देवेंद्र शुक्ला
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का प्रचार थम चुका है लेकिन बाकी तीन चरणों के लिए वार-पलटवार जारी । खास बात ये है कि इस दौरान जुबानी जंग खूब चल रही है और वो भी बीजेपी और आरजेडी में, जबकि सत्ताधारी पार्टी जेडीयू (जो बीजेपी की पूर्व सहयोगी रह चुकी है) पर हमले की धार थोड़ी कुंद है। सवाल ये कि आखिर क्यों बीजेपी नीतीश पर हमला करने के लिए लालू का सहारा ले रही है । विकास की बजाय जंगल राज की बात की जा रही है । इसका जवाब तलाशने की कोशिश में जब हम लोकसभा चुनाव नतीजों का विश्लेषण करने बैठे तो तस्वीर आइने की तरह साफ हो गई ।
अथ बिहार चुनाव कथा-दो
मसलन लोकसभा चुनाव में भी लालू यादव ही एक ऐसे शख्स थे जिनकी पार्टी को मोदी की महालहर के बाद भी बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा वोट मिले और जितने वोट मिले वो बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव में खतरे की घंटी हैं । शायद यही वजह है कि कभी बीजेपी के बड़े भाई रहे नीतीश ने पुराने साथी रहे लालू यादव से हाथ मिलाने में देर नहीं की। लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी जनता दल यू अकेले मैदान में ताल ठोंक रही थी, लिहाजा उसे अपने छोटे भाई से मुंह की खानी पड़ी । इस दौरान नीतीश लालू से काफी पीछे रहे ।
कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव में जेडीयू का महादलित और मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण फार्मूला कारगर साबित नहीं हुआ जबकि बीजेपी के नये बने सहयोगियों ने लगभग शत-प्रतिशत सफलता अर्जित कर विधानसभा चुनावों के लिए साथ बने रहने की पूर्वपीठिका तैयार कर दी। लोकसभा चुनाव नतीजों के हिसाब से बात करें तो बीजेपी और उसके सहयोगियों को 243 विधानसभाओं में से 174 सीटों पर कामयाबी मिली जबकि आज के महागठबंधन (जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस) को कुल 64 सीटों पर बढ़त रही, फिर भी अगर इन सभी के वोट बैंक को मिला दे तो वो बीजेपी पर भारी रहने के संकेत देता है।
यही वजह रही कि विधानसभा चुनाव से पहले गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी सरकारों के नये राष्ट्रीय विकल्प की तलाश में जनता-परिवार विलय की खूबसूरत अवधारणा राजनीतिक गलियारों में परवान चढ़ी। इस नये महागठजोड़ की टेस्टिंग का पहला मौका जब बिहार में सामने आया तो साइकिल के होनहार सवार मुलायम सिंह यादव ने आरजेडी की लालटेन और जद-यू के धनुष-बाण से तौबा कर ली। चुनावी शह-मात के इस खेल में कौन बाजी मारता है ये तो 8 नवंबर को चुनाव नतीजों के आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन चरण दर चरण जिस तरह वार-पलटवार चल रहा है उसने बिहार की लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है ।
देवेंद्र शुक्ला। फिलहाल दूरदर्शन में रिसर्च हेड हैं। चुनाव विश्लेषण का दस साल से ज़्यादा का अनुभव। आप 2005 में C-VOTER के साथ जुड़े और रिसर्च को-ऑर्डिनेटर के तौर पर आधे से ज़्यादा हिंदुस्तान के चुनाव विश्लेषण में शामिल रहे। आपको चुनावी विश्लेषण प्रवीर पुरस्कार 2015 से नवाजा गया है।
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