कोसी तो मोदी के ‘मौन’ पर सवाल करती है!

modi in sahrsaप्रधानमंत्री के हालिया बिहार दौरे को 10 दिन से ज़्यादा वक़्त गुजर गया है। इस दौरान मोदीजी के भारी भरकम पैकेज पर तो काफी शोर मचा लेकिन 18 अगस्त, कोसी त्रासदी के बरसी के दिन कोसी पहुंचे मोदी के मौनपर मौन ही छाया रहा। एक सवाल कोसी के बाशिंदों के मन में गूंजता रहा, जिसे आवाज़ दी है- पत्रकार साथी रूपेश ने।

शहर में उस दिन कोलाहल नहीं था। बड़ी संख्या में लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुनने सहरसा निकल गये। खासी तादाद में बसों को भी बुक कर लिया गया। प्रधानमंत्री आगमन की प्रतीक्षा लंबे समय से मिथिलांचल के लोगों को थी। मिथिलांचल के इस कोसी क्षेत्र में लोग पलक पांवड़े बिछाये मोदी का इंतजार कर रहे थे। प्रधानमंत्री आये भी। संयोग देखिये कि दिन वहीं था- 18 अगस्त। सात साल पहले कोसी ने अपनी विभीषिका से इस पूरे क्षेत्र को तहस नहस कर दिया था।

जब मोदी सहरसा में लोगों को अपनी भुजाएं फैला कर बुलंद आवाज़ में पैकेज की घोषणा कर लुभा रहे थे, उसी वक़्त मधेपुरा में महज दो सौ लोग इकट्ठा हो कर कोसी त्रासदी के सात साल पूरे होने की बरसी मना रहे थे। त्रासदी के पीड़ित नाच रहे थे। गा रहे थे, बतिया रहे थे ! अपने दुख का लेखा-जोखा रख रहे थे। मधेपुरा कॉलेज में जिले के कई संगठनों ने मिल कर ‘जन संसद’ कार्यक्रम रखा, जिसमें दूर दराज से काफी संख्या में महिलाएं भी आयीं।

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प्रधानमंत्री को सुनने कोसी सहित पूर्णिया प्रमंडल से भी भारी संख्या में लोग सहरसा पहुंचे। सहरसा से पहले प्रधानमंत्री ने आरा में बिहार के लिए विशेष पैकेज की घोषणा की। पूर्णिया गोला चौक पर झंटू की चाय दुकान पर गरमा-गरम बहस छिड़ी थी कि प्रधानमंत्री अपने जादुई झोले से कोसी क्षेत्र की मुश्किल भरी जिंदगी के लिए जादू की छड़ी जरूर निकालेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 अगस्त की उस त्रासदी को याद करना मुनासिब नहीं समझा।

इधर, जन संसद में कोसी नव निर्माण मंच के महेंद्र भाई ने हालिया आये तूफान के पीड़ितों को भी बुला लिया। एक गांव की महिला अपने साथ सरकारी चेक भी लायी। उस चेक पर सरकारी मुहर ही नहीं है। वह बैंक का चक्कर लगा कर परेशान हो चुकी हैं। इधर महकमा दूसरा चेक जारी नहीं कर रहा। संवदिया के कलाकारों ने डा आलोक कुमार के नाटक ‘घो घो रानी कितना पानी’ का मंचन कर कोसी त्रासदी को जीवंत कर दिया। अगली पांत में बैठी छात्राएं अपनी आंखें पोछ रही हैं।

सात साल से जिन लोगों को न्याय नहीं मिला वे भी पहुंचे हैं। मुरलीगंज नगर पंचायत वार्ड संख्या चार के मोहम्मद उबेस को अब तक उनके टूटे घर का मुआवजा नहीं मिला। तुलसिया के जवाहर यादव और शंभू पासवान की भी यही कहानी है। शंकरपुर प्रखंड के रामपुर लाही बरियाही के खेत अब भी रेत से भरे हैं। कई लोग अब भी पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं।

उधर, झंटू की दुकान की बहस अब प्रधानमंत्री के नेपाल में भूस्खलन के कारण नदी पर बन गये प्राकृतिक बांध पर केंद्रित हो गयी है। सहरसा में प्रधानमंत्री ने बड़े ही शान से नेपाल जा कर इस बांध को तोड़ने की कथा सुनायी। कुछ लोग प्रधानमंत्री के अहसानमंद थे कि उन्होंने कोसी क्षेत्र को बचा लिया अन्यथा फिर बाढ़ आ जाती। केंद्र सरकार को फिर राष्ट्रीय आपदा घोषित करना पड़ता।

शाम ढलने लगी। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भाग ले कर सहरसा से लौटने वाले वाहन का काफिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। इधर, जन संसद भी समाप्त। अपनी व्यथा सुना कर लौटने वाले गांव के लोग सड़क पार करना चाहते हैं लेकिन केसरिया काफिले का सिलसिला अंतहीन लग रहा है। चाय की दुकान पर बहस आबूधाबी में बनने वाला मंदिर हो गया है। इन सबसे परे तटबंध में कैद कोसी की अविरल धारा अपने अंचल में बसने वाले सुपौल, सहरसा, खगड़िया, मधेपुरा, भागलपुर, पूर्णिया और कटिहार की भूमि को सींचती हुई गंगा में समर्पित हो रही है।

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मधेपुरा के सिंहेश्वर के निवासी रुपेश कुमार की रिपोर्टिंग का गांवों से गहरा ताल्लुक रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद शुरुआती दौर में दिल्ली-मेरठ तक की दौड़ को विराम अपने गांव आकर मिला। उनसे आप 9631818888 पर संपर्क कर सकते हैं।


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