सत्येंद्र कुमार यादव
फसल बीमा योजना, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, मुद्रा बैंक, कामधेनु योजना, समाजवादी पेंशन योजना जैसी तमाम योजनाएं केंद्र और राज्य सरकारें चला रही हैं। ग्रामीण इलाकों में इसकी जानकारी कम ही लोगों के पास पहुंच पा रही है। अखबारों, टीवी और रेडियो पर विज्ञापन में इनकी बात हो रही है लेकिन धरातल पर लोगों से काफी दूर है । फसल का बीमा कैसे कराएं? कौन करेगा? मानक क्या हैं ? स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, मुद्रा बैंक का इस्तेमाल कैसे होगा ? किसानों, मजदूरों को इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए क्या-क्या करना होगा ? बैंक पैसे ना दें तो किसके पास जाएं ? जैसे तमाम सवाल हैं जिसकी जानकारी ग्रामीणों तक नहीं पहुंची है। इन्हीं सभी बिंदुओं के लोकर टीम बदलाव ने देवरिया जिले के निपनिया ठेंगवल दुबे के सुराती देवी इंटर कॉलेज में चौपाल लगाई। यह जानने की कोशिश की गई कि सरकारी योजनाओं तक उनकी पहुंच कितनी है ? क्या वे किसी योजना का लाभ ले रहे हैं? ये जानकर काफी हैरानी हुई कि फसल बीमा योजना के बारे में लोग सुने तो हैं लेकिन विस्तृत जानकारी किसी के पास नहीं है। सबका सवाल था कि कैसे होगा ? गेहूं की फसल जल जाने के बाद किसान फसल बीमा कराना चाहते हैं। बैंक से उन्हें कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पा रही है।
देवरिया में बदलाव की चौपाल
पूर्व प्रधान राम प्रकाश मुन्ना अधिकारियों के रवैये से काफी नाराज दिखे। बदलाव की चौपाल में उन्होंने अपनी पीड़ा रखी। कहा- “चाहे कोई भी सरकार हो, जनता के हित के लिए कोई भी योजना चलाए लेकिन हम तक मूल जानकारी नहीं पहुंचती। इन सबके जिम्मेदार अधिकारी हैं। सीएम अखिलेश की ‘कामधेनु ‘योजना को अधिकारी फ्लाप कर रहे हैं। पीएम मोदी की ‘मुद्रा योजना’ और ‘फसल बीमा योजना’ की जानकारी मांगने पर नहीं मिलती। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा नीति का कोई ठिकाना नहीं।अधिकारी किसी गरीब की सुनने को तैयार नहीं हैं। बैंक के मैनेजर्स लोन मांगने पर भगा देते हैं। कोई भी बैंक लोन देने के लिए तैयार नहीं है। पीएम मोदी योजना तो चला रहे हैं लेकिन उनकी योजना को ना तो उनके नेता बता रहे हैं और ना ही बैंक। किसान जाए तो जाए कहां? “
चौपाल में मौजूद वितविहीन शिक्षक संघ जिला कमेटी के सदस्य श्रीनारायण यादव, अध्यापक उदयभान, अशोक यादव, एडवोकेट कमलजीत मिश्र और इंटर कॉलेज बरडिहा के प्रबंधक बेनी माधव सिंह ने कई महत्पूर्ण सवाल उठाए। इन लोगों का कहना था कि हम फसल का बीमा कराना चाहते हैं लेकिन कौन कर रहा है इसकी जानकारी नहीं है? ये जानकारी ना तो कोई बैंक दे रहा है और ना ही बीजेपी से जुड़े जिले के बड़े नेता इसके बारे में ज्यादा जानकारी रखते हैं। ग्रामीण शिक्षा को लेकर भी सवाल उठाए गए । चौपाल में मौजूद शिक्षकों ने अपना दर्द बयां किया। बेनी माधव सिंह ने शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि “निजी स्कूलों में शिक्षकों का काम सिर्फ बच्चों को पढ़ाना होता है। इसके अलावा और कोई काम नहीं करते। लेकिन सरकारी स्कूल के टीचर्स को बाबूगीरी में लगा दिया जाता है। बच्चों को पढ़ाने के अलावा सब काम कराया जाता है। कभी जनगणना तो कभी जातिगणना, चुनाव कराने से लेकर पोलियो ड्रॉप पिलाने तक सरकारी शिक्षकों का इस्तेमाल किया जाता है। थोड़ा वक्त बचता है तो मिड-डे-मिल के हिसाब-किताब में उलझा दिया जाता है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती। जितना ध्यान देना चाहिए उतना नहीं दे पाते हैं। जितना जल्द हो सके सरकार इसे ठीक करे।”
किसान हर मोर्चे पर जूझ रहा है। बैंक से लेकर ब्लॉक तक उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। बैंकों की उपेक्षा की वजह से ही लोग साहूकारों से कर्ज लेते हैं और भारी ब्याज के कारण कर्ज चुकाते-चुकाते उनकी जिंदगी बीत जाती है। चौपाल में लोगों ने सबसे ज्यादा बैंकों की शिकायत की। बैंकों की बेरहमी से सबसे ज्यादा किसानों का नुकसान होता है। लोगों ने कहा कि हम विजय माल्या तो नहीं हैं। हम भागते नहीं, जमीन बेच कर पैसे लौटा देते हैं, फिर भी बैंकों का अविश्वास हम पर क्यों?
चौपाल में निपनिया ठेंगवल दुबे गांव के पूर्व प्रधान प्रतिनिधि प्रेम चंद्र ने एक प्रधान का दर्द बयां किया। उन्होंने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि “सरकार जनता से कुछ और कहती है और जब उसे पूरा करने की हम मांग करते हैं तो सुनवाई नहीं करती। ऐसे में गांव की जनता प्रधान को चोर कहने लगती है। लोगों को लगता है कि सरकार ने पैसे दिए और हम खर्च नहीं किए। समाजवादी पेंशन योजना में 2 लाख 59 हजार आवेदन आए। लक्ष्य 71 हजार का दिया गया था। समग्र ग्राम विकास योजना के तहत 331 गांवो को चिन्हित किया गया था लेकिन सिर्फ 124 लोगों को आवास दिया गया। सरकार खुद सर्वे करती है, पात्र लोगों को चिन्हित करती है लेकिन लाभ कुछ लोगों को ही देती है। नतीजा गांव के लोग समझते हैं कि प्रधान ने नहीं दिया। कौशल विकास योजना के तहत 200 लोगों को प्रशिक्षित किया गया लेकिन अभी तक सिर्फ 14 नौजवानों को रोजगार दिलाने का आश्वासन दिया गया है। गांव के विकास के लिए सरकारें बजट नहीं दे रही हैं। सिर्फ विज्ञापन में बड़ी-बड़ी बात कर रही है। विज्ञापन पर खर्च करने के लिए पैसे हैं लेकिन किसान, मजदूर और गरीबों की मदद के लिए नहीं है। खुद को बेहतर बताने पर पैसा खर्च किया जा रहा है, गांव के विकास के लिए नहीं। कोई एक कोना पकड़ो सरकार और वहीं से शुरू करो विकास की यात्रा। चारों ओर से फसलों की कटाई नहीं होती। कोई एक कोना पकड़ना पड़ता है।”
बदलाव की चौपाल में जितने भी लोग आए थे सभी का यही कहना था कि सरकार ब्लॉक लेवल पर ऐसे लोगों को बैठाए जो योजनाओं की जानकारी ठीक से दें और बैंक किसानों को परेशान ने करे।
सत्येंद्र कुमार यादव, एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर सक्रियता । आपसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है ।
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