एक ऐसा गांव जो समंदर के बीच खड़ा है। सूरज की रोशनी, बारिश का पानी और समंदर की मछलियों से ही जिसकी जिंदगी चलती है। फिर भी पहाड़ सा बुलंद इरादा । सागर जैसा दिल । सूरज की पहली किरण जिसे चूमती है और चांद निहारते नहीं थकता । समंदर की लहरों से अटखेलियां करता, सागर की गोंद में बसा, सैकड़ों सालों से विराजमान। कुछ ऐसा है घारपुरी गांव। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से करीब 12 किमी. दूर समंदर के बीच में बसा है महाराष्ट्र का घारपुरी गांव । वैसे तो घारपुरी रायगढ़ जिले का हिस्सा है लेकिन मुंबई से इसका गहरा नाता है । इसको जानने और समझने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना होगा ।
छठीं, सातवीं शताब्दी में निर्मिता एलिफेंटा की गुफाओं से घारपुरी का चोली-दामन का साथ है। पहले इसका नाम अग्रहारपुरी था, जिसके नाम पर बाद में एलिफेंटा गुफा के पास बसी बस्ती का नाम घारपुरी पड़ गया। हाथी की आकृति का होने की वजह से 1534 में पुर्तगालियों ने इसका नाम एलिफेंटा रखा। हालांकि यहां पर हिन्दू देवी-देवताओं के अनेक मंदिर और मूर्तियां भी हैं। ये मंदिर पहाड़ियों को काटकर बनाए गए हैं। भगवान शंकर के विभिन्न रूपों, क्रियाओं को दर्शाती नौ बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं। शिव के पंचमुखी परमेश्वर रूप और अर्धनारीश्वर स्वरूप को दर्शाती मूर्तियां सबसे आकर्षक है। समंदर के बीच में बसा एलीफेंटा गुफा एक द्वीप सा है । जिसे देखने के लिए आए दिन देश-विदेश से हजारों सैलानी यहां घूमने आते हैं लेकिन शायद ही घारपुरी गांव के बारे में ज्यादा लोग जानते होंगे । जबकि इस गांव की कमाई का बहुत बड़ा जरिया ये सैलानी ही होते हैं। हम भी घूमने तो एलिफेंटा ही गए थे लेकिन जब गुफा के ऊपरी हिस्से में पहुंचने के बाद जब नीचे देखा तो एक कस्बा दिखाई दिया जो अपने पैरों पर खड़ा मुस्कुरा रहा था। पूछने पर पता चला कि ये घारपुरी गांव हैं । फिर क्या हम चल पड़े सागर राजा के गांव को देखने।
बात 2012 की है जब हमने इस गांव का जायजा लिया। साफ, स्वच्छ, समंदर के बीच पहाड़ों में सूर्य की रोशनी में ये गांव चमक रहा था। गांव में बिजली के तार तो नहीं दिखे लेकिन हर घर रौशन था। पूछने पर पता चला कि पूरा गांव सौर ऊर्जा से जगमग होता है। लोगों ने बताया सूर्य जहां हमे रोशनी देता है वहीं समंदर भोजन। बारिश ना हो तो पीने के पानी की समस्या हो जाती है। क्योंकि समंदर का जल खारा होने की वजह से उसका इस्तेमाल पीने के लिए नहीं किया जा सकता। इसलिए गांव के लोगों ने ऐसी व्यवस्था बनाई है कि बारिश का पूरा पानी एक डैम में जमा हो जाए। ये डैम ही समंदर के इस गांव की प्यास बुझाता है। गौर करने वाली बात ये है कि ग्रामीणों ने डैम में प्लास्टिक की मौटी चादर बिछा रखी है ताकि बारिश का पानी रिसकर बर्बाद ना हो। यानि इंद्र देव की कृपा से ही 600 लोगों की आबादी वाले इस घारपुरी गांव की प्यास बुझती है। डैम इतना बड़ा है कि अगर एक बार भर गया तो समझिए गांव वालों के लिए सालभर के पानी का इंतजाम हो गया। बारिश का पानी फिल्टर होने के बाद पूरे गांव में सप्लाई होता है। अगर कभी पानी का संकट आ गया तो गांव वालों के लिए डब्बा बंद पानी खरीदने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं, जो काफी खर्चीला होता है ।
घारपुरी में बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल से लेकर क़ॉलेज तक की व्यवस्था की गई है । यही वजह है कि इस गांव की शिक्षा
