हेमन्त वशिष्ठ
मुद्दों की आड़ में
गई इंसानियत भाड़ में
हैवानियत के ठेके पर
जब हम ताज़ा-ताज़ा हैवान बनते हैं…
बहुत कुछ गवां देती है ज़िंदगी
चंद मकसदों के लिए
शहर जब श्मशान बनते हैं…
कर्फ्यू की खामोशी में
दस दिन की बासी रोटी में
मांगें हुए चंद निवालों में
किस तरह दिन सालों से निकलते हैं
ऑर्डर की राह तकती आंखों की बेबसी
भीड़ के आगे क्यूं बेज़ुबान बनते हैं
रिश्तों के कफन लिए
चंद कमज़र्फों की कमान में
खाली पड़े बंद मकानों में
लुट चुकी जली दुकानों में
लाशों की राख है, बिखरी हुई
मुर्दा मोहल्लों… अरमानों में
रंगों में
निशानों में
फर्क मिट जाए
जब इंसानों में
हदों से भी आगे
हम बेशर्म अनजान बनते हैं
चंद मतलबों के लिए
शहर जब श्मशान बनते हैं
अपनों के ही हाथों
अपनों की लाशों के मचान बनते हैं
शहर … जब श्मशान बनते हैं…
हेमंत वशिष्ठ। टीवी टुडे नेटवर्क के साथ लंबा वक्त गुजारने के बाद इन दिनों राज्यसभा टीवी में कार्यरत। हेमंत ने VIPS, आईपी यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की पढ़ाई की। इन दिनों दिल्ली में निवास। आपसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।