, उसका हिसाब रखो, साथ ही साहब के कमीशन का ख्याल भी। अगर ऐसा नहीं किया तो गलत रिपोर्ट बना दी जाएगी, फिर आपकी नौकरी पर संकट। यही नहीं अगर 10 साल में बिल्डिंग में कोई कमी आती है, तो उसकी जवाबदेही टीचरों की होती है, और पैसा भी टीचरों से वसूलने का प्रावधान है।
बदलाव- आखिर रास्ता क्या है, क्या किया जाना चाहिए?
प्रिंसिपल- सबसे बड़ा बदलाव टीचरों की भूमिका को लेकर होना चाहिए। टीचर का काम सिर्फ बच्चों के पढ़ाई तक सीमित किया जाना चाहिए बाकि कामों के लिए उस पेशे से जुड़े लोगों की भर्ती की जानी चाहिए। स्कूलों में मिड डे मिल का जिम्मा पढ़ने वाले बच्चों के परिवार को सौंपा जाना चाहिए, हर किसी को अपने बच्चों की फिक्र होती है लिहाजा वो अच्छा काम भी करेंगे और उनको एक रोजगार भी मिलेगा।
विपरीत हालात के बाद भी हमलोग स्कूल में अच्छे माहौल और अच्छी शिक्षा की कोशिश करते हैं। फिर भी बड़े बदलावों के बिना कुछ भी कर लीजिए, शिक्षा का स्तर सुधरने वाला नहीं। लिहाजा हाईकोर्ट का आदेश एक अच्छा कदम जरूर है लेकिन राह आसान नहीं।
अपने जिले और गांव के सरकारी स्कूल के हालात पर रिपोर्ट भेजें। इस विमर्श को आगे बढ़ाएं। आपकी राय से ही पड़ेगी बदलाव की नींव।
बढिया रपट…
हाईकोर्ट का फैसला सराहनीय
हाईकोर्ट का फैसला मेरे हिसाब से गलत है जब तक हम किसी मूल जड़ तक नहीं जायेंगे तब तक बुनियादी समस्याओं का हल नहीं निकाल सकते।
कोर्ट का फैसला ठीक वैसा ही है जैसे जड़ में पानी न डाल कर पत्तों में पानी डालना।
स
कोर्ट की टिप्पणी सही है
साथ ही आपका प्रयास सराहनीय है।
अगर कोर्ट की टिप्पणी पर अमल हुआ तो यह शिक्षा के लिए मील का पत्थर होगा।