कुमार सर्वेश की रिपोर्ट
चकिया…छोटी सी चकिया…यानी पत्थर का छोटा सा गोल–मटोल चक्के जैसा टुकड़ा…यहां रहने वाले लोगों का जीवन भी बरसों से, नहीं शायद सदियों से एक चक्के की तरह ही चक्कर खाता रहा है। छोटे–छोटे चक (खेतों) से बनी इस अंचल की दुनिया भी एकदम चौकोर है।
इस अंचल की कोई ‘परती परीकथा’ जैसी कथा तो नहीं है लेकिन इस इलाके के किस्से–कहानियां परियों की कहानियों जैसे ही हैं। चकिया, उस इलाके का छोटा सा हिस्सा है, जिसे ‘धान का कटोरा’ भी कहा जाता है। धान का कटोरा होने के बावजूद इस क्षेत्र को अभी शिक्षा, चिकित्सा से लेकर पानी, बिजली, परिवहन और संचार हर दृष्टि से धन्य किए जाने की जरूरत है।
चकिया लोकतंत्र के अड़सठ साल (बसंत नहीं) देख चुका है। हालांकि चकिया का लोकतंत्र इससे भी पुराना है। कभी काशी राज्य का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा और काशी नरेश का एक एस्टेट माना जाने वाला ‘चकिया‘ अब चंदौली जिले की एक तहसील जैसी छोटी सी पहचान भर बन कर रह गया है। चंदौली को वाराणसी से अलग कर इस उद्देश्य से जिला बनाया गया था ताकि चंदौली का हर तरह से विकास हो सके। लेकिन 18 साल बाद भी चंदौली का अपेक्षित विकास नहीं हुआ। चकिया का विकास तो बिल्कुल नहीं हुआ।
चकिया में आज भी बिजली आती है तो रात में चोर की तरह दबे पांव, जब सब सोए रहते हैं। यहां बिजली आज भी ‘दर्शन’ की वस्तु है। अन्य जरूरतों की तरह ही वह दुर्लभ है। बाकी चीजों का हाल इसी से समझा जा सकता है। महाराजाओं से लेकर अंग्रेज़ों और आज़ादी के बाद उभरे नए तरह के अंग्रेज़ों तक की हुकूमत को अपनी आंखों से देखने वाले चकिया की दास्तां ऐसी है कि ‘मत पूछो मेरे दिल का हाल, आपके दिल भी बिखर जाएंगे..’।
चकिया का भूगोल रूप की रानी जैसा है लेकिन इस रानी का दर्द भी बहुत बड़ा है। यहां के मृत्युंजय पुरखों की जुबानी सुनें तो इस दर्द की इंतेहा नहीं है। कभी आदिवासियों–वनवासियों के बीहड़ और जंगली इलाके के लिए जाना गया, तो कभी नक्सलवाद के नासूर का दंश झेला। इस अभिशप्त भूमि पर आज तक किसी भी ‘विकास पुरुष’ या ‘धरती के लाल’ की नज़र नहीं पड़ी। छोटे–मोटे ‘कर्णधारों’ की बुरी नज़र ज़रूर पड़ी, वो भी इस इलाके की खनिज और प्राकृतिक संपदा का भरपूर दोहन करने के लिए। यह ग़रीब लेकिन आत्मबली इलाका अभी तक विकास की बाट जोह रहा है।
यहां हरे–भरे खेत और जंगल हैं, खूबसूरत पहाड़ियां हैं, चंद्रप्रभा और बुरे कर्मों का नाश करने वाली कर्मनाशा जैसी नदियां हैं तो राजदरी, देवदरी और औरवा टांड जैसे जल प्रपात भी हैं। लतीफशाह बांध के अलावा मूसाखांड और भैसोड़ा जैसे बांध भी हैं। लतीफशाह की दरगाह है। अपनी मिट्टी और पत्थरों में अनगिनत तिलिस्म और राजसी रहस्य को दबाए नौगढ़ जैसा इलाका है, जहां चंद्रकांता की परीकथाएं आज भी गूंजती हैं। विंध्य की पर्वत शृंखलाएं अपने साथ मां विंध्यवासिनी देवी (विंध्याचल, मिर्जापुर) की कृपा लेकर कैमूर की पहाड़ियों में स्थित मां मुंडेश्वरी धाम से होकर सासाराम (रोहतास) तक जाती हैं। लेकिन यहां की पाठशालाओं से सियासत का ककहरा सीख कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके और अब देश के गृहमंत्री जैसा ओहदा संभाल रहे राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज नेताओं की कृपादृष्टि आज भी इस इलाके को नसीब नहीं हो पाई है। इसमें शायद राजनाथ सिंह जैसे कृषकपुत्र नेता ज्य़ादा जिम्मेदार नहीं, बल्कि इस इलाके की बदकिस्मती ही ऐसी है।
कब होगा चकिया का संपूर्ण विकास, इस सवाल का जवाब यहां की धरती का अन्न खाकर पले–बढ़े राजनेताओं से कहीं पहले इस इलाके के बाशिदों को देना होगा। वे अपने साथ हुई ऐतिहासिक नाइंसाफी और क्षेत्र के पिछड़ेपन के लिए क्यों नहीं अपने नेताओं से जवाब मांगते?
वरिष्ठ टीवी पत्रकार कुमार सर्वेश का अपनी भूमि चकिया से कसक भरा नाता है। राजधानी में लंबे अरसे से पत्रकारिता कर रहे सर्वेश ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की है। साहित्य से गहरा लगाव उनकी पत्रकारिता को खुद-ब-खुद संवेदना का नया धरातल दे जाता है।
Dear Sir,
we are agreed with you , your comments for nathing Devlopment of CHAKIA TOWN ,I request OUR HOME MINISTER/ MANISTER of state culture/ tourism DR MAHESH SHRMA JI cordinate for MAKE MADERN CITY/ industries in future WITH connected metro RAIL & devloped RAJ & DEV DARI tourisme with SARNATH.