नवनीत सिकेरा
इस फोटो को मैं कई सालों से इंटरनेट पर देख रहा हूँ, पुलिस को लेकर लोग बुरा भला कहते हैं, फिटनेस को लेकर मोटा, गैंडा, ठुल्ला कहते हैं और करप्शन को लेकर जमकर गालियाँ देते हैं। खैर, मैंने सोचा आप सबको तस्वीर के दूसरे पहलू से परिचय कराऊँ । पुलिसवाला प्रतिदिन कम से कम 12 घण्टे की ड्यूटी करता है। न कोई रविवार, न कोई छुट्टी। जिस दिन राष्ट्रीय छुट्टी होती है उस दिन वह सुबह 4 बजे जगकर अपनी वर्दी दुरुस्त करता है। जूता, बेल्ट चमकाता है और जनता के सामने एक आदर्श बनने की कोशिश करता है। भाई साहब! कभी इनकी यूनिफार्म उतरवा कर देख लेना, 10 में से 4 की बनियान फटी हुई होगी, मोज़े फटे हुए होंगे।
किसी भी सरकारी विभाग में
रविवार: 52
द्वितीय शनिवार: 12
सरकारी छुट्टियां: 36
कुल मिलाकर एक साल में 100 छुट्टियाँ मिलती हैं।
भाई साहब! पुलिस वाला भी एक सरकारी कर्मचारी ही है। सैलरी भी किसी भी सरकारी कर्मचारी जितनी ही मिलती है। फिर इन 100 दिनों में से एक भी दिन सिपाही को क्यों नहीं मिलता? विभिन्न श्रम एक्ट और फैक्ट्रीज एक्ट 1948 के अनुसार किसी भी व्यक्ति से पूरे सप्ताह में 48 घण्टे से ज्यादा काम नहीं कराया जा सकता और एक दिन में अधिकतम 9 घण्टे। एक पुलिसवाला प्रतिदिन कम से कम 12 घण्टे की ड्यूटी करता है और सप्ताह में 84 घण्टे। दिहाड़ी मजदूरों से भी बदतर हालत है इनकी। अगर कोई दंगा फसाद हो जाये तो ड्यूटी कब ख़त्म होगी कोई पता नहीं। इनके भी बच्चे होते हैं। माँ होती है, पत्नी, परिवार सब होता है। आप जरा सोचिये कि एक सिपाही को अपनी बेटी की फीस भरनी है और उसकी दिन की ड्यूटी है, कब भरेगा? पूरी जिंदगी निकल जाती है, कोई भी त्यौहार घर पर नहीं मना पाते। अगर ये सड़क पर न खड़ें हों तो कोई भी त्यौहार बिना फसाद पूरा नहीं होगा।
IG नवनीत सिकेरा की 27 जनवरी को रात 12 बजे फेसबुक पर एक टिप्पणी
दारोगा कप्तान से:
सर, जरूरी काम है एक दिन की छुट्टी चाहिएकप्तान: छुट्टी चाहिए तो मेरे एक सवाल का जवाब देना होगा
दारोगा: सर पूछिए
कप्तान: बताओ बाहुबली को कटप्पा ने क्यूँ मारा ?
दारोगा: सर मेरे विचार से कटप्पा के मांगने पर बाहुबली ने छुट्टी नहीं दी होगी…
आज वो दारोगा एक हफ्ते की सीएल पर मौज कर रहा है…
पूरी जिंदगी निकल जाती है ये ख्वाहिश लिए कि कभी टीचर-पेरेंट्स की मीटिंग में जा सकें। पूरे देश में जाकर देखिये, 24 प्रतिशत से भी कम पुलिसवालों को सरकारी आवास मिला होता है और ये आवास सिर्फ एक कमरे का होता है। एक बार सोच के देखिये कैसे रहते होंगे अपने माता-पिता बच्चों को साथ लेकर। घरों की हालत इतनी ख़राब कि पता नहीं कब छत गिर जाये। न साफ़ पानी की व्यवस्था, न शौचालय की। जो बैरक में रहते हैं उनकी स्थिति और ज़्यादा ख़राब। पुलिस लाइन में सुबह 4 बजे से शौचालय के बाहर लाइन लगती है कि टाइम से फारिग हो जाएँ। शेविंग भी करना है, लाइन में लगकर नहाना भी है और फिर लाइन में लगकर मेस में खाना भी खाना है क्योंकि ड्यूटी सुबह 8 बजे शुरू हो जाएगी। वहाँ अगर 5 मिनट भी लेट हो गए तो गैरहाजिरी लिखी जाएगी।
पूरे दिन जनता की उपेक्षा, अधिकारियों और पावरफुल लोगों की डाँट, बात-बात पर वर्दी उतरवाने की धमकी के तनाव बाद जब रात में 9 बजे पुलिसकर्मी बैरक पहुँचता है तो उसके जेहन में सिर्फ एक बात होती है कि सुबह चार बजे फिर से जागना है और टॉयलेट की लाइन में लगना है। भाई साहब! मैंने इनकी ज़िंदगी को बहुत करीब से देखा है। 45 साल से ऊपर शायद ही कोई पुलिसवाला स्वस्थ होगा। चालीस पार करते करते कई बीमारियां इनको घेर लेती हैं। लेकिन बच्चों को पालना है, मजबूरी है जिंदगी है तो काटनी है, कट ही जाएगी, शायद इसी को ज़िंदगी कहते हैं।
नवनीत सिकेरा, IG, उत्तरप्रदेश वूमन पावर लाइन, लखनऊ। 1993 में रुड़की से IIT और 2011 में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस से शिक्षा।