मधुबनी से रूपेश कुमार की रिपोर्ट
मधुबनी जिले के बिस्फी को कवि कोकिला विद्यापति की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है। इसी प्रखंड में है जगवन पंचायत। कहते हैं राजा जनक के समकालीन महर्षि याज्ञवल्क्य का आश्रम यहीं था। याज्ञवल्क्य का अपभ्रंश ‘जागो ऋषि’ हुआ। इन्हीं के नाम पर जग-वन यानी जगवन विख्यात है। विडंबना है कि परम तत्वज्ञानी महर्षि याज्ञवल्क्य के ज्ञान और भगवान शिव के प्रिय कहे जाने वाले कवि विद्यापति के साहित्य से उर्वर रही यह भूमि देश में बह रहे विकास के बयार से अछूती है। कमला नदी के किनारे बसे जगवन, भैरवा जैसे पंचायत के अधिकतर लोग दिल्ली और पंजाब आदि राज्यों में दिहाड़ी मजदूर हैं। इस क्षेत्र में पूरे साल में केवल एक फ़सल ही होती है। बाकी कमला मैया जाने।
जगवन और भैरवा पंचायत की सीमा पर दमला गांव। कहने के लिए दमला गांव भैरवा पंचायत में है लेकिन लोगों की छोटी-मोटी ज़रूरतें जगवन बाज़ार से ही पूरी होती हैं। भैरवा जाने के लिए नदी पार करना होगा लेकिन पुल नहीं है। बड़ी खरीदारी करनी हो तो पास ही में कमतौल बाज़ार जाना पड़ता है। कमतौल दरभंगा जिले में है। थोड़ा बड़ा बाज़ार है, लेकिन सरकारी काम-काज के लिए तो प्रखंड मुख्यालय यानी बिसफी ही जाना होगा। यहां से बिसफी की दूरी करीब आठ किलोमीटर है। पक्की सड़क नहीं है। इस पूरे इलाके में चिकनी मिट्टी है। हल्की बारिश होने पर यह सड़क नंगे पैर जाने लायक भी नहीं रहती। लोग अपनी चप्पल हाथ में ले कर इन सड़कों पर चला करते हैं।
जगवन और दमला गांव के बीच करीब सैकड़ों एकड़ ज़मीन इन दिनों परती है और जानवरों के लिए चारागाह बनी हुई है। दूर तक केवल घास ही घास। किसान बाढ़ के भय से धान की फ़सल से तौबा कर चुके हैं। दमला गांव के शोभित साह बताते हैं कि यह पूरा इलाका काफी ग़रीब है। अधिकतर युवक पंजाब में ही हैं। अगर धान के बीज लगाये भी तो फ़सल कमला मैया की भेंट चढ़ जायेगी। कई बार हिम्मत कर दुबारा भी फ़सल लगायी लेकिन फिर वही हाल। पास ही स्थित हिरोपट्टी गांव के रामचंद्र दास कहते हैं कि धान की खेती तो किसानों के लिए जुआ खेलने की तरह है। कमला जब भी उफनती है उसका रास्ता यही बहियार बन जाता है। सारी फ़सल बह जाती है। हां, अगर बाढ़ न आये तो धान की बंपर पैदावार होती है। इतनी कि बेटी की शादी में लिया कर्ज एक बार में ही चुकता हो जाए। यह जुआ खेलने की हिम्मत यहां के किसान कम ही कर पाते हैं। मधुबनी जिले में ऐसे हज़ारों बहियार हैं, जहां किसान एक ही फ़सल ले पाते हैं।
मौजूदा नीतीश सरकार ने राज्य में कृषि के विकास के लिए कृषि रोड मैप लागू किया था। अफसोस कि विकास के इस मैप में ऐसे हज़ारों किसान अपनी जगह नहीं बना पाये। इन परती खेतों में ‘खाक फ़सल’ की आग पंजाब हरियाणा में मजदूरी कर रहे लोगों की पेट में महसूस की जा सकती है।
-मधेपुरा के सिंहेश्वर के निवासी रुपेश कुमार की रिपोर्टिंग का गांवों से गहरा ताल्लुक रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी से पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद शुरुआती दौर में दिल्ली-मेरठ तक की दौड़ को विराम अपने गांव आकर मिला। उनसे आप 9631818888 पर संपर्क कर सकते हैं।
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