कर्जदार हम भी, कर्जदार तुम भी… बस किस्मत जुदा-जुदा है!

धीरेंद्र पुंडीर

farmer pundir-1दस साल का बच्चा था। गांव में जाना था। एक जीप कॉपरेटिव डिपार्टमेंट की थी। उसमें बैठा हुआ था। जीप में अमीन बैठे थे। कुर्क अमीन। यही नाम था, गांव की दुनिया में, उन सरकारी नुमाइंदों का। गांव से शहर के बीच की दूरी 22 किलोमीटर थी। लिहाजा कई गांव रास्ते में थे।

गांव के बीच, जैसे ही जीप रूकती थी। घरों में बैठे हुक्का पी रहे लोग ( ज्यादातर बुजुर्ग, जिनके बच्चों की लंबाई उनके कांधों से ऊपर जा चुकी थी) या फिर जानवरों को घास डालते हुए एक दम से पत्ता तोड़ भागने लगते थे। जो जैसी हालत में होता, वो निकल भागता। और तब हांफता दौड़ता रहता जब तक जीप मेें बैठे तीन-चार लोगों की पहुंच से बाहर नहीं हो जाता। बुजुर्गों को अमीन सरकार का ख़ौफ़ दिखाते। और फिर अगला गांव।

एक घर में एक बूढ़ा भैंस को सानी कर रहा था कि जीप उसके दरवाजे के सामने जा रूकी। जीप की आवाज से उस बूढ़े की आंखों में जाने कौन सा मंजर उतर आया। हाथ से घास का टोकरा गिर गया। और बेचारगी से भागने की असफल कोशिश। अमीनों के शरीर में काफी दम था। सरकार का लहू दौंड़ रहा था। बूढ़़े को पकड़ा और जीप में डाल लिया। बूढा़ बार -बार हाथ-पैर जोड़ रहा था। जीप में बैठा पैर को पकड़ रहा था। इतने में सामने घर से दो तीन बच्चियां रोते हुए निकलीं। और रोते रोते उन्होंने उस बूढ़े को पकड़ने की असफल कोशिश की। वो रोती हुई जीप के पीछे भाग रहीं थीं। बूढ़ा जीप के अंदर रो रहा था। और जीप के पहियों से धूल में वो बच्चियां कही गुम होती जा रही थीं।

farmer pundir-2जीप में बैठा हुआ मैं कांप रहा था। दिल में जैसे कुछ टूट गया। पता नहीं चला कि मैं रो रहा था। पिताजी को शायद कुछ महसूस हुआ और उन्होंने मैनेजर साहब (उनके साथी थे) से कहा कि हम लोग बस से निकल जाएंगे लेकिन मैनेजर साहब के इसरार से साथ ही चलते रहे। अब मैं पिताजी से सवाल पूछ रहा था कि वो सब क्या है। इस बूढ़े को क्यों बैठा रखा है? पिताजी ने बताया कि सब लोग किसान हैं हमारी ही तरह। बस इन पर क़ॉपरेटिव यानि सरकारी संस्था का कुछ पैसा बकाया है। ये पैसा खाद और बीज के लिए दिया गया था। और ये उसे चुकाने में नाकाम रहे हैं। इसीलिए अमीन इनको पैसा वसूलने के लिए पकड़ रहे हैं।

उस बूढ़े का बकाया आज भी मुझे याद है 800 रूपए या इसके आसपास ही कुछ था। पिताजी ने बताया कि चौदह दिन तक हवालात में रखने के बाद उसको छोड़ दिया जाएगा और यदि परिवार वालो ने पहले पैसा दे दिया तो पहले रिहा हो जाएंगे। बात तीस साल से ज्यादा पुरानी है। जेहन से कभी हटी नहीं। गांव में घूमते हुए लोगों को देखता और उस बूढ़े को याद करता हूं। सरकारी पैसा पचाना आसान नहीं होता है। गांव में कहा जाता है कि सरकार पाई-पाई वसूल लेती है। बचपन में ऐसा ही मानता था। बचपन में मासूम या मूर्ख था। मालूम नहीं। लेकिन वक़्त के साथ इस समझ में तब्दीली आ गई।

