कच्ची ख्वाहिशें, पकता मन

art sir
बिहार के सुप्रसिद्ध चित्रकार राजेंद्र प्रसाद गुप्ता की कृति।

याद आये तुम
जैसे याद आने लगते हैं बच्चे
घर से बाहर जाते ही
जैसे जान लगाकर उड़ती चिड़ियाँ
को याद आते हैं गुलाबी चोंच वाले घोंसले
जैसे डरी हुई अम्मा के सिरहाने रखा
खो जाय हनुमान चालीसा
वो टटोलती रहे मिल जाने तक
याद आये तुम
चुटकी भर नमक की तरह
मुठ्ठी भर शक्कर की तरह
एक और रोटी की भूख की तरह
खो गई हँसी की तरह
आँख में नमी भर
याद आये तुम
याद रखना समन्दर के बिलकुल
किनारे की रेत पर
ऊँगली से लिख रही हूँ इन्तज़ार
लहरें मिटा रही है बार-बार
नाख़ून में भीतर तक भरी रेत
बिसबिसाने लगी है
तुम्हारे जाते ही देखो न
मुझे तुम्हारी याद आने लगी है…
कविता में पकता है मन
कच्ची रह जाती है ख्वाहिशें…..


shailja pathakशैलजा पाठक। दिल्ली विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा। लेखिका। संप्रति-मुंबई में निवास।