दर राज्य की शिक्षा दर से किसी मायने में पीछे नहीं है । हालांकि उच्च शिक्षा के लिए मुंबई का रूख करना पड़ता है। महाराष्ट्र की शिक्षा दर 85 फ़ीसदी के करीब है तो घारपुर की 81 फ़ीसदी से ज्यादा जिसमें करीब 90 फ़ीसदी पुरुष शिक्षित हैं तो महिलाएं 75 फ़ीसदी से ज्यादा जो देश की कुल लिटरेसी रेसियो से ज्यादा ही है । खास बात ये है कि सेक्स रेसिया के मामले में भी घारपरी गांव देश और अपने राज्य से काफी आगे हैं । महाराष्ट्र में एक हज़ार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1000 से नीचे हैं जबकि घारपुरी में एक हज़ार से ज्यादा । बच्चों का अनुपात के मामले में भी समंदर का ये गांव राज्य को पीछे छोड़ देता हैं । क्योंकि राज्य में इसका अनुपात 894 है जबकि इस गांव में 1375 । ये आंकड़े घारपुरी गांव की सामाजिक सोच की समझने के लिए काफी हैं ।
देश के आम गांवों की तरह घारपुरी में भी पंचायत व्यवस्था लागू है । हर पांच साल पर यहां भी एक सरपंच चुना जाता है जो गांव वालों की सुख-सुविधाओं का ख्याल रखता है । गांव में हर पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है । समंदर में बसे होने की वजह से सरकार ने इस गांव को कुछ खास सुविधाएं भी दे रखी हैं । मसलन, गांव वालों के लिए शहर आने-जाने के लिए फ्री सेवा की बोट की व्यवस्था की गई है, इसको इस तरह से भी समझ सकते हैं कि अगर गांव का कोई सदस्य किसी काम से शहर जाता है तो उसे जल मार्ग से जाने के लिए कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ता जबकि सैलानियों को इसके लिए 100 से 150 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
गांव में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है लिहाजा इलाज के लिए अक्सर इन लोगों को मुंबई की ओर रुख करना पड़ता हैं । मुश्किल तब होती है जब हाई टाइड आता है जिसके चलते बोट से आना-जाना खतरनाक होता है। गांव वालों का कहना है कि यदि यहां अच्छे अस्पताल की व्यवस्था हो जाए तो किसी को इलाज के लिए खतरा नहीं उठाना पड़ेगा। कभी-कभी सैलानियों की तबीयत बिगड़ने पर तुरंत इलाज नहीं मिल पाता है। हालांकि घारपुरी में एक डिसपेंसरी है जहां लोग इलाज कराते हैं।
अगर आप घूमने फिरने के शौकीन हैं और मुंबई गए हैं तो एक बार घारपुरी गांव जरूर जाएं। घारपुरी गांव जाने के लिए आपको मुंबई से करीब एक घंटे तक सफर तय करना पड़ता है। मुंबई के मस्तक पर विराजमान गेट वे ऑफ इंडिया से आपको एलिफेंटा जाने के लिए बोट मिलेगी। जिसका किराया करीब 100 से 150 रुपये होता है, वापसी का किराया भी इसी में शामिल होता है। बोट एलिफेंटा से करीब एक किमी दूर ही सैलानियों को छोड़ देती है, इसके बाद या तो आप पैदल चलकर वहां जाएं या थोड़ा पैसा और खर्च कर छूकछूक ट्रेन का लुत्फ उठाते हुए । एलिफेंटा का मुहाने पर पहुंचते ही आपके स्वागत के लिए तैयार खड़ा मिलता है घारपुरी गांव । ऊपर नज़र दौड़ाएंगे तो हाथी के आकार का एक विशाल पहाड़ नज़र आएगा । अब आगे जाने के लिए आपको टिकट लेना पड़ेगा जिसका एक हिस्सा घारपुरी गांव के लिए बतौर टैक्स लिया जाता है । एलिफेंटा की शिल्पकारी को निहारते हुए जब आप ऊपरी हिस्से के पूर्वी छोर पर पहुंचते हैं और गुफाओं से नीचे झांकते हैं तो सामने सूरज की रौशनी में चमकता नजर आता है ऐतिहासिक घारपुरी गांव।
प्रियंका यादव, तन दिल्ली में भले हो लेकिन मन तो गांव ही बसता है । जब कभी घूमने का मौका मिलता है तो गांव पहली पसंद होती है।