सुमित शर्मा
बीफ…बीफ…बीफ… ये शब्द जब पहली बार मेरे कानों में पड़े तो समझ नहीं आया आखिर ये किस ‘परिंदे’ का नाम है और अचानक इस पर इतनी बहस क्यों छिड़ गई है? साहित्यिक परिवेश में पले-बढ़े मुझ जैसों के लिए ये अबूझ पहेली सा लगने लगा लेकिन बिहार चुनाव नतीजों के साथ बीफ के रफूचक्कर होते ही माजरा समझ आ गया। ये सिर्फ एक सियासी चिड़िया का नाम है और कुछ नहीं। फिर भी जेहन में कुछ सवाल लगातार उमड़ते-घुमड़ते रहे। बचपन से पढ़ता रहा हूं गाय हमारी माता है। इसको मां का दर्जा तो यूं ही नहीं दिया गया होगा। कुछ तो बात रही होगी। क्या हम इंसानों की तरह गऊ माता भी मजहबी हो गई हैं। या फिर राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर चुका है कि सियासी हित साधने के लिए कुछ लोग ‘मां’ तक को हथियार बनाकर ‘रणभूमि’ में इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। फिर भी गऊ मां मौन है, क्योंकि वो सियासत नहीं सेवा चाहती है और ये काम सिर्फ लाडला बेटा ही कर सकता है, जैसा राजस्थान के बीकानेर के रहने वाले बिरजू महाराज कर रहे हैं।
बिरजू महाराज रहते तो शहर में है लेकिन वो रोजना सुबह घर से कोसों दूर बने गोचर में जाते हैं। दिन भर निस्वार्थ सेवा भाव से गऊ मां की देख-रेख करते हैं, चारा खिलाते हैं, और शाम तक घर लौटेते हैं तो चेहरे पर सेवा भाव सी मुस्कान लिए सो जाते हैं। बिरजू महाराज पिछले 30 बरस से अनवरत इस काम में लगे हैं मानो गायों की सेवा और उसके हक की लड़ाई ही उनके जीवन का मकसद बन गई हो ।
बिरजू महाराज की उम्र बेशक 60 बरस हो चुकी हो लेकिन बीकानेर में 60 किलोमीटर के दायरे में फैले इस गोचर में विचरण करने में उन्हें कोई थकान नहीं होती। डर जरूर लगता है और वो भी जानवरों से नहीं बल्कि अपने जैसे उन इंसानों से जो हर पल गायों के इस चारागाह पर अपनी नज़र गड़ाए बैठे हैं। तीन दशक के अपने संघर्ष की दास्तां बयां करते हुए बिरजू महाराज की आंखे चमक पड़ती हैं लेकिन जैसे धर्म के ठेकेदारों और भू-माफियायों का जिक्र आता है वो बेचैन हो उठते हैं और कहते है ‘कई लोग इस गोचर की सरकारी जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं, विरोध करने पर बंदूक तक निकालकर डराने-धमकाने में भी देर नहीं करते लेकिन जब इस बात की शिकायत जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से की जाती है तो वो भी मौन धारण कर लेते हैं’।
बिरजू महाराज के नेक इरादों की वजह से अब तक दबंगों के मंसूबे कामयाब नहीं हो पाये तो इसकी सबसे बड़ी वजह खुद बिरजू महाराज ही हैं, जिनके निस्वार्थ सेवा भाव को देख इलाके के लोग हर लड़ाई में उनके साथ खड़े रहते हैं। गांव के कुछ लोग बिरजू महाराज को गोपाल कहकर पुकारते हैं तो कुछ लोग गोभक्त। कुछ लोग तो हंसी-ठिठोली करते हुए ये भी पूछ बैठते हैं कि महाराज पूरी जिंदगी क्या यूं ही जंगल में बिता डालोगे। बहरहाल, बिरजू महाराज इन सब सवालों पर थोड़ा मुस्कुराते हैं और फिर अपने काम में जुट जाते हैं। बिरजू महाराज को अगर फिक्र है तो बस इस बात की कि शहरीकरण के इस दौर में जंगलों की कटाई की तरह कहीं बचे-खुचे चारागाहों पर भी बुरी नज़र न लग जाए।
बीकानेर के निवासी सुमित शर्मा ने पत्रकारिता के मोहजाल में फंसकर दिल्ली तक का सफ़र तय किया। बीकानेर के बाशिंदे सुमित इन दिनों दिल्ली में इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े हैं। आपसे 09999112397 पर संपर्क किया जा सकता है।
Nice sumit… weldone
Thanks Anish bhaiya