अरुण प्रकाश
क्या आप किसी ऐसे गांव के बारे में जानते हैं जहां ‘राजशाही’ रही हो। नहीं जानते हैं तो आज हम आपको एक ऐसे ही गांव से रूबरू करा रहे हैं। पिछले 65 साल से मुखिया के रूप में सिर्फ चेहरा बदलता रहा लेकिन परिवार नहीं। एक ही परिवार से जुड़े लोग लगातार गांव पर कब्जा बनाए रखे लेकिन मौजूदा पंचायत चुनाव ने इस गांव से राजशाही का ख़ात्मा कर दिया ।
हम बात कर रहे हैं जौनपुर जिले के मड़ियाहू ब्लॉक में पड़ने वाले बीरबलपुर ग्राम पंचायत की। यादव बहुल इस गांव में करीब 6 दशक से जगदेव यादव के परिवार का कब्जा रहा है । इससे पहले जगदेव की पत्नी धर्मा यादव गांव की प्रधान रहीं । 89 साल की धर्मा साल 2000 से लगातार गांव की मुखिया बनी हुई थीं हालांकि इस बार धर्मा को शिकस्त खानी पड़ी और नन्हकू यादव ने करीब 41 वोटों से जीत हासिल की । जबकि चुनाव मैदान में कुल 7 उम्मीदवार अपनी किस्मत आज़मा रहे थे लेकिन पांच लोग अपनी जमानत भी नहीं बचा सके । पिछले 65 बरस से गांव पर काबिज जगदेव का परिवार इस बार दूसरे नंबर पर रहा। नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान नन्हकू बताते हैं कि- आज़ादी के बाद से ग्राम प्रधानी जगदेव के परिवार में ही रही है । धर्मा से पहले जगदेव खुद गांव के मुखिया रहे हालांकि 1995 में एक बार के लिए अछैबर यादव गांव के मुखिया चुने गए थे लेकिन वो भी जगदेव के खानदान से ही ताल्लुक रखते थे।
हैरानी की बात ये है कि पिछले 6 दशक में बीरबलपुर गांव एक बार भी अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए आरक्षित नहीं हुआ। जिस वजह से घूम-फिरकर प्रधानी पूरी तरह एक ही वर्ग के हाथों में रही। नन्हकू यादव बताते हैं कि बीच में एक दो बार के लिए बीरबलपुर गांव आरक्षित जरूर रहा लेकिन या तो महिला के लिए या फिर बैकवर्ड के लिए, हालांकि सामान्य सीट होने पर मुखिया पद पर जगदेव परिवार का ही कब्जा बरकरार रहा ।
55 साल के नन्हकू यादव इससे पहले दो बार क्षेत्र पंचायत सदस्य रह चुके हैं। उनके मुताबिक गांव काफी पिछड़ा हुआ है । गांव में मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है । लोगों को अपने घर तक जाने के लिए रास्ता तक नहीं है । लोगों को पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता है, जबकि बीरबलपुर अंबेडकर गांव भी रह चुका है। पक्की सड़क के नाम पर प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत एक सड़क बनायी गयी है जबकि ज्यादातर सड़कें कच्ची हैं। कुछ पर तो खड़ंजा बिछा है, लेकिन कुछ जगहों पर वो भी नहीं है ।
नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान के सामने सबसे बड़ी चुनौती रास्ता बनवाने की है । हालांकि टॉयलेट भी उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है । ग्राम प्रधान नन्हकू की मानें तो उनके गांव में बमुश्किल 25-30 घरों में टॉयलेट बना होगा जिसमें ज्यादातर किसी काम के नहीं हैं। टॉयलेट बनवाने का नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की गई है। पूरे गांव में सिर्फ एक ही सोलर लाइट लगी है और वो भी पूर्व प्रधान के घर को ही रौशन करती है।
दो हज़ार की आबादी वाले बीरबलपुर में बच्चों के पढ़ने के लिए दो प्राथमिक विद्यालय है जबकि हाल फिलहाल एक जूनियर हाईस्कूल जाकर खुला है । आगे की पढ़ाई के लिए लड़के-लड़कियों को गांव से बाहर जाना पड़ता है । नन्हकू जी कहते हैं हमारी कोशिश हे कि गांव की बेटियों के लिए कम से कम इंटरमीडिएट तक की बढ़ाई की व्यवस्था गांव में ही रहे ।
बीरबलपुर में चुनाव के दौरान कुल 7 उम्मीदवार अपनी किस्मत आज़माने उतरे थे जिसमें सिर्फ एक प्रत्याशी राजनाथ ही ऐसे थे जिनकी उम्र 26 साल थी बाकी सभी 40 से पार थे। लिहाजा गांव के युवाओं ने 55 साल के नन्हकू यादव के अनुभव को चुना। नन्हकू के कंधों पर जिम्मेदारियां बहुत बड़ी हैं। उम्मीद है कि गांववालों ने जिस भरोसे के साथ गांव की ‘राजशाही’ का खात्मा कर उन्हें अपना मुखिया बनाया है वो उसे बखूबी निभाएंगे।
अरुण प्रकाश। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।
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