पांच सदी पहले का एक रोमांचक सफर

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संगम पांडेय

वास्को डि गामा 1497 में चार जहाजों और 170 नाविकों के साथ भारत के रास्ते की खोज में निकला था। इन नाविकों में कोई एक था, जो इस यात्रा के रोज-ब-रोज के विवरणों को अपनी डायरी में दर्ज किया करता था। इस रोजनामचे के बारे में मैंने पढ़ा था, पर नहीं पता था कि यह हिंदी में उपलब्ध है। पिछले दिनों यह किताब मुझे मेरे पिता से हासिल हुई, जिसका अनुवाद उनके मित्र और स्पेनी भाषा के विशेषज्ञ प्रभाती नौटियाल ने (पता नहीं स्पेनी से या पुर्तगाली से?) 16 साल पहले ही कर दिया था। 

रास्ते का पता नहीं था और जहाजों की गति भी समुद्री हवाओं पर निर्भर थी। अफ्रीका और एशिया के तटों पर जहाँ भी रुकते, वहाँ का आशंकित मुखिया विनम्रता के भेष में कोई साजिश कर रहा होता, लेकिन आखिर वे लोग जिस चीज से भाग खड़े होते थे वो थीं इनकी तोपें और बंदूकें। एहतियातन लंगर तट से थोड़ा दूर ही डाला जाता और जहाज के लोग अगर किसी राजा के बुलावे पर जाते भी तो उधर के किसी आदमी को पहले जहाज पर बंदी बना लिया जाता। वास्को डि गामा का दल 316 दिन की यात्रा के बाद भारत के कालीकट पहुँचा था, और 70 दिन रहा था। रोजनामचाकार ने कालीकट के राजा और अन्य हिंदुओं को बार-बार ईसाई लिखा है। उसे धारणा ही नहीं थी कि मुसलमानों और ईसाइय़ों के अलावा भी धरती पर और कोई जाति रहती होगी। इसी गलतफहमी में मंदिरों को चर्च समझ लिया गया। एक मंदिर का वर्णन कुछ यूं है—‘चर्च की दीवारों पर अनेक संतों के चित्र बने थे, जिन्होंने मुकुट पहन रखे थे। उन्हें विविधतापूर्वक चित्रित किया गया था। उनके दाँत मुँह से एक इंच बाहर की ओर निकले हुए थे और हरेक संत की चार या पाँच भुजाएँ थीं।’

कालीकट अथवा ‘कोलिकोड’ केरल राज्य का एक नगर और पत्तन है। यह चेन्नई से 414 मील पश्चिमी अरब सागर के किनारे निम्न समतल मैदान में अस्वास्थ्यप्रद जलवायु के भाग में ‘कल्लायी नदी’ पर स्थित है। 13वीं सदी में अरब लेखकों ने पश्चिमी तट के प्रमुख बंदरगाह के रूप में इसका उल्लेख किया है। 15वीं शताब्दी में यह मालाबार तट  का प्रमुख नगर था। पहले कालीकट के बने सूती कपड़े की बड़ी डिमांड थी । 1883 ई. में यहाँ एक ‘वाष्पचालित पुतलीघर’ की स्थापना हुई थी। यहाँ गृह उद्योग के रूप में बेंत और बांस का सामान, मूर्ति कला, लकड़ी पर नक़्क़ाशी, दियासलाी और साबुन रँगाई समेत तमाम मुख्य उद्योग हैं । यहाँ से कॉफ़ी और मसाले का निर्यात होता है ।

किशोर उम्र में पढ़ी ‘रॉबिन्सन क्रूसो’ और ‘ट्रेजर आइसलैंड’ जैसी किताबें उस वक्त जैसा माहौल बुनती थीं इतने बरसों बाद इस किताब को पढ़ते हुए काफी कुछ वैसा ही था। कालीकट में हर रोज दोनों पक्षों की ओर से चले जा रहे दाँव-पेंचों, रास्तों, लोगों और पूरे माहौल का जिक्र पढ़ने लायक है।… इस अधूरे रोजनामचे के लेखक का पता कभी नहीं लग पाया। संभवतः वापसी के दौरान केप ऑफ गुड होप के पास तूफान में मारे गए बहुत से नाविकों में उसकी भी मौत हो गई थी।

कालीकट के मुस्लिम व्यापारी पुर्तगालियों के खिलाफ थे और राजा उनके दबाव में था। वास्को के साथ अच्छा बर्ताव नहीं हुआ था जिसका बदला उसने अगली यात्रा में बड़ी क्रूरता से लिया। बाद की पूरी एक सदी तक मालाबार तट पर समुद्री व्यापार पुर्तगालियों के नियंत्रण में रहा, यहाँ तक कि मुगलों ने भी उनपर हाथ नहीं डाला। उन्हें पहली चुनौती अंग्रेजों ने सन 1612 में दी।


sangam profile

 

संगम पांडेय। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। जनसत्ता, एबीपी समेत कई बड़े संस्थानों में पत्रकारीय और संपादकीय भूमिकाओं का निर्वहन किया। कई पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। आपका नाट्य प्रस्तुतियों की समीक्षा में विशेष दखल है।