पीटते हैं, डराते हैं, तहस-नहस कर जाते हैं… वो कौन हैं?

शिरीष खरे

shirish 9 march-1“6 मार्च, रविवार सुबह साढ़े 11 बजे जिस समय हम प्रार्थना कर रहे थे, करीब दो दर्जन लोगों ने चर्च में घुसकर तोड़-फोड़ कर दी। हर रविवार यहां हमारे (ईसाई) समाज के लोग प्रार्थना करने आते हैं, उस दिन भी कोई 60 लोग चर्च में जमा थे कि भगवा कपड़ों में आए लोगों ने धावा बोल दिया। चर्च में घुसते ही उन्होंने धर्म परिवर्तन का आरोप लगाते हुए वहां रखे वाद्य यंत्र, कुर्सी टेबल और पंखों को तोड़ दिया। जब चर्च में मौजूद लोगों ने उनका विरोध किया तो उन्होंने हमारे साथ मारपीट की। पुलिस को सूचना दी तो वे यहां तीन मोटरसाइकिल छोड़कर भाग निकले।” घटना का विवरण देते हुए पास्टर कामले ने आरोप लगाया कि हमलावरों ने महिलाओं के साथ बच्चों को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने बताया कि असामाजिक तत्वों के दस मिनिट तक उत्पात मचाने से आस-पास दहशत फैल गई।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कचना स्थित ईसाई समुदाय के धार्मिक स्थल पर कथित हिंदूवादी संगठन के हमले की घटना में पुलिस ने फादर अंकुश पारीमेकर की शिकायत पर अज्ञात आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। युवकों ने जिस चर्च पर हमला किया था वह विधानसभा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आता है। मिली जानकारी के मुताबिक जिस स्थान पर चर्च बना है, उस जमीन पर पुराना विवाद है। आईजी जीपी सिंह ने बताया कि जमीन पर अतिक्रमण की शिकायतें हैं। इसे लेकर एक-दो बार पहले भी विवाद हो चुका है।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव ने आरोपियों का बचाव करते हुए कहा कि सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर निर्माण किया गया है, जिसकी शिकायत गांव वाले कई दिनों से कर रहे थे। वहीं मसीही समाज का कहना है कि जमीन पर विवाद नहीं है और न ही ग्रामीणों ने इसे लेकर कोई आपत्ति की है। केवल बाहर के कुछ लोगों ने उत्पात मचाया। क्रिश्चियन फोरम ने धर्म के नाम पर गुंडागर्दी करने का आरोप लगाया है। फोरम का कहना है कि यदि यह सरकारी जमीन थी तो प्रशासन को पहले नोटिस देना था और कानूनी कार्यवाही करनी थी। युवकों को क्या अधिकार है कि वह धार्मिक स्थल पर हमला और मारपीट करें? मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने चर्च में हुई तोडफ़ोड़ और मारपीट की घटना को गंभीरता से लिया है। उन्होंने इस वारदात की तीव्र निन्दा करते हुए अल्पसंख्यक समुदाय से कहा कि उन्हें डरने की जरुरत नहीं है।

shirish 9 march-2छत्तीसगढ़ में ईसाई संगठनों की सक्रियता और गाहेबगाहे उन पर हमलों की घटनाएं यूं तो नई नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ महीनों में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति बढ़ी है। इसके चलते ईसाई समुदाय के लोगों में डर है और वे कभी खुलकर तो कभी दबी जुबान में इसके लिए राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ को जिम्मेदार मान रहे हैं। जून, 2015 में राजधानी रायपुर में ही एक नन के साथ कथित अनाचार का मामला सामने आ चुका है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने ईसाई संस्थाओं और उनके समर्थन में उतरने वाले संगठनों पर बड़ा आरोप लगाया था। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने 15 नवंबर, 2015 को रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में पूछा था कि ईसाई संस्थाओं या फिर ईसाईयों पर माओवादी हमले क्यों नहीं होते? क्या ऐसा इसलिए है कि वे (ईसाई) उनकी (माओवादियों) सेवा करते हैं या कोई दूसरी वजह है?

