‘उन्माद’ की आग में अपने-अपने चेहरे देख लो

IMG-20160215-WA0001[1]जेएनयू पर चर्चाओं का दौर जारी है। सोशल मीडिया पर जंग चल रही है। आपसे किए वादे के मुताबिक टीम बदलाव संवाद की प्रक्रिया को जारी रख रही है। बस शर्त इतनी कि भाषा संयम हो और विरोधियों को सुनने का माद्दा भी। इस सिलसिले में फेसबुक से ली गई टिप्पणियों की दूसरी किस्त।

AMITABHJI PROFILE खुले दिमाग वाला समाज डिज़र्व ही नहीं करते हम

अमिताभ श्रीवास्तव

ये भीड़तंत्र/सामूहिक चेतना के ज़रिये संचालित और/या उसकी संतुष्टि के लिए चलायी जाने वाली व्यवस्था/ओं का दौर है। ऐसे में संयमित संतुलित अभिव्यक्ति की जगह लगातार सिकुड़ती जा रही है। समझदारी तो खैर हमेशा से ही सापेक्ष है।

उदय प्रकाश के फेसबुक वॉल से।
उदय प्रकाश के फेसबुक वॉल से।

आर्थिक मोर्चे पर नाकाम सरकार के लिए इशरत, जेएनयू, प्रेस क्लब की घटनाओं के बहाने मीडिया और सोशल मीडिया के एक वर्ग की अगुआई में उमड़ा राष्ट्रवादी उन्माद एक सुरक्षा कवच की तरह आ खड़ा हुआ है। बजट , बेरोज़गारी,  जीडीपी,  विकास, गिरता रूपया, मरते किसान वगैरह सब नेपथ्य में जा चुके हैं।

वैसे मन तो कभी कभी यही कहता है कि बंद ही कर दो सब। पढ़ा लिखा खुले दिमाग वाला समाज डिज़र्व ही नहीं करते हम लोग। पढ़ लिख के ही यहां क्या हासिल हो रहा है? नौकरियां सरकार पैदा नहीं कर पा रही है। चपरासी बनने के लिए पीएचडी वाला भी लाइन में खड़ा है। पढ़े लिखे कहलाने वाले लोग भी निपट जाहिलों की भाषा में सोशल मीडिया पर बेहिचक गंदी से गंदी गालियां निकालते हैं, अपने वैचारिक विरोधियों पर। सारे फ़ैसले सड़क पर ही निपटाने का मिज़ाज पनपता जा रहा है। राष्ट्रवादी यानी बीजेपी, संघ परिवार समर्थक होना ही सब कुछ है। और उसके लिए ज्यादा पढ़ने लिखने की क्या ज़रूरत ? भारत माता की जय बोलने, तिरंगा लहराने और देवी देवताओं की तस्वीर लगाने भर से काम चल जाता है। देशभक्ति के इस माॅडल के आगे सब बेरौनक और गैरज़रूरी बन गया है। इससे इत्तिफाक न रखने वाले देशद्रोही करार दिये जा सकते हैं।


ASHUTOSH JHAवामपंथ के चेहरे पर राष्ट्रवाद का सबसे जोरदार थप्पड़

आशुतोष झा

JNU में लगे राष्ट्रविरोधी नारे इस बार कुछ अनोखी घटना के साक्ष्य रहे। ये सब जानते हैं कि वामपंथ, प्रगतिशीलता के आड़ में कुकर्मों का बहुत बड़ा केंद्र रहा है। लेकिन बिडम्बना ये रही है कि आज तक वे अपने सारे कुकृत्यों का बचाव करते रहे। पहली बार ऐसा हुआ है कि वो यह कहने पर मज़बूर हुए हैं कि ये राष्ट्रविरोधी नारे उन्होंने नहीं लगाये। पहली बार ऐसा हुआ है कि वो यह कहते नहीं थक रहे कि उनका अटूट विश्वास इस देश के संविधान और लोकतंत्र में है। पहली बार ऐसा हुआ है कि इस देश के सामान्य लोकतांत्रिक परिवेश में सरकार ने JNUSU अध्यक्ष को कानून के सामने प्रस्तुत किया हो। पहली बार ऐसा हुआ है कि राष्ट्रवादी ताकत के विरोध में राष्ट्रविरोधी ताकतें लामबंद हुई हैं और जिसका साक्ष्य आप 23 तारीख से शुरू हो रहे बजट सत्र में भी देखेंगे।

ये वामपंथ के चेहरे पर राष्ट्रवाद का सबसे जोरदार थप्पड़ है, जो उन्हें आने वाली कई पीढ़ियों तक याद रहेगा।