ये कहानी एक ऐसे 83 साल के ‘नौजवान’ की है, जो बचपन में अख़बार बेचकर अपने भाई को पढ़ाता था। बचपन में जब पता चलता था कि मां की हिस्से की रोटियां उसने खा ली तो मां से लिपट कर रो पड़ता था। आठ साल की उम्र में गणित की पढ़ाई के लिए सुबह 4 बजे उठकर मीलों दूर जाना उसकी आदत थी। वो शहरों की तरह गांव को भी आगे बढ़ते हुए देखना चाहता था। आशी अम्मा के लिए बिजली बनाने की ख़्वाहिश थी। इस बालक ने गरीबी और गांव से निकलकर देश के रायसीना हिल्स तक का सफ़र तय किया।
शहर सरीखे गांव का सपना
कलाम स्वयं एक पिछड़े गांव में पैदा हुए थे। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गांव (तमिलनाडु के रामेश्वरम) में हुआ। पिता जैनुलाब्दीन कम पढ़े लिखे थे। जीवन यापन के लिए मछुआरों को अपनी नाव किराए पर देते थे। कलाम गांव के हर दुख दर्द से वाकिफ थे, इसलिए वो गांव के लिए कुछ करना चाहते थे।
राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा करने के बाद डॉ कलाम ने अपनी ज़िंदगी का एक मकसद गांवों का विकास बना लिया। वो गांवों में शहरों की तरह सुविधा देना चाहते थे। कुछ गांवों की पहचान कर वहां ‘अर्बन फैसेलिटी इन रुरल एरिया स्कीम’ लागू करने की बात की। कलाम ने छत्तीसगढ़ में Provision of Urban Amenities to Rural Areas (PURA) योजना की आधारशिला रखी। गांव में बैटरी चलित वाहन, राष्ट्रीय स्तर का अत्याधुनिक अस्पताल और मोबाइल क्लीनिक की व्यवस्था का सपना देखा। पलायन को रोकने के लिए ग्रामीण इलाकों में रोजगार परक उद्योग और बेहतर शिक्षा सुविधाएं मुहैया करने पर कलाम का जोर था। पंजाब के बठिंडा जिले के उपेक्षित गांव गहरी बुटटर के कायाकल्प में कलाम के विजन की अहम भूमिका रही। इसी तरह यूपी के सीएम अखिलेश के साथ मिलकर सोलर एनर्जी पर काम किया।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम को अपने माता-पिता के गांव का अंधियारा ताज़िंदगी खलता रहा। उन्हें गांव में बिजली मुहैया नहीं करा पाने का बहुत मलाल था। अपनी किताब ‘रिइग्नाइटेड, साइंटफिक पाथवेज टू ए ब्राइटर फ्यूचर’ में कलाम ने लिखा था कि “मैं अपने माता-पिता को ऐसी सुविधाएं नहीं दे सका, क्योंकि उस वक़्त हमारे पास ऐसी सुविधा, ऐसी तकनीक नहीं थी। इसका मुझे सबसे ज़्यादा अफ़सोस है।” उन्होंने गांवों में सौर ऊर्जा से पैदा होने वाली बिजली के इस्तेमाल का सपना देखा। कलाम ने हाल ही में यूपी के कन्नौज में 250 केवीए के सोलर प्लांट का लोकार्पण किया। ऐसे मौकों पर उनको जो सुकून मिला करता था, उसकी कल्पना गांव से भावनात्मक जुड़ाव रखने वाला कोई शख़्स ही कर सकता है।
कैसे खुशहाल हों किसान?
एपीजे अब्दुल कलाम किसानों की ज़िंदगी बदलने का सपना बुनते रहे। वो पैदावार बढ़ाने के लिए किसान सहकारिता आंदोलन की वकालत करते रहे। उनका कहना था- “जोत लगातार छोटी हो रही है, ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि किसानों को एक साथ लाकर आधुनिक खेती को बढ़ावा दिया जाए। मूल्य संवर्धन, अनाजों को रखने की व्यवस्था और कृषि उत्पादों को बाज़ार देकर किसानों की हालत सुधारी जा सकती है।” डॉ कलाम ट्रांसजेनिक और जीएम तकनीक पर ज़्यादा ज़ोर देते थे।
कलाम एक ऐसी शख़्सियत के तौर पर भी याद किए जाएंगे जो रायसीना हिल्स में रहते हुए गांव की धड़कन सुनने का माद्दा रखता था। एक ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर याद किए जाएंगे, जो मिसाइल बनाने की ताकत रखता था, तो गांव का अंधियारा मिटाने की तरकीब भी उतनी ही शिद्दत के साथ सोचा करता था। सियासत के सर्वोच्च शिखर पर बैठे कलाम पर पूरे देश को नाज है… नाज है आशी अम्मा को भी… नाज जौनुलआब्दीन को भी… तमाम आशी आज कलाम को आशीष दे रही हैं… तमाम जौनुल आज कलाम के कमाल की जय-जय कर रहे हैं। कोई ये कुबूल करने को तैयार ही नहीं कि ऊर्जा का जीता जागता सोता अब उड़ चला है एक नए सफ़र के लिए…
दुनिया बदलनी है तो ये यात्रा तो जारी रखनी है न …
-सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।
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