छत्तीसगढ़ में माओवाद की जंग में ‘यौन हिंसा’ का सच क्या है?

शिरीष खरे

naxal shirish-1एक मार्च, 2016 को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामदास टंडन विधानसभा बजट-सत्र के पहले दिन अपने अभिभाषण में माओवादियों से निपटने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की तारीफ कर रहे थे। उनका कहना था कि राज्य माओवादियों के ख़िलाफ़ निर्णायक लड़ाई जीतने की तरफ बढ़ रहा है। माओवादी मोर्चे पर जैसे ही उन्होंने सरकार की उपलब्धियां गिनानी शुरू कीं, तो विपक्षी दल कांग्रेस के विधायक भड़क गए। उन्होंने राज्यपाल से कहा कि सरकार उनसे अभिभाषण के जरिए झूठ बुलवा रही है। कांग्रेस विधायकों के शोर-शराबे के चलते राज्यपाल अभिभाषण के पहले तीन और आखिरी के एक पैराग्राफ को ही पढ़ पाए। सदन ने उनके अभिभाषण को पढ़ा मान लिया। कांग्रेस नेता आरोप लगा रहे थे कि राज्य में माओवाद उन्मूलन के नाम पर आत्मसमर्पण, गिरफ्तारी और मुठभेड़ की फर्जी घटनाएं हो रही हैं और इसमें बेकसूर आदिवासी मारे जा रहे हैं।

जब विधानसभा का बजट-सत्र शुरू हुआ तो पुलिस के हवाले से बताया गया कि माओवाद प्रभावित नारायणपुर जिले में संदिग्ध माओवादी ग्रामीणों की हत्याएं कर रहे हैं। पुलिस प्रशासन ने पहले दिन 3 ग्रामीणों के मारे जाने की खबर दी, लेकिन अगले दिन बुधवार को पुलिस ने दावा किया कि माओवादियों ने 16 लोगों को मौत के घाट उतारा है। बस्तर रेंज के आईजी एसआरपी कल्लूरी की मानें तो माओवादियों ने नारायणपुर जिले के पांच गांवों आलबेड़ा, कुंदला, नेतापुर, परपा और मरबेड़ा में हाल में धावा बोला और अंधाधुंध गोलियां चलाते हुए 16 ग्रामीणों को मार डाला। कल्लूरी के मुताबिक माओवादियों ने ग्रामीणों पर पुलिस के साथ मिलकर मुखबिरी का आरोप लगाया था।

naxal shirish-2यदि मामले की गहराई में जाएं तो माओवादी चेतावनी देकर या जन अदालत लगाकर ग्रामीणों की हत्या करते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। इस सवाल पर कल्लूरी का कहना है, ‘पुलिस की लगातार दबिश और गिरफ्तारियों से घबराकर नक्सली कमांडर सुरक्षित ठिकानों की तलाश में हैं। ग्रामीणों का उनसे मोहभंग हो गया है और स्थानीय स्तर पर उन्हें पहले जैसा सहयोग नहीं मिल रहा है। इसलिए दहशत फैलाने के लिए वे सामूहिक हत्याएं कर रहे हैं। इसीलिए इस बार उन्होंने बिता बताएं ही ग्रामीणों पर अंधाधुध गोलियां चला दीं।’ ठीक इसी दिन यानी एक मार्च को ही पुलिस ने बस्तर संभाग की सीमा से सटे तेलगांना राज्य के खम्मन जिले के जंगल में सुरक्षाबलों द्वारा पांच महिलाओं सहित आठ माओवादियों के मारे जाने की पुष्टि की।

