पीएम मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने 400 स्टेशनों के कायाकल्प की योजना को हरी झंडी दे दी है। ये जिम्मा निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है। इस लिस्ट में महानगरों, बड़े शहरों, तीर्थस्थलों और बड़े पर्यटन केंद्रों को शुमार किया गया है। दिल्ली से दूर कई रेलवे स्टेशन ऐसे हैं, जिनको ‘बदलाव’ की इस लिस्ट में कब जगह मिले कौन जाने। ऐसे ही एक स्टेशन बिरौल का आंखों देखा हाल बयां कर रहे हैं बिपिन कुमार दास।
दरभंगा से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है बिरौल रेलवे स्टेशन। जब ये स्टेशन बना तो इलाके के दर्जनों गांवों के हज़ारों लोगों की ख़ुशी का ठिकाना न था। एक उत्सव का माहौल था।
सालों की विनती आरजू के बाद तब के रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने रेलवे बजट में सकरी हसनपुर रेलवे लाइन को मंजूरी दी थी। इंतज़ार इतना लंबा खिंचा कि उत्सव का उत्साह मसुआ गया।
सालों बाद जब रामबिलास पासवान ने रेल मंत्रालय का जिम्मा संभाला तो बिरौली स्टेशन के भी दिन बहुरे। रामबिलास पासवान के रेल मंत्री रहते बिरौल स्टेशन का शिलान्यास हुआ। रिले बैटन लालू प्रसाद यादव ने थामा और आखिरकार 2008 की ठंड में स्टेशन का उद्घाटन हुआ, तो माहौल में थोड़ी गर्मजोशी आ गई।
कथा बिरौल की बेचारगी की
हसनपुर तक रेलवे लाइन का काम तो आज भी पूरा नहीं हो सका है। बस गनीमत इतनी है कि इकलौती ट्रेन के फेरों से बिरौल से दरभंगा तक पटरियों की टेस्टिंग हर दिन हो जाया करती है। शुरू में एक ट्रेन सुबह शाम दरभंगा से बिरौल चला करती थी। फिलहाल इस ट्रेन के फेरे को बढ़ा कर तीन कर दिया गया है- सुबह, दोपहर और शाम।
दरभंगा का ये स्टेशन बिरौल कोशी से जुड़ाव का जरिया भी बन सकता है। हज़ारों लोग इन पटरियों पर ज़िंदगी की रफ़्तार के लिए ट्रेनों की बाट ही जोह रहे हैं। दरभंगा और कोसी में पारिवारिक रिश्तों ही नहीं बल्कि रोजी-रोटी के लिए भी लोगों का आना-जाना लगा रहता है।
अरबों रुपये की लागत के बाद दरभंगा से बिरौल तक पटरियां बिछीं, स्टेशन बना, लेकिन जो मकसद था, वो अब तक पूरा नहीं हो सका। एक लोकल ट्रेन के तीन फेरों के अलावा आज तक कोई नई ट्रेन बिरौल के नसीब नहीं आई। ऐसे में धीरे-धीरे स्टेशन की हर सुविधा एक परेशानी में बदल जाए तो अचरज कैसा। यहां न तो मुसाफिरों के लिए पीने के पानी का इंतजाम है और ही शौचालय की व्यवस्था। जो यात्री शेड बनाये गए थे वो भी जर्जर हो चुके हैं।
रेलवे के रजिस्टर में ड्यूटी के नाम पर चार स्टाफ हैं। स्टेशन मास्टर हर दिन ड्यूटी पर आते हैं, लेकिन करने को कुछ खास नहीं। टिकट काउंटर भी ट्रेन आने के वक़्त खुलता है और जाने के बाद बंद हो जाता है। ट्रेन के स्टेशन से सरकते ही टिकट काउंटर पर भी बड़ा सा ताला लग जाता है।
इस बीच दरभंगा के सांसद कृति आजाद की भागमभाग के बाद रेलवे रिजर्वेशन काउंटर की सुविधा भी शुरू हुई। शायद ये बिरौली की बदकिस्मती ही है कि उदघाटन के बाद रिजर्वेशन काउंटर कभी खुला ही नहीं, ना ही एक भी रिज़र्वेशन ही हो सका। जो कम्प्यूटर यहां लगा भी पता नहीं वो चल भी पा रहा है या नहीं… रिजर्वेशन के लिए इंटरनेट के साथ सर्वर से कनेक्शन की बात तो छोड़ ही दीजिए।
बिपिन कुमार दास, पिछले एक दशक से ज्यादा वक्त से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दरभंगा के वासी बिपिन गांव की हर छोटी-बड़ी ख़बर पर नज़र रखते हैं। बिपिन महज पत्रकारिता तक सीमित नहीं है। वो समाज से जुड़े बदलाव की पूरी प्रकिया के गवाह ही नहीं, साझीदार बनने में यकीन रखते हैं। आप उनसे 09431415324 पर संपर्क कर सकते हैं।
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ये मेरे गांव का स्टेशन है…बचपन से सुनता रहा था..रेल आने वाली है..आई तो उम्र 35 पार कर चुकी थी…अभी तक इस इकलौती ट्रेन से सफर करने का मौका नहीं मिल पाया है. दरभंगा तक आने में 3 घंटे लग जाते हैं..जबकि रोड से 90 मिनट…फिर भी इस रपट को देखकर थोड़़ा nostalgic हो रहा हूं..रपट देखकर आप खुद ही तय कर लीजिए बदलाव की रफ्तार क्या है
Thanks Vipin jI
Kindly post ur updated one