5 राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद हर तरफ सियासी महफिल सजी है। चर्चा हार-जीत और उसकी वजहों को लेकर हो रही है। बीजेपी और टीम मोदी के जयकारे लग रहे हैं, कांग्रेस और गांधी परिवार (राहुल और सोनिया) को लोग कोस रहे हैं। ऐसे में सोशल साइट्स पर भी तमाम प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। उन्हीं में से कुछ को हम आपके लिए यहां समेट लाए हैं।
दीदी अम्मा की जीत नारी शक्ति की जीत नहीं- अमिताभ श्रीवास्तव
ममता बनर्जी और जयललिता की जीत को कृपया स्त्रीशक्ति की जीत का ख़िताब देने की भूल न करें। ये भ्रष्टाचार, चापलूसी, ख़ुशामद पसंदगी और तानाशाही पर टिकी व्यक्तिपूजक राजनीति की ही जीत है।
जयललिता वोट ख़रीदने की कला में परंपरा से पारंगत हैं और भ्रष्टाचार के मामले में अव्वल दर्जे की महारथी हैं। तमिलनाडु चुनाव में पैसे के इस्तेमाल के चलते चुनाव आयोग को देश में पहली बार तंजावुर और अरावाकुरिचि में चुनाव reschedule करना पड़ा। लेकिन फिर भी मतदाता अम्माँ अम्माँ कर रहा है तो साफ़ है कि भ्रष्टाचार टीवी पर बहस के लिए तो अच्छा है लेकिन इस मामले में हमारा सार्वजनिक व्यवहार अपने पसंदीदा नेताओं के हिसाब से तय होता है, जिसे हम पसंद करते हैं वो भ्रष्ट हो तो हो, हम उसे जिता ही देते हैं।
ममता ने सर्वहारा के लंपटीकरण की लंबी वामपंथी विरासत पर बड़े कम समय में बहुत सिस्टमेटिक तरीक़े से क़ब्ज़ा कर लिया है और उनका arrogance अब और बढ़ने वाला है। चुनाव जीतने के बाद अपनी पहली प्रेस वार्ता में उन्होंने इसके पर्याप्त संकेत दे दिये। शारदा कांड और भ्रष्टाचार के मुद्दे को साफ़ तौर पर नकार दिया और पुरज़ोर दावा किया कि पश्चिम बंगाल भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश है। आनंद बाज़ार ग्रुप और अवीक सरकार पर इशारों इशारों में निशाना साधा और तीसरे मोर्चे की अगुआई के सवाल पर चतुराई से कहा आगे आगे देखिये क्या होने वाला है।
(अमिताभ श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से)
मर के जिंदा होना जानती है कांग्रेस- त्रिलोकी नाथ उपाध्याय
कांग्रेस फिनीक्स की माफिंद है जो मर मर के जिंदा होती है। ये सही है कि आज कांग्रेस पर राजनीतिक माफिया का कब्जा है। कांग्रेस राज में इन माफियाओं ने इतनी अकूत दौलत कमा ली है कि इसे बचाने के लिए ये अब कांग्रेस को हराने की सुपारी लेने लगे हैं। इसलिए इस बार कांग्रेस को ऐसे कांग्रेसियों को साइड लाइन करना पड़ेगा। लगता है प्रशांत किशोर ने पंजाब और उत्तर प्रदेश में कांग्रेसियों की इस दुखती नब्ज पर हाथ रख दिया है। इससे बौखलाए दलालों ने प्रशांत किशोर को निशाने पर ले लिया है। ऐसी स्थिति पैदा करना चाहते है कि प्रशांत खुद ही तौबा कर दूर हो जाएं। इन कांग्रेसियों का एक सूत्रीय कार्यक्रम राहुल विरोधी अभियान है। कांग्रेस के सलाहकार बने बैठे नेता इन्हें शह दे रहे हैं। अपनी खिसकती कुर्सी को बचाने के लिए। इसलिए इस बार कांग्रेस की राह थोड़ी दुश्वारियों भरी है। जो लोग गांधी परिवार को कांग्रेस से जुदा करने की सलाह दे रहे है या ख्वाब देख रहे हैं। दरअसल, ये भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान के झंडाबरदार जैसे ही हैं।
(त्रिलोकी नाथ उपाध्याय के फेसबुक वॉल से)
अभी तो जीत ही रहा है कांग्रेस का वंशवादी एरोगेंस- पुष्यमित्र
यह सच है कि कांग्रेस हारी नहीं है। उसके नेता जिस बेशर्मी से वंशवाद का नंगा नाच पेश करते हैं और मुल्क के बदले सोनिया-राहुल के चरणों में बिछे रहते हैं। उन हालात में अगर इस पार्टी को इस देश का एक भी मतदाता वोट दे देता है, तो यह इस बेगैरत पार्टी की जीत ही है। इस पार्टी ने हमारे देश में, देश और उसकी जनता और हमारी संवैधानिक मान्यताओं को ठेंगे पर रखते हुए इतने साल तक राज किया है और आज भी जीत ही रही है। यह कैसे उसकी हार है? हम तो आज तक उसे देश और आवाम के पक्ष में खड़े होने के लिए भी विवश नहीं कर पाए। यह पार्टी जितना हारती है उतना ही नेहरू के पोते की जय जैकार करती है। बीजेपी या दूसरी पार्टियाँ उसे हरा नही रही। बस अपदस्थ कर रही है। जब तक इस देश में कांग्रेस का एक भी समर्थक है, यह उसके वंशवादी एरोगेंस की जीत है।
(पुष्यमित्र के फेसबुक वॉल से)
कांग्रेस का ख़त्म होना देश के लिए ख़तरनाक- साज़िद अशरफ
कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी का कमज़ोर होना पार्टी के लिए ही नहीं देश के लिए भी खतरनाक है। कांग्रेस ख़त्म हुई तो देश की एकता भी खतरे में होगी। क्योंकि दूसरी राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी का इतिहास और विचारधारा दोनों न तो इस देश की गंगा जमुनी तहज़ीब से मेल खाती है और न ही देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान से। कांग्रेस ने आज़ादी के बाद किस तरह देश को संभाला ये क्यों नहीं सोचते। ये कांग्रेस की कोशिशों का नतीजा है कि पंजाब से लेकर कश्मीर और पूर्वोत्तर के हिस्से भारत के नक़्शे में मौजूद हैं। मैं कांग्रेस के हर नीति का समर्थन नहीं कर रहा लेकिन कई ऐसे फ़ैसले लिए गए, जिसने देश को और समाज के कमज़ोर तबके को ताकतवर भी बनाया। अब पार्टी को ब्लैक एंड व्हाइट के दौर से बाहर निकलकर नए कलेवर में आना होगा।
(साज़िद अशरफ के फेसबुक वॉल से)