जेएनयू प्रकरण और मीडिया। इस मुद्दे पर बदलाव की ओर से आयोजित विचार गोष्ठी के लिए रविवार की शाम 4 बजे से वैशाली के जज कॉलोनी पार्क में पत्रकारों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। शाम 4.30 बजे चाय की चुस्कियों के साथ अनौपचारिक बातचीत और फिर 5 बजते-बजते विचार गोष्ठी की विधिवत शुरुआत। कार्यक्रम के संचालक पशुपति शर्मा ने badalav.com के बारे में बताया और फिर सुधा ने उदय प्रकाश की कविता – सब ठाठ धरा रह जाएगा- का पाठ किया।
आधार वक्तव्य विश्वदीपक ने रखा, जिन्होंने हाल ही में जी न्यूज से इस्तीफ़ा दिया है। उन्होंने जेएनयू प्रकरण के साथ मीडिया के अंदरुनी हालात और उसमें एक व्यक्ति के अंतर्मन के संघर्ष की बातें की। उन्होंने बताया कि आखिर क्यों धीरे-धीरे उनके लिए नौकरी कर पाना मुश्किल होता गया। जेएनयू आतंकवाद का अड्डा और कन्हैया कैसे देशद्रोही हो गया? ये सवाल उन्हें बार-बार परेशान करता रहा। जिस चैनल में वो कोई बदलाव ला सकने में सक्षम नहीं थे, उससे तौबा कर लेना ही उन्हें उचित जान पड़ा।
रिटार्यड जज सीबी सिंह ने मौजूदा हालात और परिस्थितियों पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि ये सब कुछ अचानक नहीं हो रहा बल्कि सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। विचार थोपने की प्रवृत्ति को लेकर भी उन्होंने सवाल उठाए। कहा, जब युवाओं का दबाया जाएगा तो ‘विद्रोह’ के हालात भी बनेंगे। प्रधानमंत्री के तमाम मुद्दों पर मौन रह जाने को भी उन्होंने एक ख़तरनाक पैंतरा करार दिया। विश्वदीपक के इस्तीफे की सराहना की।
अहा ज़िंदगी के संपादक आलोक श्रीवास्तव ने जेएनयू प्रकरण में जिस तरीके से सरकारी एजेंसियों ने काम किया, उसको लेकर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व की अवधारणा को पूरे देश में लागू करने की जल्दबाजी और उतावलापन साफ नजर आ रहा है। देश में अस्थिरता का एक माहौल बनाया जा रहा है, और मुसीबत ये कि मीडिया इस पूरी प्रक्रिया का सहभागी बन गया है। राष्ट्रवाद को लेकर दक्षिण पंथियों और वामपंथियों की अवधारणा को भी उन्होंने सबके साथ साझा किया।
स्वतंत्र पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले 15-20 दिनों में ज़िंदगी जिस तरह से बदली है, उस पर सोचा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज में एक किस्म का डर का भाव पैदा हुआ है। पहला डर- समाज से डेमोक्रेटिक स्पेस का अचानक से कम हो जाना है। दूसरा डर- देश को एक ‘खिचड़ी’ मनोभाव में लॉक करने की कोशिश। उनका तीसरा डर- एक व्यक्ति की निजता और आज़ादी पर हो रहा हमला।
अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा कि अतिवादियों को खुद को ‘डायलयूट’ करना पड़ रहा है और मजबूरी का ये बदलाव परेशान करने वाला है। मीडिया में फैलाए जा रहे ‘सच-झूठ’ से अपनी शिकायत भी उन्होंने दर्ज कराई। उन्होंने कहा कि झूठ के दौर में जो सफेद दिखे या दिखने की कोशिश करे, उस पर शक कीजिए। मौजूदा हालात में वामपंथ की बात तो छोड़ दें, पूंजीवाद की मूल प्रवृत्तियों पर ही हमला हुआ है। पूंजीवाद जिस आधुनिकता और निजी आज़ादी का पैरोकार है, सरकार उसी पर अटैक करने में लग गई है। पाले खींचना और लोगों को पाले में धकेलना, एक आम प्रवृत्ति बन गई है, जबकि देश की 70-80 करोड़ आबादी बिना किसी पाले में गए, अपनी बात रखना चाहती है।