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में इन माओवादी घटनाओं के चलते एक बार फिर पूरे देश का ध्यान ‘लाल आंतक’ की तरफ गया। इससे यह भी साफ हो गया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा राज्य को माओवादियों से मुक्ति दिलाने के दावों के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों के पास इस चुनौती से निपटने के लिए कोई कारगर रणनीति नहीं है। प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह लाख कहे कि छत्तीसगढ़ में माओवादियों का प्रभाव घट रहा है, लेकिन बीते दिनों माओवादियों के साथ मुठभेड़ की बढ़ती घटनाओं के चलते यह समस्या और भी ज्यादा विकराल रूप में दिखाई दे रही है। पुलिस और माओवादियों की लड़ाई में आदिवासियों को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है और दोनों के बीच संघर्ष में हजारों आदिवासी मारे जा रहे हैं।

naxal shirish-3आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक संकेत ठाकुर बताते हैं, ‘सरकार माओवादी हिंसा को सिर्फ कानून व्यवस्था की समस्या मान रही है, जबकि इसकी जड़ में सामाजिक और आर्थिक कारण छिपे हैं, लेकिन इस ओर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के साथ भेदभाव जारी है और इसी के कारण माओवाद को दूसरे जिलों में भी सिर उठाने का मौका मिल रहा है।’ माओवाद प्रभावित इलाकों के लोग आज भी सड़क, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। इसी साल राज्य सरकार ने युक्तिकरण के नाम पर अकेले बस्तर संभाग के साढ़े सात सौ स्कूलों को बंद कर दिया है।

कुछ मानव अधिकार कार्यकर्ता आरोप लगा रहे हैं कि सरकार माओवादियों को क्रूर तरीके से पेश करने के लिए कई फर्जी वारदातों को अंजाम देकर, नक्सलियों को जिम्मेदार ठहरा रही है। यही माओवादी उन्मूलन का सरकारी तरीका है। सच्चाई बस्तर से बाहर जाने न पाए, इसके लिए सामाजिक कार्यकर्ता वकील और पत्रकारों तक को निशाना बनाया जा चुका है। वरिष्ठ पत्रकार आलोक पुतुल का मानना है कि बस्तर में माओवाद से जुड़ी किसी भी घटना की सच्चाई जानना सबसे मुश्किल काम हो गया है।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल का आरोप है, ‘बस्तर जैसे इलाकों में महिलाओं के साथ अनाचार और अपहरण की घटनाएं बढ़ रही हैं। कई घटनाओं में तो पुलिस के संलिप्ता की पुष्टि हुई हैं, लेकिन पुलिस का मनोबल न टूट जाए, यह दलील देकर किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है।’

छत्तीसगढ़ में 11 हजार से ज्यादा आदिवासी महिलाएं गायब हैं, लेकिन सरकार को नहीं पता कि वे कहां हैं। पिछले साल अक्टूबर से जनवरी, 2016 तक अलग-अलग घटनाओं में पुलिस के खिलाफ गैंगरेप और बलात्कार की शिकायतें दर्ज की गईं। माओवाद प्रभावित बीजापुर जिले में आदिवासी महिलाओं का कहना है कि 11 से 14 जनवरी के बीच बासागुड़ा थाने के अलग-अलग गांवों में सुरक्षा बल के जवान पहुंचे और उन्होंने उनके साथ सामूहिक अनाचार किए। इस मामले में बस्तर संभाग के आईजी कल्लूरी का कहना है कि इस तरह की शिकायतें पुलिस के खिलाफ माओवादी समर्थकों के दुष्प्रचार का हिस्सा है। वहीं, मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि सुरक्षा बल के जवान युद्ध की रणनीति के तौर पर यौन हिंसा की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। 

मगर बस्तर की परेशानी है कि यहां की सच्चाई जानने के लिए व्यवस्था में जितनी पारदर्शिता होनी चाहिए, नहीं है। यहां लोकतंत्र इस हद तक खत्म कर दिया गया है कि हर मुठभेड़ के बाद जितने मुंह उतनी बातें होती हैं।

(साभार- राजस्थान पत्रिका, रायपुर)


shirish khareशिरीष खरे। स्वभाव में सामाजिक बदलाव की चेतना लिए शिरीष लंबे समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दैनिक भास्कर और तहलका जैसे बैनरों के तले कई शानदार रिपोर्ट के लिए आपको सम्मानित भी किया जा चुका है। संप्रति राजस्थान पत्रिका के लिए रायपुर से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।


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