जयंत कुमार सिन्हा
संगम ने ‘मोक्ष’ के तीन मार्ग तय किये -जलाना, दफनाना और प्रवाह करना। संगम यानि इलाहाबाद। संगम यानि गंगा, जमुना और सरस्वती का मिलन। संगम यानी योग, तप, सुख, शान्ति, समृद्धि। संगम यानी ‘मोक्ष’। संगम यानी नियम व शर्तें।
आंकड़े झूठ बोलते होंगे, दफन लाश नहीं। याद होगा कि मानव कंकाल का सैंकड़ों की संख्या में नदी में तैरना हमारे लिए समाचार बना था। जो संभवत: समय के साथ दफन कर दिया गया। क्योंकि कंकालपेशियों के पास खुद की पहचान नहीं होती। बस एक अदद कंकाल, जो नियम व शर्तों के दम पर दफनाया गया, जो नदी के उफान के साथ आया सुर्खियां बटोरा और दफन हो गया।
संगम के श्मशान घाटों पर नज़र डालें तो फाफामऊ किनारा, तेलियरगंज, रुसुलाबाद घाट, झूसी, दारागंज, झूसी छतनाग के घाट प्रमुख हैं। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक के लोग पंचतत्व कर्म के लिए यहां आते हैं। खास कर सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली और आस-पास से। सरकारी विद्युत शव-गृह, इलाहाबाद शहरी क्षेत्र के घाट पर बना है।
स्थानीय लोगों कि माने तो मृत शरीर को नैश्वर करने के तीन विधि और दो मौसम को सामाजिक मान्यता मिली है। जलाना, दफनाना, प्रवाह करना। मृत्यृ दर प्रतिशत के अनुसार महज 5% को जलाया जाता है। गर्मियों में विधिवत क्रिया-कलापों को पूर्ण करने के बाद इन्हीं घाटों के पास दफन कर दिया जाता है। वहीं बरसात में चूंकि नदी का जलस्तर बढ़ जाता है, ऐसे में प्रवाह करने को उचित मानते हैं। गौरतलब है कि इस दफनाने और प्रवाह के चलन में आर्थिक (ग़रीब-अमीर) जैसी कोई बात नहीं। इसे केवल दस्तूर बना दिया गया है।
बरसात, उनके लिए आफत बन जाती है, जिनका घर नदी के किनारे पर है। अकसर, काशी की लाशों की कतारें घर के किनारे लग जाती हैं। हर घर में एक बांस होना जरूरी हो जाता है, किनारे फंसी लाश को दूर हटाने के लिए। उन लोगों को ज्यादा मशक्कत करनी पड़ जाती है, जिस घर के पुरुष कहीं बाहर चले गये हैं। ऐसे में मुंहमांगी रकम अदा कर लाश हटवाना मजबूरी हो जाती है। बीमारी का ख़तरा अलग से।
एक तरफ संगम के अस्तित्व को ख़तरा तो दूसरी ओर पर्यावरण को नुकसान। लोगों की माने तो गांव वाले आनन-फानन में लाश को गलत तरीके से निपटाकर चले जाते हैं, जो गलत है। वहीं कई लोग जिला प्रशासन के गैर-जिम्मेवार रवैये को दोषी ठहराते हैं। बहरहाल, एक कठोर निर्णय की जरूरत है। अन्यथा कहीं मुरदे कह ना दें -“चैन से मरने ना दिया”।
जयंत कुमार सिन्हा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व छात्र। छपरा, बिहार के मूल निवासी। इन दिनों लखनऊ में नौकरी। भारतीय रेल के पुल एवं संरचना प्रयोगशाला में कार्यरत।
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