vijay-mallyaआज भी किसान को पैसा चुकाने के लिए गिरवी रखना होता है। और दोस्त माल्या 9000 करोड़ रूपए के सरकारी पैसे को लेकर आराम से हवाई जहाज में बैठकर ब़ॉय करके निकल सकता है। किसान के लिए 800 रूपए में मौत से बदतर जिल्लत हो सकती है। और माल्या के साथ देश का वित्तमंत्री बड़े आराम से संसद में चर्चा कर सकता है। विजय माल्या इतने हजारों करोड़ रूपए डकार कर देश के लिए क़ानून बनाने वाली संसद में बैठ कर हजारों-लाखों किसानों को कुत्तों की मौत मरने के लिए मजबूर कर सकता है।

माल्या कुछ नहीं बस एक पर्दे का हटना है। नाटक अनवरत जारी है। आज़ादी के वक़्त जो भी सुधार की उम्मीद थी वो सब नौकरशाहों ने तभी खारिज करा दी थी, जब पुराने ढांचे में किसी संस्थागत या वैचारिक बदलाव का रास्ता बंद कर दिया गया था। विजय माल्या एक उद्योगपति नहीं है। विजय माल्या एक प्रतीक है। लूट से हासिल की गई दौलत को कैसे एक शील्ड में तब्दील कर दिया जाए। ये कोई ऐसा शख्स नहीं है, जो ब्लैक मार्केटिंग करता हो। ये वो भी नहीं है जिन्होंने चंबल में लूट की। ये वो भी नहीं जिन्होंने ठेके हड़पे। ये जनाब देश की प्रगति के मानकों में से एक हैं। आज ये अछूत नहीं है। ये देश के माननीय सांसद हैं।

farmer pundir-3अगर आपकी आंखों में अभी भी मोतिया बिंद उतरा हुआ है तो ये आपकी ग़लती है, सरकार की नहीं। हां, जिनको लूट का ये विधान मालूम नहीं है, वो किसान हैं और उनको गले में फंदा लगाने या सल्फास खाने की छूट है।

जलते घर को देखने वालों, फूस का छप्पर आपका है
आपके पीछे तेज़ हवा है, आगे मुकद्दर आपका है
उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नम्बर अब आया
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप हैं, अगला नम्बर आपका है

dhirendra pundhir


धीरेंद्र पुंडीर। दिल से कवि, पेशे से पत्रकार। टीवी की पत्रकारिता के बीच अख़बारी पत्रकारिता का संयम और धीरज ही धीरेंद्र पुंडीर की अपनी विशिष्ट पहचान है। 


ग़ौर करो वहां, एक रोटी की किल्लत है!… पढ़ने के लिए क्लिक करें

One thought on “कर्जदार हम भी, कर्जदार तुम भी… बस किस्मत जुदा-जुदा है!

  1. पूरे देश कू अन्नदाता किसानो की हालत यही है।हमारे इलाके मे भी 1987मे आई भयंकर बाढ के बाद कोआपरेटिव लोन घोटाला हुआ था ।फर्जी कागज पर ऋण स्वीकृत कराकर और किसान के नाम की राशि निकाल कोआपरेटिव के तत्कालीन अध्यक्ष और अधिकारी मालामाल हो गये और गरीब किसान जेल गया।जब सरकार ने ऋणमाफी किया तभी किसानो को मुक्ति मिली थी ।अभी एक बिल्कुल नयी स्थिति बनी है।बडे किसान से छोटे और भूमिहीन किसान पट्टे पर जमीन लेकर खेती करने लगे हैं।ऐसा इसलिए कि कतिपयत्रकारणो से बडे जोतदारों को खेती अलाभकर लगने लगा है ।है भी ।जब फसल क्षति का मुआवजा मिलता हैत्रतो पट्टे पर खेती करने वाले किसान उससे वंचित रह जाते हैं कारण उनके पास उस जमीन के भू स्वामित्व का कोई पेपर नही हैत ।कोई कागजी सबूत नही होने से खूती नही करने वाले भू स्वामी ही इसका लाभ उठा लेते हैं।

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