जस्टिस इरशाद हुसैन ने कहा कि मीडिया के लोग बहुत ज्यादा प्रोफेशनल हो गए हैं। वो पावर और पैसे के पीछे जा खड़े हुए हैं। तथ्यों के साथ हेराफेरी होती है और उस पर सवाल नहीं उठते, ये चिंता की बात है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ये एक अजीब प्रवृति है कि एक तरफ कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट का कहा जस का तस लागू करवाने पर आमादा हैं, लेकिन वो खुद सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आते। इस बात का जिक्र उन्होंने अदालत में कन्हैया कुमार पर हुए हमले के परिप्रेक्ष्य में कही। उन्होंने पत्रकारों से ‘मीडिया धर्म’ निभाने की अपील की।
ब्लूमबर्ग टीवी के पत्रकार आशुतोष ने मौजूदा सरकार के दोहरे चेहरे को बेनकाब करती रिपोर्टों का हवाला दिया। उन्होंने एक विदेशी अखबार के हवाले से बताया कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी के आर्थिक एजेंडे कहीं पीछे छूट गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी की मजबूरी है कि वो सेलेक्टिव हस्तक्षेप करें। बिहार के चुनावों की हार के बाद राष्ट्रवादी उन्माद का नया हथकंडा आजमाया जा रहा है।
और अंत में, वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रकाश ने गहरा चुके अंधेरे (शाम के धुंधलके) के बीच कुछ रौशन कर देने वाले विचार रखे। उन्होंने कहा कि वो किसी राजनीतिक दल की खेमेबंदी में नहीं है, लेकिन जेएनयू से उनका और उनके परिवार का लंबा नाता रहा है। इसलिए वो दावे से जेएनयू की प्रवृत्ति के बारे में बात कर सकते हैं। जेएनयू कभी देशद्रोहियों का अड्डा हो ही नहीं सकता। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थाओं में अतिवादी विचारधाराओं को समूल खत्म नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि वैचारिक उद्वेलन से जो ऊर्जा मिलती है, वो देश हित में है।
उदय प्रकाश ने रोहित वेमुला से लेकर कन्हैया तक और कलबुर्गी की हत्या से लेकर पानसरे पर हमले का जिक्र करते हुए कहा कि वाकई कभी-कभी डर लगने लगता है। उदय प्रकाश ने कहा कि वो गांधी के विचार को पूरी तरह मानते हुए हर तरह की हिंसा का विरोध करते हैं। मानव कोई रोबोट नहीं कि उनके विचार न बदलें। इसलिए व्यक्ति के हृदय परिवर्तन और विचार परिवर्तन की थ्योरी को पूरी तरह नकारा जाना एक मूर्खता ही है। उन्होंने कहा कि बेईमान के करोड़ों के प्रचार के सामने एक ईमानदार आदमी का सच भारी रहता है। ब्रेख्त के हवाले से उन्होंने कहा कि रेडियो और टेलीविजन के आने के बाद व्यक्ति का अस्तित्व ‘आंख और कान’ में सिमट गया है। माइंड मेनुपुलेशन के इस खेल को समझना जरूरी है। खुद को ‘पीड़ा का गायक’ बताते हुए उन्होंने मौजूदा दौर में अपने मन की तकलीफ़ों को युवाओं के सामने रखा।
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Sushila Puri -‘बदलाव’ को इस तरह की मन की बात समूचे देश के हर राज्य के हर जिले के हर शहर-गाँव के कालोनी-मुहल्लों में करनी चाहिए। इस तरह की विचार गोष्ठियों की आज सबसे अधिक जरुरत है।