13  मार्च, 2013 को बस्तर जिले के लोहड़ीगुड़ा ब्लॉक के ग्राम गाड़ियों में कथित हिंदूवादी संगठन द्वारा बुलडोजर से चर्च तोड़े जाने की घटना सुर्खियों में रही थी। इस चर्च को तोड़े जाने के पीछे भी अवैध तरीके से इसका निर्माण बताया गया था। इसी साल 2 अप्रैल को कोंडागांव जिले के छोटे सलना गांव में भी एक प्रार्थनाघर को आग लगाकर फूंक देने की घटना हुई थी। तब भी घटना के लिए विहिप से जुड़े लक्ष्मण मरकाम और रूपसिंह बघेल पर आरोप लगे थे, लेकिन संगठन के प्रांतीय महामंत्री वीरेंद्र श्रीवास्तव ने उन लोगों को विहिप का सदस्य या पदाधिकारी मानने से इनकार कर दिया था।

इसी तरह, बस्तर में चर्च तोड़े जाने की एक घटना कोड़ेनार इलाके के ग्राम मड़वा में 20 नवंबर, 2007 को भी हो चुकी है। तब भी कहा गया था कि इसमें विहिप से जुड़े लोग शामिल हैं। मगर पुलिस-प्रशासन इस मामले का भी खुलासा नहीं कर पाया। इसके अलावा बस्तर में ईसाई समुदाय के कब्रिस्तान को क्षतिग्रस्त करने की दो बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। जगदलपुर से 12 किलोमीटर दूर एक ग्राम जाटम में 22 जून, 2012 को जब कब्रिस्तान को क्षतिग्रस्त किया गया था। इसके बाद 9 जनवरी, 2013 को जगदलपुर में ही कब्रिस्तान की चारदीवारी को तोड़ दिया गया।

shirish 9 march-3सितंबर, 2012 को बालोद जिले के भानपुरी गांव में बजरंग दल से जुड़े कार्यकर्ताओं की अगुवाई में दर्जनों युवकों ने सरजूराम, जनकबाई, उभयराम और डेहराराम पर धर्मांतरण करने का आरोप लगाकर मारपीट की थी। पीड़ित पक्षों की मदद करने वाले एक ईसाई धर्मावलंबी साजू चाको के मुताबिक धर्मान्तरण का बहाना लेकर चार परिवारों को महज इसलिए प्रताड़ित किया गया था कि गांव के अन्य लोग उनके प्रभाव में आकर ईसाई धर्म का प्रचार न करें। तीस नवंबर, 2012 को महासमुंद के मचेवा स्थित साईं वाटिका कॉलोनी में धर्मांतरण करने और धार्मिक ग्रंथ रखने के आरोप में एक पास्टर बुधराम के साथ हिंदूवादी संगठन धर्मसेना के सदस्यों ने मारपीट की थी।

यदि कोई धार्मिक भावनाओं और विश्वास को आहत करके अपना मकसद सिद्ध करता है तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295 (क) का इस्तेमाल किया जाता है। मगर प्रदेश में धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम का दुरुपयोग हो रहा है। धर्मांतरण के मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम का भी उपयोग करती है। इस नियम की धारा 3 व 4 में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति बल या प्रलोभन के जरिए किसी कपटपूर्ण साधन से किसी दूसरे व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म को अंगीकार करने के लिए बाध्य करेगा, तब धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम लागू होगा। इसकी सजा एक साल जेल या पांच हजार रुपये के जुर्माने के तौर पर होगी, लेकिन जब यह अपराध किसी स्त्री, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के संबंध में होगा तो सजा की अवधि दो साल और जुर्माना दस हजार रुपये होगा।

ईसाई संस्थाओं और ईसाइयों पर हो रहे लगातार हमलों से इन आरोपों को बल मिल रहा है कि उन्हें बार-बार निशाना बनाया जाना, एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।

(साभार- राजस्थान पत्रिका, रायपुर)


shirish khareशिरीष खरे। स्वभाव में सामाजिक बदलाव की चेतना लिए शिरीष लंबे समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दैनिक भास्कर और तहलका जैसे बैनरों के तले कई शानदार रिपोर्ट के लिए आपको सम्मानित भी किया जा चुका है। संप्रति राजस्थान पत्रिका के लिए रायपुर से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।


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