मनोज कुमार
आजाद ज़िंदगी पाने की जंग अब भी बाकी है
उम्मीद रोशनी की लौ अब भी जलाना बाकी है
देखकर हैरान हूं मैं किस जहां के है बाशिंदे
हर रोज हो रहे धर्म के नाम पर यहां दंगे
क्यों होता है आज भी नारियों का दमन
मत भूल नारियों ने ही किया था असूरों का पतन
एक तरफ कहते हो दुर्गा, लक्ष्मी तुम्ही हो सरस्वती
फिर क्यों नहीं देते हो उन्हें जीने की आजादी
कैसे खोखले समाज में जी रहे है हम
तोड़ दो इन खोखलेपन की बेडि़यों को
अब तो आजादी मांगते है हम
जाग जाओं अब ये समाज बदलाव मांगता है
त्याग दो अपने झूठे अंहकार को
नारियों का रोशन सवेरा चाहता है
जला लो दिल में इतनी आग कि रोशन हो जाएं ये जहां
आजाद जिंदगी पाने की जंग अब भी बाकी है
उम्मीद रोशनी की लौ अब भी जलाना बाकी है।
मनोज कुमार, कुछ समय से पत्रकारिता में। गुरू जम्बेशवर विश्वविधालय से एमए । सोशल मीडिया पर सक्रियता। मोबाइल-9899032207 पर संपर्क कर सकते हैं।