एक किताब जिसने बदली सोच

बसंत कुमार
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जब गांव में था तो आसपास थी पति से पिटती औरतें, पति और बच्चों के सपने को अपना सपना मानकर जीने वाली औरतें, समाज के डर से हंसी को दबाती लड़कियां, प्रेम करने पर पढ़ाई रोक कम उम्र में ही ब्याह दी जाने वाली लड़कियाँ। शादी से पहले मायके और शादी के बाद ससुराल के सम्मान का बोझ पग-पग लेकर चलती लड़कियाँ।
जब शहर आया तो सोचा बदला होगा यहां लड़कियों का संसार पर यहां भी कुछ वैसा ही महौल था. शहर में मिली परिवार और प्रेमी के इशारों पर चलने वाली लड़कियाँ। प्रेमी के ख़ुशी में ख़ुशी तलाशने वाली लड़कियाँ। ढूंढा बहुत की मिले कुछ ऐसी लड़कियाँ जिसके पास ज़िन्दगी जीने का अपना व्याकरण हो. प्रेम में होने के बावजूद हो उसका भी कोई वजूद. मिली पर बहुत कम, एकाध।
anuradha bookअनुराधा को पिछले बुक फेयर से पहले नहीं जानता था। बुक फेयर में इनकी किताब आज़ादी मेरा ब्रांड के बारे में बहुतों से सुना और अपने पोर्टल के लिए इनका इंटरव्यू भी किया। इनकी किताब पढ़ते हुए मेरे अंदर भी बहुत कुछ बदला और सबसे ज़्यादा जो बदलाव आया वो ये था कि मैं खुद को वक़्त देने लगा। जो मन हो वो करने लगा, कोई नाराज़ होगा इसका भय खत्म हो गया।
अनुराधा की किताब ”आज़ादी मेरा ब्रांड” को मैंने अपने आसपास की तमाम लड़कियों को पढ़ने को बोला और कुछ को अपनी किताब दिया भी। ऐसा नहीं है कि अनुराधा ने बिलकुल नई बात लिखी हैं किताब में, लेकिन सहज और बातचीत की भाषा के कारण यह किताब बेहद पसन्द है मुझे। किताब पढ़ते वक़्त मन अनुराधा के साथ साथ यूरोप घूमने लगता है। सच कहूँ तो प्राग पर निर्मल वर्मा का लिखा नावेल वे दिन पढ़ने के बावजूद भी अनुराधा का प्राग निर्मल वर्मा के प्राग से ज़्यादा सम्मोहित करता है।
आज अनुराधा की दूसरी किताब की घोषणा भी कर दी गई। मुझे उस किताब का बेसब्री से इंतज़ार है। वैसे आज बाबारा मन वाले स्वानन्द किरकिरे साहब को सुनने को मिला। बहुत इमोशनल आदमी हैं स्वानन्द किरकिरे। एक लड़की अपने साथ हुए हादसे शेयर कर रही थी और स्वानन्द साहब की आँखों में आसूँ भर आये। एक यादगार दिन। हाँ अनुराधा की नई किताब का नाम ‘अजब-गज़ब लोग’ है।अब इसका इंतज़ार है

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वbasant

बसंत कुमार  बिहार का सीवान आप की जन्मभूमि है और देश की राजधानी को कर्मभूमि मानकर इन दिनों मीडिया में सक्रिय ।