आशीष सागर दीक्षित
बाँदा सदर की ग्राम पंचायत जमालपुर में ‘ अन्नदाता की आखत ‘ अभियान के तहत सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गाँव के अतिगरीब बीस अनुसूचित जाति के लोगों को अनाज का दान दिया। इसमें गाँव के भूमिहीन, बटाईदार (दलित) किसान हैं, जो बड़े कास्तकारों की खेती जोतते हैं। सूखे की चपेट में आये इन परिवारों की रोजी -रोटी तो गई ही साथ ही गाँव से पलायन की स्थति बन गई है। फौरी मदद में अनाज का कटोरा-प्रति परिवार 5 किलो बेहतर सोनम चावल और बीस किलो गेंहू- वितरित किया गया।
‘अन्नदाता की आखत ‘ में यह सहयोग दिल्ली के साथी नारायण दास चंद्रुका ने किया है। उनके माध्यम से मिले राशन को गाँव में पदवंचित लोगों को बराबर से बांटा गया। गाँव की विधवा सुकवरिया, सैकी, बाबू, रनिया, रामकशोर, रामलली, चुन्नू , चुनबादी, पंचा, रामबाई, श्यामकली,
गौरतलब है कि गाँव की विधवा लक्ष्मनिया वाल्मीकि जाति से है। आज भी बुंदेलखंड के गाँव में सामंती विचारधारा घर किये है। दलित और वाल्मीकि शुद्र ठाकुरों और सवर्णों के साथ खड़े होकर सहजता से अपनी आखत नही ले सकता। जब महिला ने संकोच में कहा कि ‘ मुहिका दुरे से डार दया ‘। संगठन के लोगों के समझाने-बुझाने के बाद उसको अनाज सबके साथ मिला। प्रौढ़ महिला का घूंघट ढंका था, उसका पल्लू कुछ हटवाकर तस्वीर ली गई। शैलेन्द्र नवीन श्रीवास्तव, विवेक सिंह, डाक्टर कुंअर विनोद राजा, वीरेंद्र गोयल अन्न वितरण अभियान में शरीक हुए।
गणतंत्र का मान कैसे बढ़ेगा?
जिन्होंने अपने चेहरे पर आज तिरंगा लगाया है
वॉल पर भारत माता को सजाया है !
उनसे ही एक अदद सवाल
कौन वर्ष भर रहा वतन का दलाल ?क्यों देश की सम्पति, एकता और संप्रभुता पर किये प्रहार
कौन माना इस सड़ती व्यवस्था से हार !
साल भर सरकारी सड़कों, चौराहों को किया पीक से लाल
अविरल नदी में अपनी जूठन और मैले को डाल !खुद के घर की करते रहे रखवाली
मगर दफ्तर में बैठकर खाते हो दलाली !जब कभी आये मदद के अवसर
संवेदना और आत्मा से गए तुम मर !
कभी सियासी रैलियों की भीड़ में खड़े हुए
दिखलाई दिए वहां मुर्दों से पड़े हुए !जरा सोचना गणतंत्र के मान पर क्या किया तुमने
इस देश को कब, कितना और क्या दिया तुमने ?
ये जो तस्वीरों में गरीबी की ज़िल्लत है
गौर करो यहाँ क्यों एक रोटी की किल्लत है ?(आशीष सागर के फेसबुक वॉल से)
आगामी 5 फरवरी को हम बाँदा के नरैनी के गोरेपुरवा निवासी रजा खातून की बेटी रिजवाना खातून का निकाह करवाने जा रहे हैं। रिजवाना के अब्बा मर चुके हैं और माँ ने जब एक दिन बाँदा शहर आकर बिटिया के लिए भीख मांगी, कार्ड हाथ में लेकर तब सामना हुआ। उसको गाँव वापस किया और रिजवाना की शादी हमारी ज़िम्मेदारी हो गई। ‘अन्नदाता की आखत ‘ ने यह संकल्प लिया कि समूह बिटिया का ब्याह करेगा सामर्थ्य अनुसार। बुंदेलखंड में बेटियां खासकर किसान के घर न बैठे, यह अभियान का फलसफा है।
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] पर संवाद कर सकते हैं।